"सिक्किम": अवतरणों में अंतर

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[[1791]] में चीन ने सिक्किम की मदद के लिये और तिब्बत को गोरखा से बचाने के लिये अपनी सेना भेज दी थी। नेपाल की हार के पश्चात, सिक्किम [[किंग वंश]] का भाग बन गया। पड़ोसी देश [[भारत]] में [[ब्रतानी राज]] आने के बाद सिक्किम ने अपने प्रमुख दुश्मन [[नेपाल]] के विरुद्ध उससे हाथ मिला लिया। नेपाल ने सिक्किम पर आक्रमण किया एवं [[तराई]] समेत काफी सारे क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। इसकी वज़ह से [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने नेपाल पर चढ़ाई की जिसका परिणाम १८१४ का [[गोरखा युद्ध]] रहा।
 
सिक्किम और नेपाल के बीच हुई [[सुगौली संधि]] तथा सिक्किम और ब्रतानवी भारत के बीच हुई [[तितालिया संधि]] के द्वारा नेपाल द्वारा अधिकृत सिक्किमी क्षेत्र सिक्किम को वर्ष १८१७ में लौटा दिया गया। यद्यपि, अंग्रेजों द्वारा मोरांग प्रदेश में कर लागू करने के कारण सिक्किम और अंग्रेजी शासन के बीच संबंधों में कड़वाहट आ गयी। वर्ष १८४९ में दो अंग्रेज़ अफसर, सर जोसेफ डाल्टन और डाक्टर अर्चिबाल्ड कैम्पबेल, जिसमें उत्तरवर्ती (डाक्टर अर्चिबाल्ड) सिक्किम और ब्रिटिश सरकार के बीच संबंधों के लिए जिम्मेदार था, बिना अनुमति अथवा सूचना के सिक्किम के पर्वतों में जा पहुंचे। इन दोनों अफसरों को सिक्किम सरकार द्वारा बंधी बना लिया गया। नाराज़नाराज ब्रिटिश शासन ने इस हिमालयी राज्य पर चढाई कर दी और इसे १८३५ में भारत के साथ मिला लिया। इस चढाई के परिणाम वश चोग्याल ब्रिटिश गवर्नर के आधीन एक कठपुतली राजा बन कर रह गया।<ref name="Hist">{{cite web|url=http://sikkim.nic.in/sws/sikk_his.htm |title= History of Sikkim|accessdate=2006-10-12|date=[[2002-08-29]]|publisher=Government of Sikkim}}</ref>
[[चित्र:Dodrulchortenstupa.jpg|thumb|240px|[[द्रुल चोर्तेन स्तूप]] [[गंगटोक]] का मशहूरप्रसिद्ध [[स्तूप]]]]
१९४७ में एक लोकप्रिय मत द्वारा सिक्किम का [[भारत]] में विलय को अस्वीकार कर दिया गया और तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री [[जवाहर लाल नेहरू]] ने सिक्किम को संरक्षित राज्य का दर्जा प्रदान किया। इसके तहत भारत सिक्किम का संरक्षक हुआ। सिक्किम के विदेशी, राजनयिक अथवा सम्पर्क संबन्धी विषयों की ज़िम्मेदारी भारत ने संभाल ली।
 
