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* [[हेंरीच ज़िम्मर|हैनरिच ज़िम्मेर]] एक मुद्रा में "योगमुद्रा" का वर्णन करते है। {{cite book|last=Zimmer|first=Heinrich|title=Myths and Symbols in Indian Art and Civilization|page=168|publisher=Princeton University Press, New Ed edition|year=1972|ISBN=978-0691017785}}
 
* [[थॉमस मअकएविल्ले|थॉमस म्क्विल्ले]] लिखते है कि "यह छह रहस्यमय सिंधु घाटी मुद्रा की छवियों में जो उत्कीर्ण मूर्तियां है उन में हठ योग के ''मूलबन्धासन '' नाम के आसन, या उस से मिलता जुलता ''उत्कटासन '' या ''बद्धा कोनासना '' प्रर्दशितप्रदर्शित है।
{{cite book|last=McEvilley|first=Thomas|title=The shape of ancient thought|publisher=Allworth Communications|date=2002|pages=219-220|isbn=9781581152036|url=http://books.google.com/books?id=Vpqr1vNWQhUC&pg=PA219}}
 
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ध्यान में उच्च चैतन्य को प्राप्त करने कि रीतियों का विकास श्र्मानिकश्रमानिक परम्पराओं द्वारा एवं उपनिषद् की परंपरा द्वारा विकसित हुआ था।<ref>[27] ^ फ्लड, पीपी. 94-95.</ref>
 
बुद्ध के पूर्व एवं प्राचीन ब्रह्मिनिक ग्रंथों मे ध्यान के बारे मेमें कोई ठोस सबूत नहीं मिलतामिलते हैहैं, बुद्ध के दो शिक्षकों के ध्यान के लक्ष्यों के प्रति कहे वाक्यों के आधार पर वय्न्न यह तर्क करते है की निर्गुण ध्यान की पद्धति ब्रह्मिन परंपरा से निकली इसलिए उपनिषद् की सृष्टि के प्रति कहे कथनों में एवं ध्यान के लक्ष्यों के लिए कहे कथनों में समानता है।<ref>[28] ^ अलेक्जेंडर व्य्न्न, दी ओरिजिन ऑफ़ बुद्धिस्ट मेडिटेशन. रौतलेड्ग 2007, पृष्ठ 51.</ref> यह संभावित हो भी सकता है, नहीं भी.<ref>[29] ^ अलेक्जेंडर व्य्न्न, दी ओरिजिन ऑफ़ बुद्धिस्ट मेडिटेशन. रौतलेड्ग 2007, पृष्ठ 56.</ref>
 
उपनिषदों में ब्रह्माण्ड संबंधी बयानॉ के वैश्विक कथनों में किसी ध्यान की रीति की सम्भावना के प्रति तर्क देते हुए कहते है की नासदीयनारदीय सूक्त किसी ध्यान की पद्धति की ओर ऋग वेद से पूर्व भी इशारा करते है।<ref>[30] ^ अलेक्जेंडर व्य्न्न, दी ओरिजिन ऑफ़ बुद्धिस्ट मेडिटेशन. रौतलेड्ग 2007, पृष्ठ 51.</ref>
 
