"बीमा": अवतरणों में अंतर

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* स्वास्थ्य बीमा
* गाड़ी की बीमा (आटोोबाइल इंश्योरेंश)
 
==बीमा की आवश्यकता==
व्यक्तियों का जीवन अनेक प्रकार की अनिश्चितताओं एवं जोखिमों से घिरा हुआ है। उसे कुछ सम्पत्ति से सम्बन्धित जोखिमें है तो कभी जीवन को जोखिम है अत: वह इन जोखिमों के प्रति कै से सुरक्षा प्राप्त करे इसी विचार ने बीमा को एक आवश्यकता बना दिया है। वर्तमान औद्योगिक विकास का आधार ही प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से यदि बीमा को कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी। मनुष्य जीवन को तनाव मुक्त करने हेतु बीमा एक महती आवश्यकता बन गया है। निम्न बिन्दुओं के आधार पर बीमा की आवश्यकता का अनुमान लगाया जा सकता है-
 
*1. जोखिमों के विरूद्ध सुरक्षा प्राप्ति हेतु -सम्पत्तियों का इसलिए बीमा किया जाता है कि उनके नष्ट होने की सम्भावना निरन्तर बनी रहती है या आकस्मिक घटना के घटित होने से अपने अपेक्षित जीवनकाल से पहले ही वे निष्क्रिय हो सकती है।
 
*2. संभावित जोखिमों से सुरक्षा प्राप्ति हेतु -बीमाकृत विषयवस्तु को क्षति हो भी सकती है और नहीं भी, भू कम्प आ भी सकता है , और नहीं भी, भू कम्प आये तो हो सकता है सम्पत्ति को क्षति पहु$1चे अथवा नहीं। मनुष्य की मौत होना निश्चित है ले किन मृत्यु कब होगी समय अनिश्चित है , अत: इस अनिश्चितता या संभावित जोखिमों से सुरक्षा प्राप्ति हेतु बीमा आवश्यकता बन गया है।
 
*3. जोखिमों के प्रभाव को कम करने हेतु - बीमा बीमाकृत विषयवस्तु को संरक्षण प्रदान नही करता है , खतरे के कारण पहु$1चाने वाली हानि को भी नही रोकता है खतरे को घटित होने से टाला भी नही जा सकता है। परन्तु कभी-कभी बेहतर सुरक्षातथा क्षतिनियन्त्रक उपायों द्वारा खतरे को टाला या तीव्रता को कम किया जा सकता है जिससे उस विषयवस्तु पर निर्भर व्यक्तियों के जीवन व सम्पत्ति पर खतरे के प्रभाव को कम अवश्य किया जा सकता है।
 
*4. सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता से मुक्ति हेतु -बीमा उद्योगपतियों, व्यवसायियों एवं अन्य व्यक्तियों को सुरक्षा के लिए पूंजी वि नियोग से मुक्त कर दे ता है। थोड़ी सी प्रीमियम का भुगतान करके जोखिम को उस सीमा तक सीमित कर लिया जाता है। अतः इस व्यवस्था में लगने वाले धन का अन्यत्र उपयोग किया जा सकता है।
 
*5. वृहत स्तरीय उपक्रमों के विकास हेतु आवश्यक -वृहतस्तरीय उपक्रमों में इतनी अधिक जोखिम होती है कि बीमा के बिना प्रारम्भ करना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव भी हो सकता है।
 
*6. वित्तीय संस्थाओं से वित्त प्राप्ति हेतु -वित्तीय संस्थाओं द्वारा भी इन औद्योगिक व व्यावसायिक संस्थाओं को वित्त तभी प्रदान किया जाता है जबकि इनकी सम्पत्तियों का बीमा हो चुका है। अत : भारी मात्रा में वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु भी बीमा आवश्यक है।
 
*7. विदेशी व्यापार विकास हेतु आवश्यक -निर्यात व्यापार के प्रोत्साहन हेतु भी बीमा आवश्यक है। बीमा माल के मू ल्य की क्षति की दशा में भी पूर्ण सुरक्षा प्रदान करता है व जिससे निर्यातक क्षति की अनिश्चितता से मुक्त होकर निर्यात कर सकते हैं।
 
*8. बचत व निवेश को प्रोत्साहित करने हेतु -जीवन बीमा बचत व विनियोग का अच्छा स्त्रोत है। जीवन की अनिश्चितताओं को बीमा द्वारा निश्चित करने हेतु अधिक राशि का बी मा कराता है , जिससे अपव्यय कम होकर बचत को प्रोत्साहन मिलता है।
 
== बीमा का महत्त्व ==
[[सभ्यता]] के विकास के साथ-साथ बीमा का महत्व भी बढ़ता जा रहा है , क्योंकि जोखिमों, दुर्घटनाओं व अनिश्चितताओं , में वृद्धि होती जा रही हे आज हम ऐसे किसी दे श की कल्पना नहीं कर सकते जो बीमा का लाभ नहीं उठा रहा हो। आज बीमा प्रारम्भिक स्वरूप से हट कर सामाजिक व व्यावसायिक जगत के प्रत्येक क्षेत्र में पदार्पण कर चुका है और अपनी उपयोगिता के आधार पर लोकप्रियता प्राप्त करता जा रहा है। बीमा की उपयोगिता से प्रभावित होकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर विन्स्टन चर्चिल ने कहा था “यदि मेरा वश चले तो मैं द्वार-द्वार पर यह अंकित करा दूं कि बीमा कराओ।”
 
बीमा सम्पूर्ण मानवजाति एवं इससे सम्बन्धित सभी वर्गों को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से लाभ पहुँचाता है। संक्षेप में कह सकते है कि आधुनिक युग में बीमा का महत्व दिन दुगुना रात चौगुना होता चला जा रहा है। बीमा के महत्व अथवा लाभों को निम्नांकित वर्गीकरण द्वारा समझा जा सकता है।
 
