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यद्यपि कंबन ने वाल्मीकि रामायण का अनुसरण किया, तथापि यह कहना अनुचित होगा कि यह संस्कृत का अनुवाद मात्र है। रामायण के चरित्रों के चित्रण में कंबन ने तमिल संस्कृति, परंपरा तथा रीति रिवाज ग्रहण किया। एक तमिल परंपरा एंव रुचि को ग्रहण करने के कारण कंबन चरित्रचित्रण में वाल्मीकि रामायण से विलग हो गए हैं। उदाहरणार्थ वाल्मीकि के अनुसार सुग्रीव ने बालि की विधवा से विवाह किया जब कि कंबन के अनुसार रत्न तथा सौभाग्य के बिना वह माता जैसी लगती थी। वाल्मीकि के अनुसार रावण ने सीता का हरण पंचवटी से किया लेकिन कंबन का कथन है कि रावण ने संपूर्ण आश्रम पृथ्वी पर से उठा लिया था। ब्रह्मा के शाप के कारण उसने सीता का स्पर्श नहीं किया। वाल्मीकि ने कहा है कि राक्षस ने सीता को लंका में कैद किया। कंबन एक बात और जोड़ के कहते हैं कि सीता लंकेश के हृदय में भी कैद थीं। कंबन अंगद के शरणस्थल के विषय में भी लिखते हैं, जबकि इसका कोई उल्लेख वाल्मीकि ने नहीं किया। वाल्मीकि मौन हैं पर कंबन ने राम तथा सीता के प्रथम प्रेम के जन्म का भी वर्णन किया है जो राम सीता के प्रथम साक्षात्कार के समय हुआ जब राम विश्वामित्र और लक्ष्मण के साथ मिथिला की सड़क पर जा रहे थे।
कंबन के राजनीतिक विचार, जो रामावतारम् में पाए जाते हैं और भी महत्वपूर्ण हैं। वह दो प्रकार के शासन का वर्णन करते हैं। पहला न्याययुक्त शासन जो सत्कार्यों पर आधारित होता है। दूसरा शक्तिशासन जिसका आधार साहस होता है। अयोध्या में न्याययुक्त शासन था जबकि लंका में शक्तिशासन था। न्याययुक्त शासक अपने मंत्रियों की मंत्रणा मानता है जबकि शक्तिशासक उसकी उपेक्षा करता है। कंबन अनुभव करते हैं कि एक आदर्श शासक का उद्देश्य सर्वहित होना चाहिए। मुदालियर की कंबन रामायण व्याख्या
कंबन की सर्वोत्तम रचनाओं के रचनाकाल के विषय में मतैक्य नहीं है। राघव आयंगर की बहुमूल्य खोजों के आधार पर यह मान लिया गया है कि रामवतारम् ११७८ ई. में समाप्त हुआ और इसका प्रकाशन ११८५ में हुआ।
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