"पेशवा": अवतरणों में अंतर
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== बालाजी बाजीराव उर्फ नाना साहेब ==
'''{{मुख्य|बालाजी बाजीराव}}'''
जन्म १७२१ ई. मृत्यु १७६१। श्रीमंत बाजीराव के ज्येष्ठ पुत्र नाना साहेब १७४० में पेशवा नियुक्त हुऐ वह अपने पिता से भिन्न प्रकृति के थे । वह दक्ष शासक तथा कुशल कूटनीतिज्ञ तो थे ; किंतु सुसंस्कृत, मृदुभाषी तथा लोकप्रिय होते हुए भी वह दृढ़निश्चयी थे । उनके प्रकुतिप्रेमी और वैभवप्रिय स्वभाव का प्रभाव भी पड़ा। पारस्परिक विग्रह, विशेषत: सिंधिया तथा होल्कर के संघर्ष को नियंत्रित करने में, वह असफल रहे। दिल्ली राजनीति पर आवश्यकता से अधिक ध्यान केंद्रित करने के कारण उसने अहमदशाह दुर्रानी से अनावश्यक शत्रुता मोल ली। उसने आंग्ल शक्ति के गत्यवरोध का
नाना साहेब के पदासीन होने के समय शाहू के रोगग्रस्त होने के कारण आंतरिक विग्रह को प्रोत्साहन मिला। इन कुचक्रों से प्रभावित हो शाहू ने नाना साहेब को पदच्युत कर दिया। (१७४७), यद्यपि तुरंत ही उसकी पुनर्नियुक्ति कर शाहू ने स्वभावजन्य बुद्धिमत्ता का भी परिचय दिया। १५ दिसम्बर १७४९ में शाहू की मृत्यु के कारण मराठा शासनविधान के राज्यधिकरों में नई मान्यता स्थापित हुई। रामराजा की अयोग्यता के कारण राजकीय सत्ता पेशवा के हाथों में केंद्रित हो गई। सतारा की सत्ता समाप्त होकर पूना शासनकेंद्र बन गया।
नाना साहेब की सैनिक विजयों का अधिकांश श्रेय पेशवा के चचेरे भाई सदाशिवराव भाऊ की है। इस काल मुगलों से मालवा प्राप्त हुआ (१७४१); मराठों ने बंगाल पर निरंतर आक्रमण किए (१७४२-५१), भाऊ ने पश्चिमी कर्नाटक पर प्रभुत्व स्थापित किया (१७४९) तथा यामाजी रविदेव को पराजित कर संगोला में क्रांतिकारी वैधानिक व्यवस्था स्थापित की (१७५०) जिससे सतारा की अपेक्षा पेशवा का निवासस्थल पूना शासकीय केंद्र बना। भाऊ न ऊदगिर में निजामअली को पूर्ण पराजय दी (१७६०)। किंतु अहमदशाह दुर्रानी के भारत आक्रमण पर भयंकर अनिष्ट की पूर्व सूचना के रूप में दत्ताजी सिघिंया की हार हुई (१७६०)। तदनंतर, पानीपत के रणक्षेत्र पर मराठों की भीषण पराजय हुई (१७६१)। पर इससे मराठें तो कमजोर तो हुऐ पर ढेर नहीं लेकिन मुगलों का पूर्ण पतन सुनिश्चित हो गया पर इस मर्मातक आघात को सहन न कर सकने के कारण पेशवा साहेब की मृत्यु हो गई।
== माधवराव प्रथम ==
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