=== वैयक्तिक या पारिवारिक दृष्टि से महत्व===
बीमा से व्यष्टि स्तर पर निम्न लाभ हो सकते हैं।
 
1. मितव्ययता व बचत को प्रोत्साहन – बीमा करा ले ने से व्यक्ति को प्रब्याजि जमा कराने की चिन्ता रहती है अत: वह प्रारम्भ से ही बचत करना व मितव्ययता को अपनाना प्रारम्भ कर दे ता है। प्रो. रीगल, मिलर तथा विलियम्स के अनुसार - “'बीमा बचत को प्रोत्साहन दे ने वाला वातावरण प्रदान करता है।” यदि उसने प्रीमियम नहीं चुकाया हो तो वह उस धन राशि का अपव्यय भी कर सकता है। प्रति वर्ष बचत योजना के अन्तर्गत करोड़ों रू. का प्रीमियम जमा होता है , जो बचत की आदत से ही संभव है।
 
2. जोखिमों से सुरक्षा- मनुष्य का जीवन ही नही व्यापार भी जोखिमों से भरा हुआ है , बीमा उन अनिश्चितताओं को दूर करता है। प्रो. एन्जे ल के अनुसार- ''बीमा अनिश्चित हानियों से सुरक्षा का स्थायी आधार है। बीमा के कारण ही व्यवसाय व उद्योग विकसित हुए है और व्यक्ति के रोजगार को उत्पन्न जोखिम भी समाप्त होती है।”
 
3. विनियोग- जीवन बीमा में विनियोग तत्व भी विद्यमान है। व्यक्ति जो राशि प्रीमियम के रूप में जमा करवाता है। वह उसकी बचत है। निश्चित अवधि के पूर्ण होने अथवा निश्चित घटना के घटित होने पर बीमित को अथवा उसके उत्तराधिकारियों को निश्चित राशि प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार बीमा व्यक्ति के लिए सुरक्षा के साथ -साथ विनियोग का साधन भी बन जाता है।
 
4. बीमित व उसके उत्तराधिकारियों को पूर्ण सुरक्षा - बीमा कराने से बीमित व उसके उत्तराधिकारियों को पूर्ण वैधानिक सुरक्षा प्राप्त होती है। बीमित मृत्यु से पूर्व इच्छित व्यक्ति के नाम बीमापत्र का नामांकन कर सकता है जिससे पारिवारिक धन सम्बन्धी, बँ टवारे के झगड़े दूर हो सकते है व उत्तराधिकारी भी पूर्णत: सुरक्षित रहते हैं।
 
5. करों में छू ट - बीमा से करों में भी छू ट मिलती है। भा२त में चुकायी गयी प्रीमियम की राशि पर आयकर में छू ट प्राप्त की जा सकती है। इसी प्रकार सम्पदा कर में भी छू ट मिलती है।
 
6. आय क्षमता का पूंजीकरण:- बीमा के द्वारा व्यक्ति अपनी आय क्षमता का पूंजीकरण भी कर सकता है। वह भविष्य में उसके द्वारा कमायी जा सकने वाली राशि का भी बीमा करवा कर अपनी आय का पूंजीकरण कर सकता है। यदि बीमित की मृत्यु हो जाती है या कार्यक्षमता समाप्त हो जाती है तो भी इतनी ही राशि बीमापत्र पर प्राप्त हो सकेगी।
 
7. साख सुविधाऐं - ऋणदाता ऐसे व्यक्तियों को ऋण दे ना अधिक पसन्द करते हैं जिनका, बीमा करवाया हु आ है। वित्तीय संस्थाएं भी बीमित-व्यक्ति को ही ऋण दे ना चाहती है। इसके अतिरिक्त बीमा कम्पनी से भी साख सुविधाएं प्राप्त की जा सकती है।
 
8. वैधानिक दायित्वों से मुक्ति - व्यक्ति वैधानिक दायित्व बीमा करवा कर तृतीय पक्षकारों के प्रति अपने दायित्वों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। निश्चित प्रीमियम के बदले बीमा कम्पनी उन दायित्वों का भुगतान करे गी।
 
9. कार्यक्षमता में वृद्धि - अनिश्चितता जीवन की सबसे बड़ी चिन्ता होती है और बीमा व्यक्तियों को उस अनिश्चितता से ही मुक्ति दिलाता है। व्यक्ति जब चिन्ता मुक्त होकर कार्य करता है तो पूर्ण एकाग्रता से कार्य करने में समर्थ हो पाता है , जिससे उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
 
10. मानसिक शान्ति - जब व्यक्ति अनिश्चितताओं से मुक्त हो जाता है तो वह प्रसन्न मन से कार्य करता है। उसे मृत्यु के पश्चात् उत्पन्न होने वाले दायित्वों की भी चिन्ता नहीं रहती है क्योंकि वह वर्तमान में ही उनका बीमा करा चुका होता है।
 
11. स्वावलम्बन को प्रोत्साहन - बीमित व्यक्ति में आर्थिक आत्मनिर्भरता की भावना पैदा हो जाती है। व्यक्ति जीवित अवस्था में भी ऋण आसानी से प्राप्त कर सकता है और मृत्यु के पश्चात् भी आश्रित परिवार को बीमा धन राशि मिलने से आर्थिक आत्मनिर्भरता प्राप्त होती है।
 