सन १९५५ में एक राज्य परिषद् स्थापित की गई जिसके आधीन चोग्याल को एक संवैधानिक सरकार बनाने की अनुमति दी गई। इस दौरान सिक्किम नेशनल काँग्रेस द्वारा पुनः मतदान और नेपालियों को अधिक प्रतिनिधित्व की मांग के चलते राज्य में गडबडी की स्थिति पैदा हो गई। १९७३ में राजभवन के सामने हुए दंगो के कारण [[भारत सरकार]] से सिक्किम को संरक्षण प्रदान करने का औपचारिक अनुरोध किया गया। चोग्याल राजवंश सिक्किम में अत्यधिक अलोकप्रिय साबित हो रहा था। सिक्किम पूर्ण रूप से बाहरी दुनिया के लिये बंद था और बाह्य विश्व को सिक्किम के बारे मैं बहुत कम जानकारी थी। यद्यपि अमरीकन आरोहक [[गंगटोक]] के कुछ चित्र तथा अन्य कानूनी प्रलेख की तस्करी करने में सफल हुआ। इस प्रकार भारत की कार्यवाही विश्व के दृष्टि में आई। यद्यपि इतिहास लिखा जा चुका था और वास्तविक स्थिति विश्व के तब पता चला जब काजी (प्रधान मंत्री) नें १९७५ में भारतीय संसद को यह अनुरोध किया कि सिक्किम को भारत का एक राज्य स्वीकार कर उसे [[भारतीय संसद]] में प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए। अप्रैल १९७५ में [[भारतीय सेना]] सिक्किम में प्रविष्ट हुई और राजमहल के पहरेदारों को निःशस्त्र करने के पश्चात गंगटोक को अपने कब्जे में ले लिया। दो दिनों के भीतर सम्पूर्ण सिक्किम राज्य भारत सरकार के नियंत्रण में था। सिक्किम को भारतीय गणराज्य मे सम्मिलित्त करने का प्रश्न पर सिक्किम की ९७.५ प्रतिशत जनता ने समर्थन किया। कुछ ही सप्ताह के उपरांत १६ मई १९७५ मे सिक्किम औपचारिक रूप से [[भारतीय गणराज्य]] का २२ वां [[प्रदेश]] बना और सिक्किम मे राजशाही का अंत हुआ।
 
वर्ष २००२ मे [[चीन]] को एक बड़ी शर्मिंदगीलज्जा केका सामना तब करना पड़ा जब सत्रहवें कर्मापा [[उर्ग्यें त्रिन्ले दोरजी]], जिन्हें चीनी सरकार एक लामा घोषित कर चुकी थी, एक नाटकीय अंदाज में तिब्बत से भाग कर सिक्किम की [[रुम्तेक मठ]] मठ मे जा पहुंचे। चीनी अधिकारी इस धर्म संकट[[धर्मसंकट]] मे जा फँसे कि इस बात का विरोध भारत सरकार से कैसे करें। भारत से विरोध करने का अर्थ यह निकलता कि चीनी सरकार ने प्रत्यक्ष रूप से सिक्किम को भारत के अभिन्न अंग के रूप मे स्वीकार लिया है।
 
[[चीन|चीनी सरकार]] की अभी तक सिक्किम पर औपचारिक स्थिति यह थी कि सिक्किम एक स्वतंत्र राज्य है जिस पर भारत नें अधिक्रमण कर रख्खा है।<ref name="इतिहास"/><ref name="Independence">{{cite web|url=http://www.sikkiminfo.net/elections_after_merger.htm |title=Elections after the merger|accessdate=2006-10-12|publisher=Sikkiminfo.net}}</ref>
चीन ने अंततः सिक्किम को २००३ में भारत के एक राज्य के रूप में स्वीकार किया जिससे भारत-चीन संबंधों में आयी कड़वाहट कुछ कम हुई। बदले में भारत नें [[तिब्बत]] को चीन का अभिन्न अंग स्वीकार किया।
 
भारत और चीन के बीच हुए एक महत्वपूर्ण समझौते के तहत चीन ने एक औपचारिक मानचित्र जारी किया जिसमें सिक्किम को स्पष्ट रूप मे भारत की सीमा रेखा के भीतर दिखाया गया। इस समझौते पर चीन के प्रधान मंत्री [[वेन जियाबाओ]] और भारत के प्रधान मंत्री [[मनमोहन सिंह]] ने हस्ताक्षर किया। ६ जुलाई २००६ को [[हिमालय]] के [[नाथुला]] दर्रे को सीमावर्ती व्यापार के लिए खोल दिया गया जिससे यह संकेत मिलता है कई इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच सौहार्द का भाव उत्पन्न हुआ है।<ref name="नाथुला">{{cite news|url =http://news.bbc.co.uk/2/hi/south_asia/5150682.stm|title =Hisotric India-China link opens|publisher = [[BBC]]|date = [[2006-07-06]]|accessdate =2006-10-12}}</ref>