"दार्जिलिंग": अवतरणों में अंतर

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इस स्‍थान की खोज उस समय हुई जब आंग्‍ल-नेपाल युद्ध के दौरान एक ब्रिटिश सैनिक टुक‍ड़ी सिक्किम जाने के लिए छोटा रास्‍ता तलाश रही थी। इस रास्‍ते से सिक्‍िकम तक आसान पहुंच के कारण यह स्‍थान ब्रिटिशों के लिए रणनीतिक रूप से काफी महत्‍वपूर्ण था। इसके अलावा यह स्‍थान प्राकृतिक रूप से भी काफी संपन्‍न था। यहां का ठण्‍डा वातावरण तथा बर्फबारी अंग्रेजों के मुफीद थी। इस कारण ब्रिटिश लोग यहां धीरे-धीरे बसने लगे।
 
प्रारंभ में दार्जिलिंग सिक्किम का एक भाग था। बाद में भूटान ने इस पर कब्‍जा कर लिया। लेकिन कुछ समय बाद सिक्किम ने इस पर पुन: कब्‍जा कर लिया। परंतु 18वीं१८वीं शताब्‍दी में पुन: इसे नेपाल के हाथों गवां दिया। किन्‍तु नेपाल भी इस पर ज्‍यादा समय तक अधिकार नहीं रख पाया। 1817१८१७ ई. में हुए आंग्‍ल-नेपाल में हार के बाद नेपाल को इसे ईस्‍ट इंडिया कंपनी को सौंपना पड़ा।
 
अपने रणनीतिक महत्‍व तथा तत्‍कालीन राजनीतिक स्थिति के कारण 1840१८४० तथा 50५० के दशक में दार्जिलिंग एक युद्ध स्‍थल के रूप में परिणत हो गया था। उस समय यह जगह विभिन्‍न देशों के शक्‍ित प्रदर्शन का स्‍थल बन चुका था। पहले तिब्‍बत के लोग यहां आए। उसके बाद यूरोपियन लोग आए। इसके बाद रुसी लोग यहां बसे। इन सबको अफगानिस्‍तान के अमीर ने यहां से भगाया। यह राजनीतिक अस्थिरता तभी समाप्‍त हुई जब अफगानिस्‍तान का अमीर अंगेजों से हुए युद्ध में हार गया। इसके बाद से इस पर अंग्रेजों का कब्‍जा था। बाद में यह जापानियों, कुमितांग तथा सुभाषचंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की भी कर्मस्‍थली बना। स्‍वतंत्रता के बाद ल्‍हासा से भागे हुए बौद्ध भिक्षु यहां आकर बस गए।
 
वर्तमान में दार्जिलिंग पश्‍िचम बंगाल का एक भाग है। यह शहर 3149३१४९ वर्ग किलोमीटर में क्षेत्र में फैला हुआ है। यह शहर त्रिभुजाकर है। इसका उत्तरी भाग नेपाल और सिक्किम से सटा हुआ है।
यहां शरद ऋतु जो अक्‍टूबर से मार्च तक होता है। इस मौसम यहां में अत्‍यधिक ठण्‍ड रहती है। यहां ग्रीष्‍म ऋतु अप्रैल से जून तक रहती है। इस समय का मौसम हल्‍का ठण्‍डापन लिए होता है। यहां बारिश जून से सितम्‍बर तक होती है। ग्रीष्‍म काल में ही यहां अधिकांश पर्यटक आते हैं।
 
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=== सक्या मठ ===
यह मठ दार्जिलिंग से आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सक्या मठ सक्या सम्‍प्रदाय का बहुत ही ऐतिहासिक और महत्‍वपूर्ण मठ है। इस मठ की स्‍थापना 1915१९१५ ई. में की गई थी। इसमें एक प्रार्थना कक्ष भी है। इस प्रार्थना कक्ष में एक साथ्‍ा 60६० बौद्ध भिक्षु प्रार्थना कर सकते हैं।
 
=== ड्रुग-थुब्तन-साङ्गग-छोस्लिंग-मठ ===
11वें ग्यल्वाङ ड्रुगछेन तन्जीन ख्येन्-रब गेलेगस् वाङ्गपो की मृत्‍यु 1960१९६० ई. में हो गई थी। इन्‍हीं के याद में इस मठ की स्‍थापना 1971१९७१ ई. में की गई थी। इस मठ की बनावट तिब्‍बतियन शैली में की गई थी। बाद में इस मठ की पुनर्स्‍थापना 1993१९९३ ई. में की गई। इसका अनावरण दलाई लामा ने किया था।
 