यह बौद्ध ग्रंथ शायद सबसे प्राचीन ग्रंथ है जिन में ध्यान तकनीकों का वर्णन प्राप्त होता है।<ref>[31] ^ [[रिचर्ड गोम्ब्रिच]], ''थेरावदा बौद्ध धर्म: ए सोशल हिस्ट्री फ्रॉम इंसिएंत बनारस टू माडर्न कोलम्बो.'' रौतलेड्ग और केगन पॉल, 1988, पृष्ठ 44.</ref> वे ध्यान की प्रथाओं और अवस्थाओं का वर्णन करते है जो बुद्ध से पहले अस्तित्व में थीं और साथ ही उन प्रथाओं का वर्णन करते है जो पहले बौद्ध धर्म के भीतर विकसित हुईं.<ref>[32] ^ अलेक्जेंडर व्य्न्न, दी ओरिजिन ऑफ़ बुद्धिस्ट मेडिटेशन. रौटलेड्ज 2007, पृष्ट 50</ref> हिंदु वांग्मय में,"योग" शब्द पहले [[कथा उपनिषद|कथा उपानिषद]] में प्रस्तुत हुआ जहाँ ज्ञानेन्द्रियों का नियंत्रण और मानसिक गतिविधि के निवारण के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जो उच्चतम स्तिथिस्थिति प्रदान करने वाला मन गया है।<ref>[33] ^ फ्लड, पी. 95. विद्वानों कथा उपनिषद को पूर्व बौद्धत्व के साथ सूचीबद्ध नहीं करते, उदाहरण के लिए हेल्मथ वॉन ग्लासेनप्प देख सकते हैं,1950 कार्यवाही की "अकादेमी देर विस्सेंस्चाफ्तें," लितेरातुर अंड से [http://www.accesstoinsight.org/lib/authors/vonglasenapp/wheel002.html http://www.accesstoinsight.org/ lib/authors/vonglasenapp/wheel002.html.] कुछ लोग कहते हैं कि यह पद बौद्ध है, उदाहरण हाजिम नाकामुरा का ए हिस्ट्री ऑफ़ एअर्ली वेदान्त फिलोसोफी, फिलोसोफी ईस्ट अंड वेस्ट, वोल. 37, अंख. 3 (जुलाई., 1987) जिसे अरविंद शर्मा ने समीक्षा की है, पीपी. 325-331. पाली शब्द "योग" का उपयोग करने की एक व्यापक जांच के लिए पूर्व बौद्ध ग्रंथों में देखे, थॉमस विलियम र्ह्य्स डेविड, विलियम स्टेड, ''पाली-इंग्लिश शब्दकोष.'' मोतीलाल बनारसीदास पुब्ल द्वारा डालें., 1993, पृष्ठ 558: [http://books.google.com/books?id=xBgIKfTjxNMC&amp;pg=RA1-PA558&amp;dq=yoga+pali+term&amp;lr=#PRA1-PA558,M1 http://books.google.com/books?id=xBgIKfTjxNMC&amp;pg=RA1-PA558&amp;dq=yoga+pali+ term&amp;ir = # PRA1 lr-PA558, M1.] धम्मपदा में
"आध्यात्मिक अभ्यास" के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग के लिए देखे गिल फ्रोंस्दल, दी धम्मपदा, शम्भाला, 2005, पृष्ठ 56, 130 देखा.
 
</ref> महत्वपूर्ण ग्रन्थ जो योग की अवधारणा से सम्बंधित है वे मध्य कालीन [[उपनिषदों|उपनिषद्]], [[महाभारत]],[[भगवद गीता]] 200 BCE) एवं [[पतांजलि के योग सूत्र|पथांजलिपतंजलि के योग सूत्र]] है। (ca. 400 BCE)
 
 
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[[भारतीय दर्शन]] में, षड् [[आस्तिक|दर्शनों]] में से एक का नाम योग है।<ref>[35] ^ छह रूढ़िवादी स्कूलों के एक सिंहावलोकन के लिए, समूह पर विस्तार के साथ देखें : राधाकृष्णन अंड मूर, "सामग्री" और पीपी.
 
स्कूलों [35] ^453-487.</ref><ref>[36] ^ योग घराने के एक संक्षिप्त सिंहावलोकन के लिए देखें: चटर्जी अंड दत्ता, पी. 43.</ref> योग दार्शनिक प्रणाली,[[Samkhya|सांख्य]] स्कूल के साथ निकटता से संबन्धित है।<ref>[37] ^ दर्शन और संख्या के बीच घनिष्ठ संबंध के लिए देखें: चटर्जी अंड दत्ता, पी. 43.</ref> ऋषि [[पतंजलि]] द्वारा व्याख्यायित योग संप्रदाय [[संख्या|सांख्य]] मनोविज्ञान और तत्वमीमांसा को स्वीकार करता है, लेकिन सांख्य घराने की तुलना में अधिक आस्तिक है, यह प्रमाण है क्योंकि सांख्य वास्तविकता के पच्चीस तत्वों में ईश्वरीय सत्ता भी जोड़ी गई है।<ref>[38] ^ अवधारणाओं के योग स्वीकृति के लिए, लेकिन भगवान के लिए एक वर्ग के जोड़ने की क्रिया के साथ देखें: राधाकृष्णन अंड मूर, पी. 453.</ref><ref>[39]^ Samkhya के 25 सिद्धांतों को योगा ने स्वीकार करने के लिए देखें: चटर्जी अंड दत्ता, पी. 43.</ref> योग और सांख्य एक दुसरेदूसरे से इतने मिल्झुलतेमिलते-जुलते है कि [[मैक्स म्यूलर|मेक्स म्युल्लर]] कहते है,"यह दो दर्शन इतने प्रसिद्ध थे कि एक दुसरेदूसरे का अंतर समझने के लिए एक को प्रभु के साथ और दुसरेदूसरे को प्रभु के बिना माना जाता है।...."<ref>[40] ^ म्युलर (1899), अध्याय 7, "योग फिलोसोफी", पी. १०४.</ref> सांख्य और योग के बीच घनिष्ठ संबंध [[हेंरीच ज़िम्मर|हेंरीच ज़िम्मेर]] समझाते है:
 
