"नामदेव": अवतरणों में अंतर
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TarunKVerma (वार्ता | योगदान) →जीवनचरित्र: In this instance, the potential controversy was that of caste or, more specifically, his position in the Hindu varna system of ritual ranking. He was born into what is generally recognised as a Shudra caste, variousl... टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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== जीवनचरित्र ==
नामदेव जी का जन्म 26 अक्टूबर 1270, रविवार में प्रथम संवत्सर, संवत १३२७, कार्तिक शुक्ल एकादशी को पंढरपुर में हुआ था। नामदेवजी का जन्म पैतृक गाँव नरसी ब्राह्मणी नामक ग्राम के मूलनिवासी दामा शेठ "शिम्पी" (मराठी में) जिसे राजस्थान में "छीपा" भी कहते है, के यहाँ पंढ़रपुर में हुआ था।
ज्ञानेश्वर जी और नामदेव जी ने उत्तर भारत की साथ-साथ यात्रा की थी। ज्ञानेश्वर मारवाड़ में कोलायत (बीकानेर) नामक स्थान तक ही नामदेव जी के साथ गए थे । वहाँ से लौटकर उन्होंने आळंदी में शके 1218 में समाधि ले ली। ज्ञानेश्वर के वियोग से नामदेवजी का मन महाराष्ट्र से उचट गया और ये पंजाब की ओर चले गए। गुरुदासपुर जिले के घुमान नामक स्थान पर आज भी नामदेव जी का मंदिर विद्यमान है। वहाँ सीमित क्षेत्र में इनका "पंथ" भी चल रहा है। संतों के जीवन के साथ कतिपय चमत्कारी घटनाएँ जुड़ी रहती है। नामदेव के चरित्र में भी सुल्तान की आज्ञा से इनका मृत गाय को जिलाना, पूर्वाभिमुख आवढ्या नागनाथ मंदिर के सामने कीर्तन करने पर पुजारी के आपत्ति उठाने के उपरांत इनके पश्चिम की ओर जाते ही उसके द्वार का पश्चिमाभिमुख हो जाना,(ऐसी ही घटना राजस्थान के पाली जिले में मारवाड़ के पास "बारसा" नामक गाँव में कृष्ण भगवान जिन्हें स्थानीय लोग भगवान जगमोहनजी कहते हैं, के पौराणिक मंदिर की घटना का वृतांत भी मिलता हैं. इसका उल्लेख हंसनिर्वाणी संत मोहनानंदजी महाराज द्वारा अपने हस्तलिखित पुस्तक में किया हैं, जिस पर शोध कर पाली के गुड़ाएन्दला गाँव निवासी श्री अशोक आर.गहलोत, अहमदाबाद ने सैद्धांतिक व प्रायोगिक प्रमाणों के साथ सन् 2003 में उजागर किया. जहां "नामदेव भक्ति संप्रदाय संघ" के प्रणेता ह.भ.प. श्री रामकृष्ण जगन्नाथ बगाडे महाराज, पुणे ने राष्ट्रीय स्तर का अधिवेशन कर इस स्थान की पुष्टि सन् 2005 में की) विट्ठल की मूर्ति का इनके हाथ दुग्धपान करना, आदि घटनाएँ समाविष्ट हैं। महाराष्ट्र के पंढरपुर स्थित विट्ठल मंदिर के महाद्वार पर शके 1272 में परिवार के एक सदस्य(बेटे की बहु) को छोड़कर संजीवन समाधि ले ली। कुछ विद्वान् इनका समाधिस्थान घुमान मानते हैं, परंतु बहुमत पंढरपुर के ही पक्ष में हैं।
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