=== माकडोग मठ ===
यह मठ चौरास्‍ता से तीन किलोमीटर की दूरी पर आलूबरी गांव में स्थित है। यह मठ बौद्ध धर्म के योलमोवा संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ की स्‍थापना श्री संगे लामा ने की थी। संगे लामा योलमोवा संप्रदाय के प्रमुख थे। यह एक छोटा सा सम्‍प्रदाय है जो पहले नेपाल के पूवोत्तर भाग में रहता था। लेकिन बाद में इस सम्‍प्रदाय के लोग दार्जिलिंग में आकर बस गए। इस मठ का निर्माण कार्य 1914१९१४ ई. में पूरा हुआ था। इस मठ में योलमोवा सम्‍प्रदाय के लोगों के सामाजिक, सांस्‍‍कृतिक, धार्मिक पहचान को दर्शाने का पूरा प्रयास किया गया है।
=== जापानी मंदिर (पीस पैगोडा) ===
विश्‍व में शांति लाने के लिए इस स्‍तूप की स्‍थापना फूजी गुरु जो कि महात्‍मा गांधी के मित्र थे ने की थी। भारत में कुल छ: शांति स्‍तूप हैं। निप्‍पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर जो कि दार्जिलिंग में है भी इनमें से एक है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1972१९७२ ई. में शुरु हुआ था। यह मंदिर 1 नवम्बर 1992१९९२ ई. को आम लोगों के लिए खोला गया। इस मंदिर से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का अति सुंदर नजारा दिखता है।
 
=== टाइगर हिल ===
टाइगर हिल का मुख्‍य आनंद इस पर चढ़ाई करने में है। आपको हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे। इसी के पास कंचनजंघा चोटी है। 1838१८३८ से 1849१८४९ ई. तक इसे ही विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था। लेकिन 1856१८५६ ई. में करवाए गए सर्वेक्षण से यह स्‍पष्‍ट हुआ कि कंचनजंघा नहीं बल्कि नेपाल का सागरमाथा जिसे अंगेजों ने एवरेस्‍ट का नाम दिया था, विश्‍व की सबसे ऊंची चोटी है। अगर आप भाग्‍यशाली हैं तो आपको टाइगर हिल से कंजनजंघा तथा एवरेस्‍ट दोनों चाटियों को देख सकते हैं। इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827८२७ फीट का अंतर है। वर्तमान में कंचनजंघा विश्‍व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है। कंचनजंघा को सबसे रोमांटिक माउंटेन की उपाधि से नवाजा गया है। इसकी सुंदरता के कारण पर्यटकों ने इसे इस उपाधि से नवाजा है। इस चोटी की सुंदरता पर कई कविताएं लिखी जा चुकी हैं। इसके अलावा सत्‍यजीत राय की फिल्‍मों में इस चोटी को कई बार दिखाया जा चुका है।
;शुल्‍क
केवल देखने के लिए नि: शुल्‍क
टावर पर चढ़ने का शुल्‍क 10१० रु.
टावर पर बैठने का शुल्‍क 30३० रु.
यहां तक आप जीप द्वारा जा सकते हैं। डार्जिलिंग से यहां तक जाने और वापस जाने का किराया 65६५ से 70७० रु. के बीच है।
 
=== घूम मठ (गेलुगस्) ===
टाइगर हिल के निकट ईगा चोइलिंग तिब्‍बतियन मठ है। यह मठ गेलुगस् संप्रदाय से संबंधित है। इस मठ को ही घूम मठ के नाम से जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार इस मठ की स्‍थापना धार्मिक कार्यो के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक बैठकों के लिए की गई थी।
 
इस मठ की स्‍थापना 1850१८५० ई. में एक मंगोलियन भिक्षु लामा शेरपा याल्‍तसू द्वारा की गई थी। याल्‍तसू अपने धार्मिक इच्‍छाओं की पूर्त्ति के लिए 1820१८२० ई. के करीब भारत में आए थे। इस मठ में 1918१९१८ ई. में बुद्ध की 15१५ फीट ऊंची मूर्त्ति स्‍थापित की गई थी। उस समय इस मूर्त्ति को बनाने पर 25000२५००० रु. का खर्च आया था। यह मूर्त्ति एक कीमती पत्‍थर का बना हुआ है और इसपर सोने की कलई की गई है। इस मठ में बहुमूल्‍य ग्रंथों का संग्रह भी है। ये ग्रंथ संस्‍कृत से तिब्‍बतीयन भाषा में अनुवादित हैं। इन ग्रंथों में कालीदास की मेघदूत भी शामिल है। हिल कार्ट रोड के निकट समतेन चोलिंग द्वारा स्‍थापित एक और जेलूग्‍पा मठ है।
समय: सभी दिन खुला। मठ के बाहर फोटोग्राफी की अनुमति है।
 