12. भविष्य की आवश्यकताओं का नियोजन - बीमा कम्पनी के द्वारा कई प्रकार के बीमा पत्रों जैसे शिक्षा, विवाह, पें शन आदि को जारी किया जाता है। व्यक्ति अपनी सीमित आय में से वर्तमान में ही भविष्य की तैयारी कर ले ता है कि उसे कब, किस आवश्यकता पर, कितनी राशि की आवश्यकता होगी। इस आधार पर वह उन विशेष बीमापत्रों का चयन करने में सफल हो सकता है , यहाँ तक की मृत्यु के पश्चात् भी परिवार की आवश्यकताऐं पूर्ण नियोजित तरीके से पूरी कर सकता है।
 
13. सतर्कता को प्रोत्साहन - बीमा कम्पनियां हानियों से बचने के कई सुरक्षात्मक सुझाव दे ती रहती है। इन सुरक्षात्मक उपायों से मानव जीवन अधिक सुरक्षित हो जाता है वह समय-समय पर विभिन्न बीमारियों से बचने के उपाय करता है। क्षतिपूरक बीमों में सतर्कता उपाय अपनाने व सामान्य औसत से कम दाता प्रस्तुत करने पर प्रीमियम में छू ट भी प्रदान की जाती है जो अंनत: बीमा लागत को कम करती है।
 
14. सामाजिक प्रतिष्ठा व आत्म सम्मान में वृद्धि - बीमा समाज में व्यक्ति के आत्म सम्मान व प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है। जिन लोगों का बीमा होता है समाज उन्हे अधिक सुरक्षित समझ कर सम्मान करता है , मुसीबत के समय उन्हें दूसरों की ओर नहीं दे खना पड़ता है , वे आसानी से बीमा पत्र पर ऋण भी प्राप्त कर सकते है।
 
15. वृद्धावस्था में सहारा:- वर्तमान में जबकि संयुक्त परिवार प्रथा का लोप हो रहा है बीमा व्यक्ति की वृद्धावस्था का सहारा ब नता जा रहा है। वृद्धावस्था मे आय के स्त्रोत सीमित हो जाते हैं व उत्तरदायित्व बढ़ जाते है , ऐसे में बीमा से प्राप्त धन ही उसका प्रमुख सहारा बनता है।
 
=== व्यावसायिक / आर्थिक दृष्टि से महत्व ===
वर्तमान आर्थिक जगत की कल्पना बीमा के बिना अधूरी है। व्यवसायी बीमा करवाने की रूपरे खा बना ले ता है ताकि वह पूर्ण शान्ति व तन्मयता के साथ व्यावसायिक क्रियाओं को पूरा कर सके। विख्यात प्रबन्ध विचारक पीटर एफ ड्रकर के अनुसार- “यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण नहीं है कि बीमा के बिना औद्योगिक अर्थव्यवस्था कोई भी कार्य नहीं कर सकती है।” वास्तविक स्थिति यही है कि बीमा व्यवसाय के सफल संचालन के लिए अपरिहार्य है। आर्थिक दृष्टि से बीमा का महत्व निम्न प्रकार से दृष्टिगोचर होता है -
 
1. बचतों को प्रोत्साहन - बीमा अनिवार्य बचत का एक साधन है। बीमा लोगों को छोटी-छोटी बचतें करने की आदत को प्रोत्साहन दे ता है। छोटी सी प्रीमियम के द्वारा वह भविष्य के कई बड़े सपनों को आसानी से पूरा कर सकता है। बीमा कम्पनी को इन बीमितों की छोटी-छोटी बचतों से करोड़ों रुपयों की प्रीमियम राशि प्राप्त होती है जो संचित होकर एक मोटी धन राशि बन जाती है। जिन्हें बीमा कम्पनी आवश्यक खर्चों की पूर्ति के पश्चात् सामाजिक व राष्ट्रीय हित की योजनाओं में विनियोग कर दे ती है।
 
2. पूंजी निर्माण - बीमितों से प्राप्त प्रब्याजि की राशि को बीमा कम्पनी जब विभिन्न राष्ट्रीय योजनाओं में विनियोग करती है , तो उससे व्यापार व व्यवसाय को आसानी से पूंजी की प्राप्तिहो जाती है , व कई लोगों को रोजगार की प्राप्ति भी होती है।
 
3. विनियोग का साधन - बीमा अनुबन्ध में प्रीमियम के रूप में प्राप्त राशि से पूंजी का सृजन होता है इस पूंजी का विनियोग व्यापार , व्यवसाय उद्योग व अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। जनता प्रत्यक्ष रूप से व्यवसाय में उतनी छोटी राशि का विनियोग कर लाभ प्राप्त नहीं कर सकती है पर इस अप्रत्यक्ष विनियोग के द्वारा बीमितों को बीमापत्र पर अधिक बोनस की प्राप्ति होती है साथ ही राष्ट्र का आर्थिक विकास भी होता है।
 
4. व्यापार व वाणिज्य में वृद्धि - बीमा के द्वारा विभिन्न प्रकार की जोखिमों को सुरक्षा प्रदान की जाती है जिससे दे शी व विदे शी दोनों ही प्रकार के व्यापार में वृद्धि होती है। बीमा का प्रादुर्भाव व विकास ही मूलत : सामुद्रिक बीमा के रूप में हुआ है। जिससे जोखिम युक्त व्यापारिक समुद्री यात्राओं को सुरक्षा प्रदान की जाती थी, फिर अग्नि बीमा का विकास हुआ जिसमें कारखानों, गोदामों, कार्यालयों व अन्य सम्पत्तियों की अग्नि से सुरक्षा हेतु उपाय व बीमा किया जाने लगा।
 
इस प्रकार की हानियों से सुरक्षा मिलने पर व्यवसायी भयमुक्त होकर निश्चितता के साथ व्यापार करते हैं और जोखिम उत्पन्न होने पर बीमा एक सच्चे दोस्त के रूप में सहायता करता है।
 