<blockquote class="toccolours" style="float:none;padding:10px 15px 10px 15px;display:table">
इन दोनों को भारत में जुड़वा के रूप में माना जाता है, जो एक ही विषय के दो पहलू है।{{IAST|Sāṅkhya}}[41]यहाँ मानव प्रकृति की बुनियादी सैद्धांतिक का प्रदर्शन, विस्तृत विवरण और उसके तत्वों का परिभाषित, बंधन ''[[बंधा|(बंधा)]]'' के स्थिति में उनके सहयोग करने के तरीके, सुलझावट के समय अपने स्थिति का विश्लेषण या मुक्ति मेमें वियोजन ({{2}{IAST|मोक्ष}}) का व्याख्या किया गया है। योग विशेष रूप से प्रक्रिया की गतिशीलता के सुलझाव के लिए उपचार करता है और मुक्ति प्राप्त करने की व्यावहारिक तकनीकों को सिद्धांत करता है अथवा 'अलगाव-एकीकरण'''(कैवल्य)'' का उपचार करता है।<ref>[42] ^ ज़िम्मेर (1951), पी. 280.</ref>
</blockquote>
 
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6.</ref> योग का प्रारंभिक परिभाषा मे इस शब्द ''{{IAST|nirodhaḥ}}'' [52] का उपयोग एक उदाहरण है कि बौधिक तकनीकी शब्दावली और अवधारणाओं, योग सूत्र मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है; इससे यह संकेत होता है कि बौद्ध विचारों के बारे में पतांजलि को जानकारी थी और अपने प्रणाली मे उन्हें बुनाई.<ref>[53] ^ बारबरा स्टोलेर मिलर, ''योगा:डिसिप्लिन टू फ्रीडम योग सूत्र पतांजलि को आरोपित किया है, पाठ का अनुवाद, टीका, परिचय और शब्दावली खोजशब्द के साथ.'' कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रेस, 1996, पृष्ठ 9.</ref>[[स्वामी विवेकानंद|स्वामी]] विवेकानंद इस सूत्र को अनुवाद करते हुए कहते है,"योग बुद्धि (चित्त) को विभिन्न रूपों (वृत्ति) लेने से अवरुद्ध करता है।<ref>[54] ^ विवेकानाडा, पी. 115</ref>
 
[[चित्र:Yogisculpture.JPG|right|thumb|200px|इस, दिल्ली के बिरला मंदिर में एक हिंदू योगी का मूर्तीमूर्ति]]
 
पतांजलिपतंजलि का लेखन 'अष्टांग योग"("आठ-अंगित योग") एक प्रणाली के लिए आधार बन गया।
29<sup>th</sup> सूत्र के <sup>दूसरी </sup>किताब से यह आठ-अंगित अवधारणअवधारणा को प्राप्त किया गया था और व्यावहारिक रूप मे भिन्नरूप से सिखाये गए प्रत्येक राजा योग का एक मुख्य विशेषता है।
 
आठ अंग हैं:
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हठयोग योग, योग की एक विशेष प्रणाली है जिसे 15वीं सदी के भारत में [[हठयोग प्रदीपिका|हठ योग प्रदीपिका]] के संकलक, [[योगी स्वत्मरमा]] द्वारा वर्णित किया गया था।
 
हठयोग पतांजलि के राज योग से काफी अलग है जो सत्कर्म पर केन्द्रित है, भौतिक शरीर की शुद्धि ही मन की, प्राण की और विशिष्ट ऊर्जा की शुद्धि लतीलाती है।''[62]'' [63] केवल पतांजलिपतंजलि राज योग के ध्यान आसन के बदले, [64] यह पूरे शरीर के लोकप्रिय आसनों की चर्चा करता है।<ref name="Burley">[65] ^ हठयोग: यह प्रसंग, थिओरी अंड प्रक्टिस मिकेल बर्ली (पृष्ठ 16) द्वारा लिखा गया है।</ref> हठयोग अपनी कई आधुनिक भिन्नरूपों में एक शैली है जिसे बहुत से लोग "योग" शब्द के साथ जोड़ते है।<ref>[66] ^ फयूएर्स्तें, जोर्ग. 1996).''दी शम्भाला गाइड टू योग'' बोस्टन और लंदन: शम्भाला प्रकाशन, इंक</ref>
 
== अन्य परंपराओं में योग प्रथा ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/योग" से प्राप्त