"आर्य प्रवास सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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== आर्यन आक्रमण ==
इस उपसिद्धांत के अनुसार वैदिक संस्कृति भारतीय प्राचीन संस्कृति न होकर [[सिन्धु घाटी की सभ्यता|सिन्धु घाटी की संस्कृति]] भारत की प्राचीन संस्कृति है।<ref>मोहनजो-दड़ो से प्राप्त एक मुद्रा जिसमें वैदिक ऋचानुसार चित्र बना है, उसका विवरण कुछ इस प्रकार है "Photostat of plate no. CXII Seal No. 387 from the excavations of Mohenjo-Daro. (From Mohenjo-Daro And The Indus Civilization, Edited by Sir John Marshall, Cambridge 1931. इसमें चित्रित चित्र ऋग्वेद १|१६४|२० की ऋचा '''द्वा सुपर्णा...''' तथा [[श्रीमद्भागवत]] ११|११|०६ का श्लोक '''सुपर्णावेतौ सदृशौ सखायौ...''' से मेल खाता है जो वैदिक तथा सिन्धु के बीच संबन्ध दर्शाता है।</ref> जो पुर्व से ही उन्नत संस्कृति थी। इस बात के प्रमाण तब मिले जब वहाँ सन् १९२० में खुदाई हुई। आर्यों ने उनपर आक्रमण कर दिया था। आर्यों की अधिक विकसितता के कारण [[हड़प्पा]], [[मोहनजो-दड़ो]] समाप्त हो गए। यह सिद्धांत बहुंत समय तक मान्य रहा पकंतुपरंतु कालांतर के शोध के पश्चात् इसे खारिज़ कर दिया गया क्योंकि खुदाई से प्राप्त कंकालों में कहीं भी लड़ाई के चोंट आदि प्राप्य नहीं हैं। उनपर प्राकृतिक आपदा के संकेत हैं।<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Aryan_Migration_Theory#Development_of_the_Aryan Migration_theory Development of the Aryan Migration theory], विकिपीडिया पृष्ठ</ref>
अन्य रूपों में मैक्समुलर आदि इतिहासकारों ने वैदिक अध्ययन के बिनाह पर सिद्धांत दिया था कि भारतीय मूल के लोग कृष्णगर्भ (काले थे तथा अनासः (चपटी नाक के) थे। जिनपर आर्यों ने आक्रमण कर उन्हें अपना दस्यु (दास) बना लिया और उनपर अत्याचार करते रहे।<ref>आर्यों का आदिदेश</ref>
बाद में मैक्समुलर पर अनेक आरोपप्रत्यारोप उनके लेखों के कारण हुए। भारतीय राष्ट्रवादियों के अनुसार वे यह सब अंग्रेजों के कहे अनुसार कर रहे थे।