5. औद्योगिकरण के लिए आधारभूत संरचना के विकास में सहायक - बीमा संस्थाएँ दे श में शक्ति, परिवहन, संचार, औद्योगिक सम्पदा आदि साधनों के विकास के लिए भारी मात्रा में धनराशि उपलब्ध कराती है जिससे दे श में औद्योगीकरण हेतु आधारभूत ढ़ाँ चा तैयार होता है।
 
6. वृहत् पैमाने के व्यवसायों का विकास :- बीमा ने अनेक बड़े व्यवसायों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। प्रो. मे गी ने लिखा भी है कि बीमा के बिना वृहत व्यावसायिक संस्थाओं का अस्तित्व संभव नहीं हो सकता है। बीमा कम्पनी इन विशाल व्यवसायिक संस्थाओं हेतु वित्त उपलब्ध तो करती ही है साथ ही बहुत कम प्रीमियम पर सुरक्षा भी प्रदान करती है।
 
7. लघु व कुटीर उद्योगों का विकास:- वृहत पैमाने के उद्योगों के साधन भी विस्तृत होते हैं। वे आकस्मिक हानि को वहन कर सकते हैं , परन्तु लघु पैमाने के उद्योगों में यदि कोई जोखिम उत्पन्न हो जाये तो वे उसका सामना नही कर सकते व उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है परन्तु बीमा के द्वारा इन उद्योगों को सुरक्षा प्रदान की जाती है अत : वे पूर्ण निश्चितता के साथ व्यवसाय का संचालन करते हैं।
 
8. उद्यमिता का विकास - बीमा के द्वारा उद्यमिता का विकास होता है , क्योंकि व्यवसाय व उद्योग का बीमा होने से उद्यमियों की जोखिम कम हो जाती है। वे पूर्ण आत्मविश्वास व निश्चितता के साथ नये व्यवसाय को प्रारम्भ करते हैं। वित्तीय संस्थाओं के द्वारा ऋण भी आसान शर्तों पर प्राप्त हो जाता है। कई तकनीकी व पेशेवर शिक्षा प्राप्त युवक, कई बड़े उपक्रम स्थापित कर रहे हैं।
 
9. सेवा क्षेत्र के उपक्रमों का विकास - वर्तमान में सभी दे शों में से वा क्षे त्र के उपक्रमों का विकास हो रहा है। इन उपक्रमों की सफलता इनके द्वारा दी जाने वाली से वाओं की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। ये संस्थाएं भी दायित्व बीमा करवाती है ताकि जोखिमों को सीमित किया जा सके। इससे इन उपक्रमों के विकास में पर्याप्त योगदान मिल रहा है।
 
10. विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन - विदेशी व्यापार में कई जोखिमें होती है जैसे - समुद्री मार्ग से माल भे जने की जोखिम, आयातक व निर्यातक दे श के राजनायिक सम्बन्धों से उत्पन्न जोखिमें आदि। बीमा कम्पनी से सुरक्षा मिलने पर व्यवसायी विदे शी व्यापार की जोखिमों से बच सकता है।
 
11. साझेदारी व्यवसाय में स्थायिता - साझेदारी फर्म में किसी साझेदार की मृत्यु होने या अचानक कोई जोखिम उत्पन्न होने पर फर्म में भारी संकट उत्पन्न हो सकता है। ऐसे संकटों से निपटने के लिए साझेदारों का संयुक्त बीमा करवाया जा सकता है जिससे किसी साझेदार की मृत्यु होने पर प्राप्त राशि से फर्म से उसके हिस्से को चुकाया जा सकता है व दूसरी ओर बीमा राशि की पूर्ति नहीं होने से उस बीमा राशि से साझेदारों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से हो जाती है।
 
12. रोजगार के अवसरों का विकास - बीमा व्यवसाय से दे श में रोजगार के अवसरों का विकास होता है। बीमा से दे श में व्यवसाय व उद्योगों का विस्तार होता है जिससे उसमें अनेक स्तरों पर कार्य करने हेतु व्यक्तियों को रोजगार मिल ता है। बीमा व्यवसाय के कारण विभिन्न प्रकार के बीमों यथा-समुद्री , अग्नि, दुर्घटना, जीवन, व अन्य प्रकार के बीमों का विस्तार होता है जिससे बीमा संगठन में ही बड़ी मात्रा में कर्मचारियों व एजे न्टों की नियुक्ति की जाती है।
 
13. व्यावसायिक स्थायित्व में सहायक - बीमा दे श में व्यावसायिक स्थायित्व के लिए आधार तैयार करता है। इसका कारण है कि व्यावसायिक जोखिमों को बीमा के माध्यम से सीमित किया जा सकता है जिससे दे श में व्यावसायिक विकास हेतु अनुकू ल परिस्थितियों बनती है व व्यावसायिक स्थिरता आती है।
 
14. महत्वपूर्ण व्यक्तियों की हानि से सुरक्षा - प्रत्येक संस्था के लिए कुछ महत्वपूर्ण व्यक्तियों का जीवन अमूल्य होता है। उन व्यक्तियों की ख्याति, क्षमता, प्रबन्ध चातुर्य आदि के कारण संस्थाएं लाभ अर्जित करती है। उन महत्वपूर्ण व्यक्तियों के न रहने पर संस्थाखतरे में पड़ जाती है अत: इस आर्थिक खतरे से संस्था को बचाने हेतु इन महत्वपूर्ण व्यक्तियों का बीमा करवा लिया जाता है। इन व्यक्तियों की मृत्यु होने पर संस्था को बीमा कम्पनी से क्षतिपूर्ति प्राप्त हो जाती है।
 
