"शारदा देवी": अवतरणों में अंतर
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=== जन्म और परिवार ===
[[चित्र:Sarada Devi Jayrambati.jpg| thumb|left|जयरामबाटी में शारदा देवी का निवास]]
सारदा देवी का जन्म 22 दिसम्वर 1853 को बंगाल प्रान्त स्थित जयरामबाटी नामक ग्राम के एक गरीब ब्राह्मण परिवार में
=== विवाह ===
केवल 6 वर्ष की उम्र में इनका विवाह श्री रामकृष्ण से कर दिया गया था। जब रामकृष्ण के साथ विवाह हेतु कोई योग्य कन्या नहीं मिल रही थी तब ठाकुर ने सामने से जयरामबाटी में पता लगाने के लिये कहा था और कहा था कि इस कन्या का जन्म मेरे लिये ही हुआ है। सामान्यत: विवाह कर्म प्रजोत्पत्ति के लिये किया जाता है किन्तु शारदा देवी और रामकृष्ण का विवाह संबंध अलौकिक था। रामकृष्ण देव
=== दक्षिणेश्वर में ===
[[चित्र:Nahabat of Dakshineswar Kali Temple.jpg|thumb|right |दक्षिणेश्वर स्थित नहबत का दक्षिणी भाग, सारदा देवी यहाँ एक छोटे से कमरे में रहती थीं]]
अठारह वर्ष की उम्र में वे अपने पति रामकृष्ण से मिलने दक्षिणेश्वर पहुँची। रामकृष्ण इस समय कठिन आध्यात्मिक साधना में बारह बर्ष से ज्यादा समय व्यतीत कर चुके थे और आत्मसाक्षात्कार के सर्बोच्च स्तर को प्राप्त कर लिया था। उन्होने बड़े प्यार से सारदा देवी का स्वागत कर उन्हे सहज रूप से ग्रहण किया और गृहस्थी के साथ साथ आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने की शिक्षा भी दी। सारदा देवी पवित्र जीवन व्यतीत करते हुए एवं रामकृष्ण की शिष्या की तरह आध्यात्मिक शिक्षा ग्रहण करते हुए अपने दैनिक दायित्व का निर्वाह करने लगीं।
रामकृष्ण सारदा को जगन्माता के रूप में देखते थे। 1872 ई. के
दक्षिणेश्वर में आनेवाले शिष्य भक्तों को सारदा देवी अपने बच्चों के रूप में देखती थीं और उनकी बच्चों के समान देखभाल करती थीं।
सारदा देवी का दिन प्रातः ३:०० बजे शुरू होता था। गंगास्नान के बाद वे [[जप]] और [[ध्यान]] करती थीं। रामकृष्ण ने उन्हें दिव्य मंत्र सिखाये थे और
=== संघ माता के रूप में ===
1886 ई. में रामकृष्ण के देहान्त के बाद सारदा देवी तीर्थ दर्शन करने चली गयीं। वहाँ से लौटने के बाद वे कामारपुकूर मे रहने आ गयीं। पर वहाँ पर उनकी उचित व्यवस्था न हो पाने के कारण भक्तों के अत्यन्त आग्रह पर वे कामारपुकुर छोड़कर [[कलकत्ता]] आ गयीं।
कलकत्ता आने के बाद सभी भक्तों के बीच संघ माता के रूप में प्रतिष्ठित होकर उन्ह़ोने सभी को माँ रूप में संरक्षण एवं अभय प्रदान किया। अनेक भक्तों को दीक्षा देकर
प्रारंभिक वर्षों में [[स्वामी योगानन्द]] ने उनकी सेवा का दायित्व लिया। [[स्वामी सारदानन्द]] ने उनके रहने के लिए कलकत्ता में उद्भोदन भवन का निर्माण करवाया।
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[[चित्र:Holy Mother worshipping at Udbodhan.jpg|thumb | right |सारदा देवी [[उद्वोधन]] भवन के पूजाघर में]]
कठिन परिश्रम एवं बारबार मलेरिया के संक्रमण के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया।
21 जुलाई 1920 को श्री माँ सारदा देवी ने नश्वर शरीर का त्याग किया।
== उपदेश और वाणी ==
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