"योगवासिष्ठ": अवतरणों में अंतर

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इसमें श्लोकों की कुल संख्या २७६८७ है। [[वाल्मीकि रामायण]] से लगभग चार हजार अधिक श्लोक होने के कारण इसका 'महारामायण' अभिधान सर्वथा सार्थक है। इसमें [[रामचन्द्र]]जी की जीवनी न होकर महर्षि वसिष्ठ द्वारा दिए गए आध्यात्मिक उपदेश हैं।
 
प्रथम वैराग्य प्रकरण में [[उपनयन संस्कार]] के बाद प्रभु रामचन्द्र अपने भाइयों के साथ [[गुरुकुल]] में अध्ययनार्थ गए। अध्ययन समाप्ति के बाद तीर्थयात्रा से वापस लौटने पर रामचन्द्रजी विरक्त हुए। महाराज दशरथ की सभा में वे कहते हैं कि वैभव, राज्य, देह और आकांक्षा का क्या उपयोग है। कुछ ही दिनों में काल इन सब का नाश करने वाला है। अपनी मनोव्यथा का निरावणनिवारण करने की प्रार्थना उन्होंने अपने गुरु [[वसिष्ठ]] और [[विश्वामित्र]] से की। दूसरे मुमुक्षुव्यवहार प्रकरण में विश्वामित्र की सूचना के अनुसार वशिष्ठ ऋषि ने उपदेश दिया है। ३-४ और ५ वें प्रकरणों में संसार की उत्पत्ति, स्थिति और लय की उत्पत्ति वार्णित है। इन प्रकारणों में अनेक दृष्टान्तात्मक आख्यान और उपाख्यान निवेदन किये गए हैं। छठे प्रकरण का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभाजन किया गया है। इसमें संसारचक्र में फँसे हुए जीवात्मा को निर्वाण अर्थात निरतिशय आनन्द की प्राप्ति का उपाय प्रतिपादित किया गया है। इस महान ग्रन्थ में विषयों एवं विचारों की पुनरुक्ति के कारण रोचकता कम हुई है। परन्तु अध्यात्मज्ञान सुबोध तथा काव्यात्मक शैली में सर्वत्र प्रतिपादन है
 
== सन्दर्भ ==