15. सुरक्षा विधियों को प्रोत्साहन - बीमा कम्पनी बीमितों को सुरक्षा विधियां अपनाने पर जोर दे ती है। जो संस्था इन उपायों को अपनाती है उन्हें प्रीमियम में छू ट भी प्रदान की जाती है। 16. दुर्घटनाओं की लागत को निश्चित करना:- कुछ दुर्घटना बड़ी तो कुछ छोटी होती है। यदि इन दुर्घटनाओं की लागत को वस्तु की लागत में जोड़ा जाये तो लागतें बहु त बढ़ जायेगी व वह उद्यमी प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जायेगा। अत: इन दुर्घटनाओं की अनिश्चितता को बीमा द्वारा निश्चितता में बदला जा सकता है।
 
17. कर्मचारी हितों की सुरक्षा - व्यवसाय में लाभ व हानि दोनों की संभावनाएं होती है। हानि की स्थिति का बुरा प्रभाव कर्मचारियों पर पड़ता है और उन्हें नौकरी से निकलना भी पड़ सकता है। यदि व्यावसायिक संस्थाएं कर्मचारियों के लिए ग्रेच्युटी, पें शन, तथा अन्य लाभों का बीमा करवा दे तो उनके हित सुरक्षित हो जाते हैं।
 
18. कर्मचारी सुरक्षा योजनाओं का आसान प्रबन्ध - दे श के कानू नों के अनुसार से वायोजकों को कर्मचारियों के कल्याण हेतु अनेक योजनाओं जैसे - पें शन, ग्रे च्युटी, बीमारी लाभ, अपंगता या मृत्यु पर आश्रितों की आय की सु रक्षा, गर्भावस्था व शिशु जन्म पर लाभ आदि का संचालन बीमा के द्वारा जैसे सामू हिक बीमा योजना , सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का संचालन कर के पूरा करती है। साथ ही कानूनी दायित्वों की भी पूर्ति कर सकते है।
 
19. मानव संसाधन विकास में योगदान - बीमा संस्थाओं द्वारा एजे ण्टों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किये जाते है जो उनके व्यक्तित्व व कुशलता में योगदान दे ते हैं। यही नहीं बल्कि बीमित संस्थाओं के अधिकारियों व कर्मचारियों को भी परिसम्पत्तियों के रखरखाव व सु रक्षा के लिए प्रशिक्षण दे ती है। इससे मानव संसाधन विकास में योगदान मिलता है।
 
=== सामाजिक दृष्टि से महत्व===
समाज में स्थायित्व व सामाजिक समस्याओं के निवारण हेतु बीमा एक महत्वपूर्ण औजार है। समाज को बीमा से अनेक लाभ है जो इस प्रकार है -
 
1. सामाजिक सुरक्षा का साधन - बीमा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है। बीमा करा कर व्यक्ति अपनी चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है। जीवन बीमा के द्वारा वृद्धावस्था, अपंगता, बीमारी व मृत्यु होने पर आश्रितों को सामाजिक सुरक्षा प्राप्त होती है। अग्नि बीमा से बहुमू ल्य सम्पत्तियों , औद्योगिक संस्थाओं की सुरक्षा, तो सामुद्रिक बीमा से मार्ग की कठिनाईयों व माल को होने वाली क्षति से सुरक्षा प्राप्त कर सकता है। इन सुरक्षा तत्वों के कारण बीमा समाज के प्रत्येक क्षेत्र में महत्वपूर्ण बनता जा रहा है।
 
2. जोखिमों का अन्तरण - बीमा के द्वारा बीमित एक व्यक्ति की जोखिमों को अनेक व्यक्तियों के समू ह में बाँट दिया जाता है। क्षति का दायित्व बीमित प र या किसी एक व्यक्ति पर नहीं रह कर सम्पूर्ण समू ह को (बीमाकर्ता ) वितरित हो जाता है जो पूरे समाज के लिए हितकर होता हैं।
 
3. पारिवारिक जीवन में स्थायित्वता - बीमे के द्वारा परिवार में स्थायिता लायी जा सकती है। परिवार के मुखिया की मृत्यु होने पर पूरा पारिवारिक जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। किन्तु जीवन बीमा के द्वारा व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् भी परिवा र को स्थायित्व प्रदान कर सकता है।
 
4. पारिवारिक विघटन से सुरक्षा - संयुक्त परिवार तो स्वयं बीमे के समान सुरक्षा प्रदान करता है परन्तु एकल परिवारों में यदि मुखिया की मृत्यु हो जाये तो उसकी विधवा पत्नी एवं बच्चों पर ही परिवार का पूरा दायित्व आ जाता है। ऐसी स्थिति में सभी पारिवारिक सम्बन्धों को बनाये रखने पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं। कई बार तो माँ की व्यस्तता व शोकाकुलता के कारण बच्चे गलत राह पर भी अग्रसर हो जाते हैं। परन्तु जीवन बीमा से बीमा राशि समय पर उपलब्ध होने से परिवार का पूर्व नियोजित तरीके से विकास में योगदान मिलता है।
 
5. सामाजिक सन्तोष - बीमा से समाज के सभी वर्गों को लाभ पहु$1चता है अत : समाज में सामाजिक सन्तोष की भावना पनपती है व सामाजिक सन्तुष्टि रहती हैं।
 
6. सामाजिक प्रतिष्ठा का द्योतक - बीमा आज के युग में सामाजिक प्रतिष्ठा का द्योतक भी माना जाता है। जो व्यक्ति अपने जीवन व सम्पतियों का जितना अधिक व उपयुक्त बीमा करवाता है वह उतना ही प्रतिष्ठित माना जाता है। समाज शिक्षित व उन्नत होता है।
 
