"जीवनचरित": अवतरणों में अंतर
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=== भारत में जीवनचरित ===
भारत में ई पू तीसरी शताब्दी के [[सम्राट् अशोक|मौर्य सम्राट् अशोक]] द्वारा शिलाओं पर उत्कीर्ण [[अभिलेख]] आदि भी आत्मकथा के ही रूप हैं। यह परंपरा अशोक के बाद अधिकांश भारतीय नरेशों में चल पड़ी थी। जीवन की अथवा प्रशासन की किसी विशिष्ट घटना को जीवित रखने के लिये वे उसे पत्थर के स्तंभों, मंदिरों और उनकी दीवारों, ताम्रपत्रों आदि पर अंकित करवा देते थे। कुषाण और विशेषत: गुप्त सम्राटों का काल इस तरह के संदर्भों से भरा पड़ा है। इसके साथ ही कभी कभी जीवनी लेखन का स्पष्ट रूप भी दिखाई पड़ जाता है। बाण द्वारा रचित [[हर्षचरित]] एक ऐसा ही उदारहण है।
बाद के मुगल बादशाहों में तो आत्मकथा लिखना चाव और रुचि की बात ही हो गई थी। बाबर से लेकर जहाँगीर तक सभी ने आत्मकथाएँ लिखी हैं जो क्रमश: इस प्रकार है -- [[बाबरनामा]], [[हुमायूनामा]], [[अकबरनामा]],
भारतीय सम्राटों, मुगल बादशाहों तथा राजपूत राजा और रजवाड़ों में आश्रय पानेवाले कवियों ने भी अपने आश्रयदाताओं के जीवनवृत्तातों का विस्तृत वर्णन अपने काव्य ग्रंथों में किया है। [[काव्य]] के नायक के रूप में किसी नरेश, अथवा आश्रयदाता का चयन करने के पश्चात् उनकी जीवनी का रूपायन कविता की पंक्तियों में कर डालना एक सामान्य बात हो गई थी। इस तरह के काव्य को हिन्दी साहित्य के चरितकाव्य की संज्ञा दी गई है। ऐसे काव्यों की रचना [[हिन्दी साहित्य]] के [[वीरगाथा काल]] और विशेषत: [[रीतिकाल]] के बहुलता से हुई है। वीरगाथा काल के रासों काव्यों को इसी श्रेणी में माना जा सकता है। रीतिकाल में इस तरह के चरित काव्यों के अनेक नाम गिनाए जा सकते हैं जिनकी रचना समय समय पर कवियोंद्वारा होती रही है।
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=== आधुनिक युग ===
आधुनिक गद्य काल में तो अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन आदि पश्चिमी भाषाओं के साथ साथ [[हिंदी]], [[बंगला]], [[मराठी]] आदि में भी प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवनचरित लिखने की प्रवृत्ति यथेष्ट रूप से बढ़ती जा रही है। आत्मकथाओं में [[महात्मा गांधी]] की "[[सत्य के प्रयोग]]" शीर्षक [[आत्मकथा]], देशरत्न स्व. [[राजेन्द्र प्रसाद]] की आत्मकथा और [[जवाहरलाल नेहरू]] की आत्मकथा, इस प्रसंग में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
[[श्रेणी:साहित्य की विधा]]
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