"सेमलिया": अवतरणों में अंतर

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== सेमलियाजी तीर्थ==
 
सेमलियाजी तीर्थ में मूलनायक भगवान श्री शांतिनाथ प्रभुजी विराजमान है। यह तीर्थ मालवा के प्रथम 5 प्राचीन तीर्थो (सेमलिया, भोपावर, मक्सी, वई, मांडव) में से एक है। इस प्राचीन तीर्थ की प्रसिद्धि किवंदंती के आधार पर नहीं परन्तु तथ्यामकतथ्यात्मक प्रमाणिकप्रामाणिक आधार पर मान्य है।{{प्रमाण}}
 
# मूलनायक भगवान श्री शांतिनाथ की 41 इंची प्रतिमा जी संपत्ति राजा द्वारा प्रतिष्ठित होकर 2300 वर्ष से ज्यादा प्राचीन संप्रति राजा के समय में मंदिर जी के गभारे से उज्जैन तक सुरंग भी आवागमन हेतु बनाई गई थी जो अब बंद है।
# इस तीर्थ का प्रथम जीर्णोद्वार वीर संवत 933 यानी कि करीब 1700 वर्ष पूर्व होने का लेख मुठीमुट्ठी चिन्ह वह आरस खंबे पर उत्कीर्ण है यह जीर्णोद्वार श्री दानवीर सेठ भीमा महाराज द्वारा किया गया था जो पालीताना जी तीर्थ का जीर्णोद्वार कराने वाले श्री भीमा कुंडलिया (महाजन) ही प्रतीत होते हैं ऐसा उत्कीर्ण प्राचीन उल्लेख शायद ही मालवा के किसी तीर्थ में है।
# प्रथम जीर्णोद्वार के पहले से यह मंदिर तपागच्छीय यति परंपरा से प्रतिबंध रहा है। वीर संवत 933 के पूर्व ही आकाश मार्ग से जाते हुए 4 खंबों को शिखर सहित तांत्रिक युद्ध के बाद यति जी ने उन्हें यहां उतार लिया था तांत्रिक युद्ध के मुष्टि,चीर,फारसा व तलवार के चिन्ह आज भी उन खंभों पर अंकित है जो गभारे के सामने स्थित है उल्लेखनीय बात यह है कि वर्तमान जीर्णोद्वार(सन 1990-2000 ) में भी इन खंभो के स्थान में अंश भर भी परिवर्तन नहीं किया गया है इन चार खंभों के अवतरण के पश्चात अमीझरण होता आया है। पूर्व से ही दूध झरण भी होता रहा है जो बाद में बंद हो गया था पर जीर्णोद्वार सन 2000 के बाद से गभारे में कुछ स्थानों पर आज भी दूध झरण होने लगा है। 2011 में तो केशरकेसर बूंदों का झरण हुआ है। हर वर्ष जन्म वाचन उत्सव में बाहर के 4000 से 5000 श्रद्धालु आते हैं जो नोट, कपड़ा आदि अमी झरण से गिला कर घर ले जाते हैं जिससे घर में रिद्धि सिद्धि में वृद्धि होती है ऐसी मान्यता चल रही है।
# इस प्राचीन तीर्थ की प्रसिद्धि पूर्व काल में भी बहुत रही है क्योंकि यह पूर्व राजमार्ग दिल्ली( हस्तिनापुर) मांडव मार्ग पर स्थित रहा है प्रमाणिकप्रामाणिक रूप से खरतरगच्छ स्थापना पूज्य आचार्य जिनकुशल सूरी म.सा ने जैसलमेर मांडवा छ:री पालीत संघ निकाला था उन्होंने करीब 900 वर्ष पूर्व यहां विश्राम किया था और एक अष्टधातु की पंचतीर्थी प्रतिमा यहां पधराई थी वह प्रतिमा लेख पृष्ठ भाग सहित आज भी दर्शन पूजन हेतु उपलब्ध है।
# अचल गच्छाधिपति पूज्य आचार्य श्री लक्ष्मी सागर सूरी भी 545 वर्ष पूर्व यहां स संघ पधार चूके है उन्होंने यहां 3 भगवान प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की थी उनमें से एक श्याम वर्णी आदिनाथ भगवान की चार इंची प्रतिमा भव्य कल्पवृक्ष के बीच और आसपास सर्प वह मयूर के बीच विराजित है यहां पूर्व गच्छाधिपति श्री गुण सागर सूरी जी म.सा मुंबई सम्मेतशिखर - गिरनार- पालीताणा छ:री पालीत संघ के साथ कुछ वर्ष पूर्व पधारे तो वह इन प्रतिमाओं को देखकर भाव विभोर हो गए और गम्भारे में ही उछल-उछल कर खुशी प्रकट की और वीडियोग्राफी करवाई। पूछने पर उन्होंने बताया कि सिद्धांचल में अचल गच्छ की टूंक मैं भी वैसी ही प्रतिमा प्रतिष्ठित है और तत्कालीन प्रतिष्ठा कारक आचार्य श्री ने यह लिखा की ऐसी ही प्रतिमा जी सिद्धांचल जैसे ही पावन तीर्थ में प्रतिष्ठा की जा रही है। उन्होंने बताया कि तीन महा तीर्थों का यह छरी पालीत संघ प्रतिमा जी को ढूंढने के उद्देश्य में ही निकाला गया था।
# इस महातीर्थ की मूल प्रतिष्ठा के समय तत्कालीन ज्ञानी आचार्य भगवंत ने तीर्थ की रक्षा हेतु विशिष्ट अधिष्ठायक देव का अपनी साधना से निर्माण कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की ऐसी मुकुटधारी प्रतिमा जिसमें शेर की सवारी पर बायी मुस्कान, दाये हाथ में डमरु, बायें हाथ मे कमंडल कमर में प्राचीन कटार आदि विभिन्न प्रतीकों से विभूषित, जिनके दाहिने पैर के नीचे दबा दानव शरीर और बाएं तरफ एक छोटे पशु की आकृति उनकी ओर देखते हुए बताया है और कहीं देखने को नहीं मिलती है। पुरा तत्व विभाग मध्य प्रदेश से पता किया तो बताया गया कि ऐसे देव की प्रतिमा उनके रिकॉर्ड पर नहीं है। उल्लेखनीय है कि ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर श्री सेमलियाजी तीर्थ मुगलकाल में दिल्ली मांडव राजमर्ग पर था मुगल शहंशाह औरंगजेब की सेनाएं भारत के मंदिरों को तोड़ते हुए इसी रास्ते से मांडव होकर दक्षिण की ओर गई थी आसपास वह मांडव के खंडहर इसके साक्षी हैं। उन्हें इस अधिष्ठायक देव के प्रभाव से यह तीर्थ नहीं दिखाई दिया और तीर्थ की रक्षा हुई।
 