7. सामाजिक बुराइयों की रोकथाम - बीमा के द्वारा व्यक्तियों के जीवन में आर्थिक निश्चितता आती 'है , जिससे व्यक्ति की मृत्यु पर भी आश्रित बेसहारा नहीं होते हैं। इसी प्रकार अन्य क्षतिपूरक बीमों से भी व्यक्ति की सम्पतियां सुरक्षित हो जाती है। अत: जोखिम उत्पन्न होने पर उसकी आर्थिक व सामाजिक स्थिति खराब नही होती है तथा सामाजिक बुराइयां जन्म भी नहीं ले ती है।
 
8. शिक्षा को प्रोत्साहन:- बीमा के द्वारा शिक्षा को भी प्रोत्साहित किया जाता है। शिक्षा बीमापत्र क्रय करके माता-पिता बच्चों की शिक्षा की समुचित व्यवस्था कर सकते हैं।
 
9. सतर्कता को प्रोत्साहन - बीमा समाज में लोगों को सतर्कता हेतु भी प्रोत्साहित करता है। बीमा कम्पनियां उन सम्पत्तियों के बीमा प्रीमियम राशि में छू ट दे ती है जो सतर्कता उपायों को अपनाती है व सामान्य औसत से कम दावा राशि प्रस्तुत करती है। बीमा कम्पनी स्वयं भी समय-समय पर सतर्कता उपायों से अवगत कराती रहती है।
 
10. सभ्यता और संस्कृति का विकास - कोई भी समाज कितना सभ्य, सुसंस्कृत और विकसित है इसकी कसौटी वहाँ की बीमा प्रणाली है। जिस दे श में बीमा का विकास नहीं उसे पिछड़ा ही माना जाता है। सामाजिक परिसम्पत्तियों की सुरक्षा के साथ बीमा समाज की मानवीय व मौलिक सम्पत्तियों की सुरक्षा करता है। बीमा अनुबन्ध में वर्णित शर्तों के अनुसार इन संसाधनों की सुरक्षा की व्यवस्था बीमित को करनी होती है। इसके अतिरिक्त बीमा कम्पनियां बीमित विषय-वस्तु की सुरक्षा के बारे में जनशिक्षण भी दे ती है। परिणाम स्वरूप बीमा के द्वारा सामाजिक परिसम्पत्तियों की सुरक्षा होती है।
 
11. रोजगार अवसरों का विकास - बीमा से समाज में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होती है। बीमा कम्पनियों में कई हजार कर्मचारी विभिन्न पदों पर व कई बीमा एजे ण्ट भी कार्यरत है। एक अनुमान के अनुसार सामान्य बीमा निगम व उसकी सहायक कम्पनियों में लगभग 85000 तथा जीवन बीमा निगम में लगभग सवा लाख कर्मचारी कार्य रत है। इतना ही नहीं , जीवन बीमा निगम के ही पाँच लाख से अधिक एजे ण्ट भी कार्यरत है।
 
12. सामाजिक उत्थान कार्यों में योगदान - दे श का विकास सामाजिक उत्थान के बिना अधू रा ही है। सामाजिक उत्थान हेतु गरीबी एवं आर्थिक असमानता का निवारण करना होता है। बीमा कम्पनी सामाजिक क्षेत्र में असंगठित लोगों जैसे -श्रमिक, खाती, मोची, लौहार आदि, आर्थिक रूप से गरीब पिछड़े लोगों, अनौपचारिक क्षेत्र के लोगों जैसे - स्वयं नियोजित व्यक्ति-फुटकर व्यापारी. नल- बिजली का कार्य करने वाले व्यक्ति आदि का बीमा करती है। बीमा कम्पनी इन व्यक्तियों का बीमा स्वयं की ओर से व केन्द्रीय व राज्य सरकार के सहयोग से भी करती है जैसे -जनश्री बीमा योजना। “बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण” ने भी सभी बीमाकर्ताओं के लिए सामाजिक क्षेत्र के पिछड़े लोगों का बीमा करना अनिवार्य कर दिया है। प्राधिकरण के नियमानुसार प्रत्येक नये बीमाकर्ता के लिए प्रथम वर्ष ऐसे 5000 जीवन व पाँच वर्षों में यह संख्या 20,000 तक पहु$1च नी होती है।
 
13. नागरिक दायित्वों से सुरक्षा - कई औद्योगिक संस्थाओं में कई खतरनाक रसायनों व गैसों का उपयोग करना होता है , खतरनाक अपशिष्ट भी निकलते है , औद्योगिक निर्माण प्रक्रिया भी आसपड़ौस के लोगों के लिए खतरनाक हो सकती है। ऐसी संस्थाएँ अपना नागरिक दायित्व बीमा करवा ले ती है और जोखिम के प्रभावों से बच जाती है।
 
14. जीवनस्तर में सुधार - बीमा लोगों को बचत करने व जोखिमों को बीमा कम्पनी को अन्तरित करने का अवसर दे ती है। इससे लोगों की आर्थिक स्थिति सन्तुलित होती है व जीवन स्तर के सुधार हेतु अतिरिक्त साधनों का उपयोग किया जा सकता है।
 
15. परोपकारी कार्यों को प्रोत्साहन - व्यक्ति अपनी वृद्धावस्था में अथवा मृत्यु के पश्चात् किसी संस्था को दान दे ना चाहते हैं परन्तु जीवित रहते हुए स्वयं की आर्थि क सुरक्षा भी चाहते है ऐसे में वे बीमापत्र क्रय कर के उसका नामांकन उस संस्था के नाम कर दे ते हैं जिसको दान दिया जाना है। बीमित की मृत्यु पर नामांकित को उस बीमापत्र का भुगतान हो जाता है।
 
16. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता - बीमा कम्पनियां बीमा करते समय भी कई प्रकार की जांच करवाती है जिससे कई बीमारियों की जानकारी हो जाती है। अच्छे स्वास्थ्य को बनाये रखने हेतु शिक्षाप्रद सामग्री का भी वितरण करती है। इन सभी उपायों से लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है।
 
