"रानी भटियानी": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Mata_Rani_Bhatiyani_sa_2014-06-16_18-28.jpg|अंगूठाकार|माता रानी भटियानी]]
'''रानी भटियानी'''<ref>{{cite web|title=माता रानी भटीयाणी जसोल|url=http://www.gyandarpan.com/2016/12/Mata-Rani-Bhatiyani-Jasol.html?m=1|publisher=ज्ञान दर्पण|accessdate=15 अगस्त 2015}}</ref> एक [[हिन्दू|हिन्दू देवी]] है जो पश्चिमी [[राजस्थान]], भारत और [[सिंध]], पाकिस्तान में उनके प्रमुख मंदिरों में [[जसोल]], [[बाड़मेर]] और [[जैसलमेर]] है, जहां उन्हें भुआसा कहा जाता है।वह विशेष रूप से मनगानियर समुदाय की महिलाओं पूजी जाती है व ढोली (गायक) समुदाय द्वारा गाना [[घूमर]] गाना उनके सम्मान में गाते है, जहां वह प्रशंसा की है के रूप में राजकुमारी के जैसलमेर. देवी कहा जाता है के लिए दी है उसे पहली दृष्टि के लिए एक Manganiar. देवी भी कहा जाता है ''Majisa'' (मां) और गाने गाया जाता है उसके सम्मान में से bards.है।
 
==जीवन परिचय==
रानी भटियानी के जन्म का नाम था सरूप किया गया था और एक [[राजपूत]] राजकुमारी से एक छोटे से राज्य में जैसलमेर जिला है । वह जाना जाता था, के रूप में भटियानी के रूप में, उसके पिता के थे [[भाटी]] राजपूत कबीले है । वह शादी कर रहा था करने के लिए कल्याण सिंह, एक राठौड़ राजकुमार. वहाँ विभिन्न संस्करणों रहे हैं, दिग्गजों के अग्रणी करने के लिए उसे मौत. एक संस्करण में, कल्याण सिंह की जलन हो रही पहली पत्नी देवरी जहर Bhatiyani और उसके बेटे लाल सिंह. एक अन्य कथा का कहना है कि खबर है कि उसके पति की मौत हो गई थी लड़ाई में उसे तक पहुँच है, हालांकि वास्तव में उसके भाई-भाभी सवाई सिंह मर गया था. अफवाह से फैल गया था उसके पति से छुटकारा पाने के लिए उसे ले लो और एक दूसरी पत्नी है । यहां तक कि हालांकि वह करने के लिए आया था पता है कि उसका पति जिंदा था, वह उसे करने के लिए अटक प्रारंभिक निर्णय करने के लिए प्रतिबद्ध [[सती प्रथा]] और कूद में चिता की उसके भाई-भाभी और छोड़ दिया है । मुसीबत befell कल्याण सिंह के परिवार के कारण Bhatiyani की मौत और एक मंदिर समर्पित किया गया था में उसे करने के लिए Jasol को रिझाने के लिए उसकी आत्मा के बाद, वह जो कहा जाता है में तब्दील हो जाता है एक उदार आत्मा
[[जैसलमेर]]<ref>{{cite web|title=जसोल का इतिहास|url=http://rgbooks.net/product/jasol-ka-itihas-%E0%A4%9C%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B2-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%87%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8/|accessdate=5 जुलाई 2016}}</ref> जिले के गाँव जोगीदास में ठाकुर जोगराज सिंह भाटी के यहां वि.सं. 1725 में पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम स्वरूप कंवर रखा गया। बालिका बचपन से ही बड़ी रूपवती और गुणवान थी। विवाह योग्य होने पर स्वरूप कंवर का विवाह जसोल । रावल कल्याणमल से होना तय हुआ। कल्याणमल ने अपना पहला विवाह तो देवड़ी से किया था जब उनसे कोई संतान न हुई तो दूसरा विवाह स्वरूप कंवर भटियाणी से किया।
स्त्रियों में सोतिया डाह की भावना जन्म जात ही होती है। बड़ी रानी देवड़ी तो स्वरूप कंवर से प्रारम्भ से ही ईष्र्या करने लगी परन्तु राणी स्वरूप कंवर उसे अपनी बड़ी बहिन के समान समझती थी। जसोल ठिकाने में रानी स्वरूप कवर राणी भटियाणी के नाम से जानी जाने लगी। विवाह के दो वर्ष पश्चात् भटियाणी के पुत्र हुआ जिसका नाम लालसिंह रखा गया। रावल के दो विवाह करने के पश्चात् यह पहला पुत्र होने पर जसोल में खुशी मनाई गयी। रानी देवड़ी मन ही मन कुंठित रहने लगी और राणी भटियाणी के आंखों का तारा देवड़ी की आँखों में खटकने लगा।
 