=== भूटिया-‍‍बस्‍ती-मठ ===
यह डार्जिलिंग का सबसे पुराना मठ है। यह मूल रूप से ऑब्‍जरबेटरी हिल पर 1765१७६५ ई. में लामा दोरजे रिंगजे द्वारा बनाया गया था। इस मठ को नेपालियों ने 1815१८१५ ई. में लूट लिया था। इसके बाद इस मठ की पुर्नस्‍थापना संत एंड्रूज चर्च के पास 1861१८६१ ई. की गई। अंतत: यह अपने वर्तमान स्‍थान चौरासता के निकट, भूटिया बस्‍ती में 1879१८७९ ई. स्‍थापित हुआ। यह मठ तिब्‍बतियन-नेपाली शैली में बना हुआ है। इस मठ में भी बहुमूल्‍य प्राचीन बौद्ध सामग्री रखी हुई है।
 
यहां का मखाला मंदिर काफी आकर्षक है। यह मंदिर उसी जगह स्‍थापित है जहां भूटिया-बस्‍ती-मठ प्रारंभ में बना था। इस मंदिर को भी अवश्‍य घूमना चाहिए।
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=== तेंजिंगस लेगेसी ===
हिमालय माउंटेनिंग संस्‍थान की स्‍थापना 1954१९५४ ई. में की गई थी। ज्ञातव्‍य हो कि 1953१९५३ ई. में पहली बार हिमालय को फतह किया गया था। तेंजिंग कई वर्षों तक इस संस्‍थान के निदेशक रहे। यहां एक माउंटेनिंग संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय में हिमालय पर चढाई के लिए किए गए कई एतिहासिक अभियानों से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है। इस संग्रहालय की एक गैलेरी को एवरेस्‍ट संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। इस गैलेरी में एवरेस्‍टे से संबंधित वस्‍तुओं को रखा गया है। इस संस्‍थान में पर्वतारोहण का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
 
प्रवेश शुल्‍क: 25२५ रु.(इसी में जैविक उद्यान का प्रवेश शुल्‍क भी शामिल है)
टेली: 0354०३५४-2270158२२७०१५८
समय: सुबह 10१० बजे से शाम 4:30३० बजे तक (बीच में आधा घण्‍टा बंद)। बृहस्‍पतिवार बंद।
 
=== जैविक उद्यान ===
पदमाजा-नायडू-हिमालयन जैविक उद्यान माउंटेंनिग संस्‍थान के दायीं ओर स्थित है। यह उद्यान बर्फीले तेंडुआ तथा लाल पांडे के प्रजनन कार्यक्रम के लिए प्रसिद्ध है। आप यहां साइबेरियन बाघ तथा तिब्‍‍बतियन भेडिया को भी देख सकते हैं।
 
मुख्‍य बस पड़ाव के नीचे पुराने बाजार में लियोर्डस वानस्‍पतिक उद्यान है। इस उद्यान को यह नाम मिस्‍टर डब्‍ल्‍यू. लियोर्ड के नाम पर दिया गया है। लियोर्ड यहां के एक प्रसिद्ध बैंकर थे जिन्‍होंने 1878१८७८ ई. में इस उद्यान के लिए जमीन दान में दी थी। इस उद्यान में ऑर्किड की 50५० जातियों का बहुमूल्‍य संग्रह है।
समय: सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक।
 
इस वानस्‍पतिक उद्यान के निकट ही नेचुरल हिस्‍ट्री म्‍यूजियम है। इस म्‍यूजियम की स्‍थापना 1903१९०३ ई. में की गई थी। यहां चिडि़यों, सरीसृप, जंतुओं तथा कीट-पतंगो के विभिन्‍न किस्‍मों को संरक्षत‍ि अवस्‍था में रखा गया है।
 
