दीपवलीसन् के१८३५ दिन, (१८३५)दीपावली की अद्भुत , दिव्य व पावन वेला थी , मुत्तु मुथुस्वमिस्वामि दिक्शिथरदीक्षितर् ने हर रोज की तरह जैसा पुजापूजा-प्रार्थना किया औरव उसकितत्पश्चात उन्होंने अपने विद्यार्थियों विधयर्थि को "मीनाक्शिमीनाक्षी मे मुदममुदम् देहि" गाना कोगीत गाने के लिए कहा था। "मीनक्शियह मेगीत मुदम"पूर्वी पुर्विकल्यनिकल्याणी रागाराग मे लिखारचा गया था। जैसेवे उसकिआगे विध्यर्थिभी नेकई गीत गाते रहे , जैसे ही उन्होंने "मीनामीन लोछनिलोचनि पासापाश मोछनिमोचनि" गानेगान शुरु किया तबतभी दिक्शितरमुत्तु स्वामि ने उसकिअपने हाथोहाथों उठायाको औरउठाते सिवेहुए पहि"शिवे कहाकरपाहि" मरणशीला( कुण्डलीइसका मेअर्थ गयाहे था।भगवान ! माफ़ करना मुझे ! ) कहकर दिवंगत हो गए। उसकि समधिसमाधि इट्टायापुरमएट्टैय्यापुरम ( यह महाकवि सुब्रह्मण्यम भारति किका जन्म स्थल भी है ) मे है।है । यह स्थल कोइल्पट्टी और टुटीकोरिन के पास है।<ref>Suresh Narayanan, "Carnatic Music" (2012), Part -1, p 18, Suvarnaragam Publications</ref>