"वितत भिन्न": अवतरणों में अंतर
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प्राचीन काल से ही वितत भिन्नों का उपयोग किया जा रहा है।
[[आर्यभट]] ने प्रथम डिग्री तथा द्वितीय डिग्री वाले कुछ [[अनिर्धार्य समीकरण|अनिर्धार्य समीकरणों]] के हल वितत भिन्न के रूप में ही दिये हैं। उसके बाद [[नारायण पण्डित (गणितज्ञ)|नारायण पण्डित]] (१३५० ई) ने अपने गणित ग्रन्थ [[गणितकौमुदी]] में '''N x<sub>2</sub> + K<sub>2</sub> = y<sub>2</sub>''' प्रकार के अनिर्धार्य समीकरणों का हल
:'' hrasvajyesthaksepan kramasastesamadho nyaset tanstu
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