"विकिपीडिया:वार्ता दिशानिर्देश": अवतरणों में अंतर

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सोशल मीडिया पर सुलगते दंगे
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<ref>'''सोशल मीडिया पर सुलगते दंगे''' --~~~~--~~~~ “ आओ भाई बैजू आओ
{{दिशानिर्देश}}
आओ भाई अशरफ आओ
मिलजुलकर छुरा
चलाए
 
मालिक रोज़गार देता है ,
पेट काट कर छुरा मंगाओ
फिर मालिक की दुआ मनाओ !
 
अपना अपना धरम बचाओ ,
मिलजुल कर छुरा
चलाओ !
 
आपस में कट कर मर जाओ
आओ भाई तुम भी आओ,
तुम भी आओ तुम भी आओ
 
छुरा
चलाओ धरम बचाओ
आओ भाई आओ आओ
 
छुरा घोप कर चिल्लाए
हर हर शंकर
छुरा घोप कर चिल्लाए
अल्लाह हो अकबर!!! “
 
मशहूर कवि गोरखनाथ पांडे की दंगों पर रचित ये पंक्तिया हमे एक पल सोचने के लिए कह रही है ! दोस्तों , सांप्रदायिक दंगों और उन्मादो से आप सब अच्छी तरह परिचित है और आप में से बहुत से लोगो ने इस दंश को झेला भी होगा ! हमारे देश में नेताओं की दंगों पर आधारित राजनीति और कट्टरपंथियों के धार्मिक उन्माद हमारी सांप्रदायिक सौहार्द और शांति पर समय समय पर आघात पहुँचाते है ! बिना लोगो में दंगा फसाद के ये धर्म और राजनीति के ठेकेदार अपनी अपनी दुकानें नहीं चला सकते है ! लोगो में भावनाएं भड़का कर और धर्म की आड़ में आपस में लड़वाकर ये नेता कट्टरपंथी तो अपनी अपनी रोटियाँ सेक लेते है वही दंगा पीड़ित अपनी ज़मीन से पलायन होकर और अपनों को खोकर ज़िंदगी गुज़र बशर करने के लिए रोटियों के मोहताज़ हो जाते है ! जरा एक पल के लिए सोचिये सदियों से चला आ रहा धर्म और परंपरा एक महज दंगे की कोरी अफ़वाह मात्र से क्या खतरे में पड़ सकता है ? वही एक दूसरे को आपस में सालों से दुःख सुख में सहयोग कर रहे लोग सोशल मीडिया पर कुछ असामाजिक और शरारती तत्वों की महज कोरी अफ़वाह से एक दूसरे से खून के प्यासे क्यों हो जाते हैI आज के इस इंटरनेट के युग में सोशल मीडिया पर आग की तरह फैलते दो अक्षर के इस शब्द "दंगा" से कैसे मिनिटो में में दो पड़ोसियों और एक दूसरे के सुख दुःख के साथियों के बीच दरार ला सकता है ! आज इस लेख के माध्यम से समझने की कोशिश करते है !
 
 
अफ़वाहों के दंगे :
 
90 % दंगों की हक़ीक़त एक महज कोरी अफ़वाह पर टिकी होती है ! ये अफ़वाह आग की तरह फैलती हुई कई घरों को चपेट में ले लेती है ! ये शरारती तत्वों एवं असामाजिक तत्वों द्वारा फैलाई जाती है और ये लोगो की भीड़ में पहुँचती पहुँचती एक दंगे की शक्ल इख्तियार कर लेती है जिसका नुकसान भीड़ में ही मौजूद कमजोर पक्ष को उठाना पड़ता है ! आपके सामने कई दंगों के उदाहरण मौजूद है जिसमे बाद में पता चलता है की दंगों की असली वजह तो महज कोरी अफ़वाह थी परन्तु तब तब ये दंगों की लपेटे कई घरों को चपेट में ले लेती है और बरसों से आपस में बिना किसी भेदभाव के रह रहे लोगो को आपस में लड़वा कर अपने ही ज़मीन से पलायन करने को मजबूर कर देती है ! आप ऐसे मुज़फ्फर नगर और कैराना के दंगों से अच्छी तरह परिचित है ! हाल ही में करीब दो सप्ताह पूर्व भोपाल दंगों की भी यही कहानी है ! जिसमे एक मौलाना अपने लोगो को एक सूचना जारी करते है की नगर प्रसाशन द्वारा एक पुरानी मस्जिद को तोडा जा रहा है ! जबकि वो एक सरकारी भवन था जिसका जीर्णोद्धार किया जा रहा था और फिर क्या भीड़ पथराव पर आमादा हो जाती है वही एक अन्य युग पुरुष द्वारा लिखा जाता है की भोपाल में आने वाले 3 घंटो में हिन्दू मुस्लिम में दंगा भड़केगा और पुलिस मुसलमानों का साथ दे रही है ! अफ़वाहों के इस गरम बाजार में बैठे इन महान संदेशों को इनके सन्देश वाहक रोज़मर्रा और रोटी की जदोजहत में जूझती भीड़ में आग की तरह फैला देती है I इस तरह धर्म की रक्षा में खड़ी ये कायर भीड़ एक दूसरे की इंसानियत को नोचती है ,वही कट्टरपंथियों को एक और चौराहे तंबू लगाकर भीड़ को धरम की रक्षा का भाषण देकर चोला उड़ाने का मौका प्रदान कर देती है Iइसी बीच राजनीति के ठेकेदार अपनी अपनी वोट बैंकों की सियासत को चमका कर अपने भविष्य का मार्ग प्रशस्त करते है !
 
 
सोशल मीडिया प्रमुख हथियार :
 
दरअसल सोशल मीडिया आज के युग में ऐसा क्रांतिकारी प्रयोग है जिसमे लोगो को एक सार्वजनिक मंच दिया है जहां लोग एक दूसरे की बात को रख सकते है और अपना विचार प्रस्तुत कर सकते है परन्तु कुछ लोगो को लोगो का यूँ मिलनसार होना अपनी बातों को साझा करना अच्छा नहीं लगता और शांति के इस माहौल को भंग करने और भय का माहौल पैदा करने में मज़ा आता है इसीलिए अपने दिमाग में उपजी शैतानियत की इबादत को सोशल मीडिया पर उकेर देते है I हक़ीकत से कोसो दूर घटना को मनगढ़ंत अफ़वाह बना कर दंगों में तब्दील कर देते है और वही सोशल मीडिया के माध्यम से इस खेल को और अच्छे से खेल जाते है ! क्योंकि भारत जैसे इस बड़े देश में आज भी लोग अपने पर कोई आपबीती न आये इस चक्कर में धार्मिक फोटो और मंत्रो को 10 लोगो में शेयर करने से नहीं चूकते है तो ये बात तो दंगों की है साहब अपना धर्म पर आंच भला कौन बर्दाश्त करेगा वही कुछ तो इस घटना में अपने कोई ना फसे इस चक्कर में आगे फारवर्ड कर देते है ! फिर क्या महज़ एक कोरी अफ़वाह धर्म प्रेमियों को इंसानियत का धर्म भूल कर आपस में लडवा देती है और कईयो की ज़िंदगी और ज़मीन छीन लेती है !
 
" चिराग घर के घर ही जला रहे है यहां ,
मदारी अपनी ढपलिया बजा रहे है यहां
द्वेष वाली भावना के विष को घोलके
देश की अखंडता वो खा रहे है यहां "
 
 
 
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</ref>{{दिशानिर्देश}}
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{{विकिनीतियाँ और दिशानिर्देश}}
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सावन श्रीमाली द्वारा