"दोस्ती (1964 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर

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'''दोस्ती''' १९६४ में बनी [[हिन्दी भाषा]] की फिल्म है जिसके निर्देशक [[सत्येन बोस]] और निर्माता अपने [[राजश्री प्रोडक्शन्स]] के तले [[ताराचंद बड़जात्या]] हैं। जैसा फ़िल्म का नाम है, यह फ़िल्म एक अपाहिज लड़के और एक अन्धे लड़के के बीच दोस्ती को दर्शाती है। इस फ़िल्म को १९६४ के [[फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार|फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों]] में छ: पुरस्कारों से नवाज़ा गया जिसमें [[फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार]] भी शामिल है।
 
== संक्षेप ==
रामनाथ गुप्ता उर्फ़ रामू (सुशील कुमार) के पिता एक फ़ैक्टरी हादसे में चल बसते हैं। जब फ़ैक्टरी उनकी मौत का हर्ज़ाना देने से इन्कार कर देती है तो उसकी माँ ([[लीला चिटनिस]]) यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाती है और वह भी दम तोड़ देती है। सड़क दुर्घटना में रामू अपनी एक टांग गंवा बैठता है। बेघर, बिन पैसे के और अपाहिज रामू जब [[मुंबई]] की सड़कों की ख़ाक छान रहा होता है तो उसकी मुलाकात मोहन (सुधीर कुमार) नाम के एक अन्धे लड़के से होती है जिसकी कहानी भी रामू के जैसी ही है। मोहन गांव का रहने वाला है और बचपन में ही अपनी आँखें खो बैठा है। मोहन की बहन मीना गांव से शहर नर्स बनने के लिए आई थी ताकि मोहन की आँखों का इलाज करा सके। अब मोहन अपनी बहन को ढूंढता हुआ शहर आया है। रामू और मोहन गलियों में गाकर अपना पेट भरने लगते हैं और सड़क के किनारे ही सो जाते हैं। एक दिन उनकी मुलाकात मंजुला उर्फ़ मंजु नामक एक छोटी लड़की से होती है जो एक अमीर परिवार की होती है और जो बहुत बीमार है। वह रामू और मोहन को पैसे देना चाहती है लेकिन दोनों यह कह कर मना कर देते हैं कि छोटी बहन से पैसे नहीं लिए जाते हैं। मंजु की देखभाल के लिए नर्स की ज़रूरत होती है और डॉक्टर मीना को उसके घर ले आते हैं। रामू को आगे पढ़ाई करने की चाह होती है लेकिन स्कूल में दाख़िले के लिए साठ रुपयों की ज़रुरत होती है। दोनों यह पैसा मंजुला से मांगने जाते हैं लेकिन मंजुला का भाई अशोक ([[संजय ख़ान]]) उन्हें पांच रुपये देकर कहता है कि आइंदा वहाँ न आयें। अपना इस तरह अपमान होना मोहन को गंवारा नहीं होता है और वह गाकर बाकी की रक़म जमा कर लेता है। <br />