=== राष्ट्रीय दृष्टि से उपादेयता ===
बीमा से केवल व्यक्ति को ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र को लाभ होता है। जिसका विवरण इस प्रकार है-
 
1. राष्ट्रीय बचत में वृद्धि - बीमा करवाने हेतु प्रत्येक व्यक्ति बचत करता है। ये छोटी-छोटी बचतें कुल राष्ट्रीय बचत में वृद्धि करती है।
 
2. मुद्रा बाजार के विकास में योगदान - बीमा प्रीमियमों की बड़ी राशि से दे श के मुद्रा बाजार के विकास में भी योगदान मिलता है। फलत: अल्पकालीन व दीर्घकालीन प्रतिभू तियों का ले नदे न आसान हो जाता है। सरकारी बैंक तथा कम्पनियां , सभी अपनी आवश्यकतानुसार मुद्रा तत्काल प्राप्त व विनियोग भी कर सकती है।
 
3. प्राकृतिक जोखिमों से सुरक्षा - बीमा सुविधा से ही अर्थव्यवस्था के सभी घटकों को विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक जोखिमों से सुरक्षा उपल ब्ध हो रही है। बीमा कम्पनियां अग्नि, अतिवृष्टि, समुद्री मार्ग की जोखिमों , तटीय क्षेत्रों की जोखिमों आदि का बीमा करती है और उन लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा प्रदान करती है और राष्ट्र के आर्थिक विकास की गति को आगे बढ़ाने में योगदान दे ती है।
 
4. मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण - बीमा प्रीमियम के रूप में एकत्रित धन बाजार में मुद्रा प्रसार को रोकता है , बाद में इसी धन का उद्योगों के विकास में उपयोग किया जाता है। भारत में कुल प्रचलित मुद्रा का लगभग 5 प्रतिशत भाग बीमा प्रीमियम के रूप में एकत्रित होता है।
 
5. विनियोग को प्रोत्साहन - बीमा के द्वारा व्यक्ति छोटी-छोटी बचतें एकत्रित कर के विभिन्न प्रकार के बीमापत्रों को खरीदता है उस प्रीमियम राशि का निश्चित प्रतिशत भाग उद्योगों में विनियोजित किया जाता है।
 
6. विदेशी मुद्रा कोष में योगदान - बीमा संस्थाओं द्वारा विदे श में भी बीमा व्यवसाय किया जाता है। विदे शों में बीमा व्यवसाय से विदे शी मुद्रा की प्राप्ति होती है।
 
7. स्कन्ध विनियम केन्द्रों का विकास - बीमा कम्पनी अपने सं चय कोषों का एक भाग स्कन्ध विनिमय केन्द्रों में भी विनियोग करती है व निरन्तर सक्रियता से अंश विनिमय व्यवसाय में हिस्सा ले ती है अत: स्कन्ध विनियम केन्द्रों का भी विकास होता है।
 
8. वृहत पैमाने के उद्योगों को पूंजी की उपलब्धता - बीमा कम्पनियां अपने संचय कोषों से उद्योगों के अंश व ऋणपत्रों को क्रय करती है जिससे इन उद्योगों को भारी मात्रा में दीर्घकालीन व अल्पकालीन दोनों ही प्रकार की अंशपूंजी प्राप्त होती है।
 
9. सरकारी प्रतिभू तियों में निवेश द्वारा आर्थिक परियोजनाओं में योगदान - बीमा संस्थाओं ने केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों की प्रतिभू तियों तथा इनके द्वारा गारन्टी युक्त अन्य प्रतिभू तियों में निवेश कर दे श के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन प्रतिभू तियों में निवेशित राशि दे श की आर्थिक परियोजनाओं को पूरा करने में व्यय की जाती है। जिससे दे श का आर्थिक विकास होता है।
 
10. मध्यम व लघु व्यवसायों को प्रोत्साहन - ये संस्थाएं सम्पूर्ण व्यवसाय का बीमा करवा कर व्यवसाय के कुशल संचालन पर पूर्ण ध्यान दे सकती है। बैंक व वित्तीय संस्थाएं भी बीमा के आधार पर ऋण उपलब्ध करवाती है। ये लघु व मध्यम व्यवसायी दे शी व विदे शी व्यापार को योगदान के साथ ही कुल राष्ट्रीय उत्पादन व आय में वृद्धि भी करते हैं।
 
11. देश में रोजगार को बढ़ावा - बीमा कम्पनी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से दे श में रोजगार को बढ़ावा दे ती है। वह स्वयं कई व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है व इनके द्वारा बीमित संस्थाएं भी रोजगार का सृजन कर कुल राष्ट्रीय आय में वृद्धि कर रही है।
 
12. राष्ट्रीय महत्व के जोखिम युक्त कार्यों को प्रोत्साहन - बीमा ने ऐसे कई कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहन दिया है जिनमें बहुत अधिक जोखिम विद्यमान होती है। उदाहरण -विश्वस्तरीय खेलकू द प्रतियोगिताओं , आधुनिक सैनिक उपकरणों का परीक्षण, अन्तरिक्ष यान एवं प्रयोगशालाएं आदि जोखिमयुक्त कार्यों में बीमा सहयोग कर रहा है।
 