रतलाम में अगर जी शांतिनाथ जैन मंदिर पर रातोरातरातोंरात मिनारेमिनारें खड़ी कर मस्जिद का भ्रम पैदा कर सुरक्षा की गई थी। इन अधिष्ठायक देव प्रतिमा जी पर पूर्व में सिंदूर लेप होता रहने से विलोपन ज्यादा भारी हो गया था और लोग इन्हें मणिभद्र मानने लगे। पर जीर्णोद्धार (1990-2000) सन के प्रारंभ होते ही उन्होंने अपना 80 किलो का चोला छोड़ा और अपना असली रूप दर्शाया जो अब वैसा ही सुरक्षित है। इस चोले से अंदाजन 8 किलो चांदी अनुमानित की गई इस तरफ पहला जीर्णोद्धार हेतु अंशदान भी उन्होंने ही दिया कोई नाम उपलब्ध न होने से अभी इन्हें भेरुजी मानकर आरती उतारते हैं।
# इस देश के पुनः जीर्णोद्धार की एक बहुत बड़ी विशेषता है इस के देव द्रव्य का अखंड रहना है।जीर्णोद्धार शुरू होते वक्त 110000 के करीब जमा रकम थी जो खाते में कभी कम नहीं हुई और जीर्णोद्धार लागत करीब 50 लाख बराबर साधु की प्रेरणा से श्रीसंघों से निरंतर आती रही भुकतानभुगतान चुकाने से पहले भी दान की रकम प्राप्त हो जाती थी परम पूज्य आचार्य श्री रामचंद्र सूरी जी ने इसकी पासबुक मंगवा कर देखी और स्वहस्त लिखा की यह अक्षत निधि है कई तीर्थों का जीर्णोद्धार कराएगी। और अब तक चार मंदिरों के जीर्णोद्धार मैं करीब 5 लाख रुपए यहां से भेजें गए हैं यहां से मालवा के प्राचीन मंदिरों के जीर्णोद्धार हेतु ही रकम दी जाती है।
# इस तीर्थ की व्यवस्था श्री शांतिनाथ जैन श्वेतांबर तीर्थ चेरिटेबल ट्रस्ट(रजि.) द्वारा संचालित है इस तीर्थ में साधु साध्वी के दो उपाश्रय, 12 कमरे, चार हॉल ,प्रथम ऑफिस हॉल, 3 भोजन हॉल वं रसोईघर आदि है। यहां 12 साधर्मिक परिवार रहते हैं और साधु साध्वी की वैयावच्च को हमेशा उत्सुक रहते हैं।गत 20 वर्षों में यहां पूजा की प्रभावना का लाभ मनोहरलाल जैन परिवार द्वारा लिया जा रहा है। प्रसिद्ध नागेश्वर जी तीर्थ में मांडव भोपावर तीर्थों के बीच कोई भी भोजनशाला नहीं होने से यात्रियों को बड़ी तकलीफ होती है फिर भी ट्रस्ट मंडल ने एक साधर्मिक के सहयोग से यहां भाता व्यवस्था गत 8 वर्षों से चालू है पर वह भोजनशाला की कमी का एहसास कराती है। भोजनशाला एवं अन्य व्यवस्था की योजना जो करीब 50 लाख की है ट्रस्ट मंडल ने अनुमोदित की है पर अर्थव्यवस्था के आभाव में लंबित हैै, लाभार्तीलाभार्थी सुश्रावको का इंतजार है बस!
# इस महातीर्थ का जीर्णोद्वार पूर्ण होकर ( मूल लायक का प्रतिष्ठा स्थान नहीं बदल गया) सन 2000 की चेत्र सुदी 13 को ध्वजा फहराई गई एवं गौतम स्वामी शांतिनाथ प्रभु के अधिष्ठा़क देव व शासन देवी निर्वाणी देवी मां की प्रतिष्ठा भी की गई प्रथम गुरु मंदिर में आनंद सागरसूरी उनके गुरु जवेरसागरजी एवं पूज्य धर्म सागर जी की प्रतिमाएं है। सन 2010 में परम पूज्य साध्वी श्री कुसुम श्रीजी एवं पूज्य साध्वी चंद्र रत्ना श्रीजी का इतिहास में प्रथम बार चातुर्मास हुआ और 2011 में पूज्य मुनि राज पावन सागर जी का चातुर्मास हुआ है। सन 2012 में पूज्य सम्यगदर्शना श्रीजी म.सा का चातुर्मास हुआ।