समय: सुबह 10१० बजे से शाम 4: 30३० बजे तक। बृहस्‍पतिवार बंद।
 
=== तिब्‍बतियन रिफ्यूजी कैंप ===
तिब्‍बतियन रिफ्यूजी स्‍वयं सहयता केंद्र (टेली: 0354०३५४-2252552२२५२५५२) चौरास्‍ता से 45४५ मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है। इस कैंप की स्‍थापना 1959१९५९ ई. में की गई थी। इससे एक वर्ष पहले 1958१९५८ ईं में दलाई लामा ने भारत से शरण मांगा था। इसी कैंप में 13वें१३वें दलाई लामा (वर्तमान में14में१४ वें दलाई लामा हैं) ने 1910१९१० से 1912१९१२ तक अपना निर्वासन का समय व्‍यतीत किया था। 13वें१३वें दलाई लामा जिस भवन में रहते थे वह भवन आज भग्‍नावस्‍था में है।
 
आज यह रिफ्यूजी कैंप 650६५० तिब्‍बतियन परिवारों का आश्रय स्‍थल है। ये तिब्‍बतियन लोग यहां विभिन्‍न प्रकार के सामान बेचते हैं। इन सामानों में कारपेट, ऊनी कपड़े, लकड़ी की कलाकृतियां, धातु के बने खिलौन शामिल हैं। लेकिन अगर आप इस रिफ्यूजी कैंप घूमने का पूरा आनन्‍द लेना चाहते हैं तो इन सामानों को बनाने के कार्यशाला को जरुर देखें। यह कार्यशाला पर्यटकों के लिए खुली रहती है।
 
=== ट्वॉय ट्रेन ===
[[चित्र:Agony point 1921.jpg|right|thumb|300px|१९२१ मै दार्जिलिंग हिमालयन् रेल्वे]]
इस अनोखे ट्रेन का निर्माण 19वीं१९वीं शताब्‍दी के उतरार्द्ध में हुआ था। डार्जिलिंग हिमालयन रेलमार्ग, इंजीनियरिंग का एक आश्‍चर्यजनक नमूना है। यह रेलमार्ग 70७० किलोमीटर लंबा है। यह पूरा रेलखण्‍ड समुद्र तल से 7546७५४६ फीट ऊंचाई पर स्थित है। इस रेलखण्‍ड के निर्माण में इंजीनियरों को काफी मेहनत करनी पड़ी थी। यह रेलखण्‍ड कई टेढ़े-मेढ़े रास्‍तों त‍था वृताकार मार्गो से होकर गुजरता है। लेकिन इस रेलखण्‍ड का सबसे सुंदर भाग बताशिया लूप है। इस जगह रेलखण्‍ड आठ अंक के आकार में हो जाती है।
 
अगर आप ट्रेन से पूरे डार्जिलिंग को नहीं घूमना चाहते हैं तो आप इस ट्रेन से डार्जिलिंग स्‍टेशन से घूम मठ तक जा सकते हैं। इस ट्रेन से सफर करते हुए आप इसके चारों ओर के प्राकृतिक नजारों का लुफ्त ले सकते हैं। इस ट्रेन पर यात्रा करने के लिए या तो बहुत सुबह जाएं या देर शाम को। अन्‍य समय यहां काफी भीड़-भाड़ रहती है।
 
=== चाय उद्यान ===
डार्जिलिंग एक समय मसालों के लिए प्रसिद्ध था। चाय के लिए ही डार्जिलिंग विश्‍व स्‍तर पर जाना जाता है। डॉ॰ कैम्‍पबेल जो कि डार्जिलिंग में ईस्‍ट इंडिया कंपनी द्वारा नियुक्‍त पहले निरीक्षक थे, पहली बार लगभग 1830१८३० या 40४० के दशक में अपने बाग में चाय के बीज को रोपा था। ईसाई धर्मप्रचारक बारेनस बंधुओं ने 1880१८८० के दशक में औसत आकार के चाय के पौधों को रोपा था। बारेन बंधुओं ने इस दिशा में काफी काम किया था। बारेन बंधओं द्वारा लगाया गया चाय उद्यान वर्तमान में बैनुकवर्ण चाय उद्यान (टेली: 0354०३५४-2276712२२७६७१२) के नाम से जाना जाता है।
 
चाय का पहला बीज जो कि चाइनिज झाड़ी का था कुमाऊं हिल से लाया गया था। लेकिन समय के साथ यह डार्जिलिंग चाय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1886१८८६ ई. में टी. टी. कॉपर ने यह अनुमान लगाया कि तिब्‍बत में हर साल 60६०,00००,000००० lb चाइनिज चाय का उपभोग होता था। इसका उत्‍पादन मुख्‍यत: सेजहवान प्रांत में होता था। कॉपर का विचार था कि अगर तिब्‍बत के लोग चाइनिज चाय की जगह भारत के चाय का उपयोग करें तो भारत को एक बहुत मूल्‍यावान बाजार प्राप्‍त होगा। इसके बाद का इतिहास सभी को मालूम ही है।
 