13. राष्ट्रीय आय व उत्पादन में भी निरन्तरता - राष्ट्रीय आय की निरन्तरता को बनाये रखने में भी बीमा का योगदान है। अनेक प्राकृतिक व मनुष्यकृत कारणों से प्रतिवर्ष कई उद्योगों व्यवसाय, जहाज आदि नष्ट होते हे जिनसे सरकार को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों की प्राप्ति होती है , लाखों लोगों को रोजगार व करोडों रूपये के माल व से वाओं का उत्पादन होता है , यदि इनका बीमा न हो तो इनमें से अधिकांश इकाईयां पुन:स्थापित नहीं हो सकेगी व बेरोजगारी फै ल जायेगी। परन्तु बीमा के कारण ये उद्योग पुन : स्थापित हो जाते है व राष्ट्रीय आय व उत्पादन में निरन्तरता बनी रहती है।
 
14. सम्पूर्ण राष्ट्रीय विकास में योगदान - उद्योगों के विकास, रोजगार अवसरों के विकास, अधिक बचत व पूंजी निर्माण आदि सभी घट क सम्पूर्ण राष्ट्रीय विकास में योगदान करते हैं। बीमा के उपरोक्त लाभों व महत्व को दे खकर हम कह सकते हैं कि- ''बीमा में दया समान गुण होते हैं। इसमें बीमाकर्ता व बीमित दोनों सौभाग्यशाली होते हैं तथा बीमा जन्म से ले कर मृत्यु तक सहायक सिद्ध होता है। ”
 
== बीमा की सीमाएँ ==
 
अनिश्चितताओं एवं आशंकाओं से भरे जीवन में बीमा अत्यधिक महत्वपूर्ण है , आज बीमा - सम्पूर्ण व्यावसायिक जगत एवं मानव समु दाय की प्राथमिक आवश्यकता बन गया है फिर भी बीमा की अपनी कुछ सीमाएँ है जिनके कारण बीमा के वांछित लाभ नही मिल पाते हैं। बीमा की कुछ सीमाएं इस प्रकार है -
 
1. '''सभी जोखिमों का बीमा नहीं कराया जा सकता''' - जीवन में अनेक जोखिमें विद्यमान है परन्तु सभी का बीमा सम्भव नहीं है केवल शुद्ध जोखिमों का ही बीमा करवाया जा सकता है , परिकल्पी जोखिमों का बीमा नहीं करवाया जा सकता है।
 
2. '''ऊंची प्रीमियम दरें''' - दे श में जीवन बीमा के प्रति लोगों की विशेष रूचि नहीं है। वाहन बीमा भी कानूनी अनिवार्यता के कारण करवाया जाता है। बड़े कारखानों का बीमा प्रचलित है परन्तु मकान, दुकान, चोरी आदि का बीमा अधिक चलन में नहीं है। इन सब का मुख्य कारण बीमा प्रीमियम का ऊंचा होना है।
 
3. '''नैतिक संकट'''- बीमा करवाने वाले कुछ लोग बीमा का दुरूपयोग भी करते है। निम्न परिस्थितियों में व्यक्ति की नैतिक कमजोरियों के कारण बीमा की सफलता संदिग्ध हो जाती है -
 
*(क) कुछ लोग बीमा सेवा का आवश्यकता से अधिक उपयोग करना चाहते हैं जैसे -आवश्यकता से अधिक समय अस्पताल में रुक कर ईलाज करवाना क्योंकि बीमा कम्पनी भुगतान कर रही है।
 
*(ख) कुछ लोग बीमाकृत जीवन व सम्पति को अपनी से वाएं दे ने के बदले अधिक पारिश्रमिक वसूल करते हैं। उदाहरण-बीमित रोगी से डॉक्टर द्वारा अधिक फीस वसू ल करना।
 
*(ग) बीमाकृत सम्पत्ति का लापरवाही से प्रयोग करना।
 
*(घ) बीमितों द्वारा नुकसान को बढ़ा चढ़ा कर बताया जाना।
 
4. '''बीमा लाभकारी विनियोग नहीं है''' - बीमा सुरक्षा के साथ-साथ निवेश भी है किन्तु यह बहुत आकर्षक निवेश भी नहीं है। इससे प्राप्त होने वाला लाभ अन्य निवेशों से कम ही है। क्षतिपूरक बीमा में व्यक्ति को केवल वास्तविक क्षति प्राप्ति का ही अधिकार होता है। अत इसे आकर्षक निवेश नहीं माना जाता है।
 
5. '''बीमा की ऊंची संचालन लागतें''' - बीमा कम्पनियां प्रीमियम का लगभग 20 प्रतिशत भाग अपने संचालन पर ही खर्च कर दे ती है। जिससे अन्तत: प्रीमियम दरों में वृद्धि होती है।
 
6. '''एकाकी व्यक्ति की जोखिम का सीमा समग्र नही''' - बीमा की सफलता तभी संभव है जब समान प्रकार की जोखिमों से घिरे व्यक्तियों का बड़ा समूह हो। यदि किसी एक व्यक्ति या बहुत कम व्यक्तियों को जोखिम हो तो उनका बीमा करना संभव नहीं होता है।
 
7. '''बीमा केवल वित्तीय मूल्य तक ही सीमित''' - किसी घटित होने वाली घटना की वास्तविक हानि का मुद्रा में मापन हो सके तो ही बीमा संभव है। इस प्रकार केवल भौतिक हानियों का बीमा, पर अमौद्रिक हानियों जैसे मानसिक पीड़ा, उत्पीडन, तनाव, चिन्ता, आदि की क्षतिपूर्ति का मापन व बीमा दोनों ही संभव नहीं है।
 
8. '''कुछ बीमा पत्र केवल सरकारी सहयोग पर निर्भर'''- निजी बीमाकर्ता कुछ विशिष्ट प्रकार की जोखिमों का बीमा नहीं कर सकते हैं , उनमें सरकारी सहयोग की आवश्यकता होती है। जैसे -बेरोजगारी बीमा आदि।
 
== इन्हें भी देखें ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/बीमा" से प्राप्त