कुछ समय पश्चात् देवड़ी के भी एक पुत्र हुआ परन्तु लालसिंह ही जसोल ठिकाने का उत्तराधिकारी बन सकता था क्योंकि देवड़ी का पुत्र तो उससे उम्र में छोटा था। इसी कुटिलता को लिए हुए देवड़ी ने लालसिंह की हत्या का षड़यंत्र रचा और वह उपयुक्त अवसर की तलाश में रहने लगी।
 
श्रावण की तीज के अवसर पर राणी भटियाणी अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में झूला झूलने गयी परन्तु कुंवर लालसिंह को महल में अकेला ही सोया हुआ छोड़ गयी। देवड़ी ऐसे ही मौके की तलाश में थी। उसने कुंवर लाल को दूध में जहर मिलवा कर पिला दिया। एक मान्यता यह भी प्रचलित है कि कुंवर लालसिंह को महल की सीढियों से लुढ़का दिया गया और उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। देवड़ी लालसिंह की मृत्यु के समाचार पाकर बड़ी प्रसन्न हुई। आखिर रास्ते का कांटा दूर हो गया अब मेरा पुत्र ही यहाँ का शासक बनेगा।
राणी भटियाणी जब अपनी सहेलियों के साथ तीज का झूला झूल कर वापस आयी तो लालसिंह को मृत पाया। राणी भटियाणी इस कुटिल चाल को समझ गयी और पुत्र वियोग में व्याकुल हो गयी। उसका मन कहीं भी नहीं लगता। अब वह अस्वस्थ रहने लगी उधर बड़ी रानी कुंवर लालसिंह को मरवा कर ही संतुष्ट नहीं हुई उसने राणी भटियाणी को भी मरवाने की सोच ली। उसने भटियाणी को जहर दिलवा दिया इस कारण वि.सं. 1775 माघ सुदी द्वितीया को उनका स्वर्गवास हो गया। राणी भटियाणी की मृत्यु का समाचार सुन कर जसोल ठिकाने में शोक छा गया।
एक दिन राणी भटियाणी के गांव से दो ढोली शंकर व ताजिया रावल कल्याणमल के यहां कुछ मांगने के लिए चले आये। देवड़ी ने उन्हें भटियाणी के चबूतरे के आगे जाकर मांगने को कहा। दु:खी होकर ढोली अपने गाँव के 'बाईसा के चबूतरे के आगे जाकर सच्चे मन से विनती करने लगे और आप बीती सुनायी।
राणी भटियाणी ने प्रसन्न होकर उन दोनों को साक्षात दर्शन दिए और 'परचे के प्रमाण स्वरूप रावल कल्याणमल के नाम एक पत्र दिया जिसमें रावल की मृत्यु उसी दिन से बारहवें दिन होना लिखा और ऐसा ही हुआ। रावल कल्याणमल का स्वर्गवास ठीक बारहवें दिन हो गया। यह बात आस पास के गांवों में फैल गयी। इसके बाद तो राणी भटियाणी ने जनहित में अनेक परचे दिए। जसोल के ठाकुरों ने राणी भटियाणी के चबूतरे पर एक मंदिर बनवा दिया और उनकी विधिवत पूजा करने लगे। प्रतिवर्ष चैत्र और आश्विन माह के नवरात्र में वैशाख, भाद्रपद और "माघ महीनों की शुक्ल पक्ष की तेरस व चवदस को यहाँ श्रद्धालु आते हैं। मनौती पूरी होने पर जात देते है 'कांचळी', 'लूगड़ी', 'बिंदिया और चूड़ियां राणी भटियाणी के भक्त जन चढ़ाते हैं।
[[राजस्थान]] ही नहीं भारतवर्ष के हर कोने से यहाँ पर श्रद्धालु आते हैं। राणी भटियाणी के नाम से एक पशु मेला भी आयोजित किया जाता है जिसमें ऊंट, घोड़े, बैल आदि खरीदने और बेचने के लिए व्यापारी आते हैं।
 
== संदर्भ ==