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== सन्दर्भ ==
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{{टिप्पणीसूची|2 : श्रीगुरु देव महाराज ने जगन्नाथ जी के प्रागट्य की कथा सुनाई। एक बार राजा इन्द्रधुमन ने स्वप्न में नीलमाधव के दर्शन किए और फिर वह उन्हें खोजने लगा। दरबार मे एक संत ने आकर नीलमाधव नामक श्री विष्णु प्रतिमा की बात बताई राजा ने नीलमाधव की खोज के लिये मंत्रीयो को भेजा ,सभी लौट कर आ गये एक मंत्री विद्यापति नहीं आया, विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है। वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्‍ववसु नीलमाधव का उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है। चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया। आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया। उसने मूर्ति चुरा ली और राजा को लाकर दे दी। विश्‍ववसु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त के दुख से भगवान भी दुखी हो गए। भगवान गुफा में लौट गए, लेकिन साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे। राजा ने मंदिर बनवा दिया और भगवान विष्णु से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा। भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र.में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ, जो द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है। राजा के सेवकों ने उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब लोग मिलकर भी उस पेड़ को नहीं उठा पाए। तब राजा को समझ आ गया कि नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्‍ववसु की ही सहायता लेना पड़ेगी। सब उस वक्त हैरान रह गए, जब विश्ववसु भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए।
 अब बारी थी लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की। राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश कर ली लेकिन कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका। तब तीनों लोक के कुशल कारीगर भगवान विश्‍वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का. रूप बनाकर आए। उन्होंने कहा कि वह जब तक मूर्ती पूरी नहीं बना लेते तब तक कोई भी व्यक्ति यहाँ नहीं आएगा। कुछ दिन बाद रानी को शंका हुई कि इतना बुढा व्यक्ति इतने दिन बिना खाए-पीए कैसे जीवित रह सकता है।तब राजा ने द्वार खोल कर देखा तो भगवान जगन्नाथ का अर्ध निर्मित विग्रह मिला। तब राजा बहुत दुखी होने लगा और तभी आकाशवाणी हुई कि मै इसी रूप में रहना चाहता हूँ। तुम विधि पूर्वक इनकी स्थापना करो।
शास्त्रों के अनुसार भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा से पूर्व उन्हें रथ पर बिठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है और प्रति वर्ष पाटोत्सव (रथयात्रा) पर वे रथ में सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं।
एक और भाव है कि भगवान जगन्नाथ के पट रथयात्रा से 15 दिन पहले से बंद हो जाते हैं। फिर वे अपने भक्तों को एक साथ दर्शन देने के लिए रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं।
 
== बाहरी सम्पर्क ==