स्‍थानीय मिट्टी तथा हिमालयी हवा के कारण डार्जिलिंग चाय की गणवता उत्तम कोटि की होती है। वर्तमान में डार्जिलिंग में तथा इसके आसपास लगभग 87८७ चाय उद्यान हैं। इन उद्यानों में लगभग 50000५०००० लोगों को काम मिला हुआ है। प्रत्‍येक चाय उद्यान का अपना-अपना इतिहास है। इसी तरह प्रत्‍येक चाय उद्यान के चाय की किस्‍म अलग-अलग होती है। लेकिन ये चाय सामूहिक रूप से ''डार्जिलिंग चाय' के नाम से जाना जाता है। इन उद्यानों को घूमने का सबसे अच्‍छा समय ग्रीष्‍म काल है जब चाय की पत्तियों को तोड़ा जाता है। हैपी-वैली-चाय उद्यान (टेली: 2252405२२५२४०५) जो कि शहर से 3 किलोमीटर की दूरी पर है, आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां आप मजदूरों को चाय की पत्तियों को तोड़ते हुए देख सकते हैं। आप ताजी पत्तियों को चाय में परिवर्तित होते हुए भी देख सकते हैं। लेकिन चाय उद्यान घूमने के लिए इन उद्यान के प्रबंधकों को पहले से सूचना देना जरुरी होता है।
 
== चाय ==
नि:सन्‍देह यहां से खरीदारी के लिए सबसे बढि़या वस्‍तु चाय है। यहां आपको कई प्रकार के चाय मिल जाएंगे। लेकिन उत्तम किस्‍म का चाय आमतौर पर निर्यात कर दिया जाता है। अगर आपको उत्तम किस्‍म की चाय मिल भी गई तो इसकी कीमत 500५०० से 2000२००० रु. प्रति किलो तक की होती है। सही कीमत पर अच्‍छी किस्‍म का चाय खरीदने के लिए आप नाथमुलाज माल जा सकते हैं।
 
चाय के अतिरिक्‍त दार्जिलिंग में हस्‍तशिल्‍प का अच्‍छा सामान भी मिलता है। हस्‍तशिल्‍प के लिए यहां का सबसे प्रसिद्ध दुकान 'हबीब मलिक एंड संस' (टेली: 2254109२२५४१०९) है जोकि चौरास्‍ता या नेहरु रोड के निकट स्थित है। इस दुकान की स्‍थापना 1890१८९० ई. में हुई थी। यहां आपको अच्‍छे किस्‍म की पेंटिग भी मिल जाएगी। इस दुकान के अलावा आप 'ईस्‍टर्न आर्ट' (टेली: 2252917२२५२९१७) जोकि चौरास्‍ता के ही नजदीक स्थित है से भी हस्‍तशिल्‍प खरीद सकते हैं।
नोट: रविवार को दुकाने बंद रहती हैं।
 
== आवागमन ==
;हवाई मार्ग:
यह स्‍थान देश के हरेक जगह से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। बागदोगरा (सिलीगुड़ी) यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा (90९० किलोमीटर) है। यह दार्जिलिंग से 2 घण्‍टे की दूरी पर है। यहां से कलकत्ता और दिल्‍ली के प्रतिदिन उड़ाने संचालित की जाती है। इसके अलावा गुवाहाटी तथा पटना से भी यहां के लिए उड़ाने संचालित की जाती है।
 
;रेलमार्ग:
इसका सबसे नजदीकी रेल जोन जलपाइगुड़ी है। कलकत्ता से दार्जिलिंग मेल तथा कामरुप एक्‍सप्रेस जलपाइगुड़ी जाती है। दिल्‍ली से गुवाहाटी राजधानी एक्‍सप्रेस यहां तक आती है। इसके अलावा ट्वाय ट्रेन से जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग (8-9 घंटा) तक जाया जा सकता है।
 
;सड़क मार्ग:
यह शहर सिलीगुड़ी से सड़क मार्ग से भी अच्‍छी तरह जुड़ा हुआ है। दार्जिलिंग सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी से 2 घण्‍टे की दूरी पर स्थित है। कलकत्ता से सिलीगुड़ी के लिए बहुत सी सरकारी और निजी बसें चलती है।
 
== इतिहास ==