"पिथौरागढ़": अवतरणों में अंतर

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अचानक ही गावं से तेज नगाडों की आवाज आने लगती है। यह संकेत है हिलजात्रा के प्रमुख पात्र ‘लखिया भूत’(वीरभद्र) के आने का। सभी पात्र इधर-उधर पंक्तियों में बैठ जाते हैं और मैदान खाली कर दिया जाता है। तब हाथों में काला चंवर लिए काली पोशाक में, गले में रुद्राक्ष तथा कमर में रस्सी बांधे लखिया भूत बना पात्र वहां आता है। सभी लोग लखिया भूत की पूजा अर्चना करते हैं और घर-परिवार, गाँव की खुशहाली के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। लखिया भूत सब को आशीर्वाद देकर वापस चला जाता है। फिर प्रत्येक पात्र धीरे-धीरे वापस जाते हैं।
भले ही आज का वर्तमान दौर संचार क्रांति का दौर बन चुका हो, किन्तु यहाँ के लोगों में अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने की भरपूर ललक दिखी देती है। कम से कम गाँव में मनाये जाने वाले इन उत्सवों से तो यही प्रतीत होता है। इससे लोगों के बीच अटूट धार्मिक विश्वास तो पैदा होता ही है साथ ही लोक कलाओं का दूसरी पीढियों में आदान-प्रदान भी होता है।<ref>[http://www.merapahad.com/hilljatra-a-folk-festival-in-pithoragarh पिथौरागढ़ जिले में हिलजात्रा महोत्सव]</ref>
 
इस पर्व का आगाज भले ही महरों की बहादूरी से हुआ हो, लेकिन अब इसे कृषि पर्व के रूप में मनाये जाने लगा है।हिलजात्रा में बैल, हिरन, चित्तल और धान रोपती महिलाएं, यहां के कृषि जीवन के साथ ही पशु प्रेम को भी दर्शाती हैं। समय के साथ आज इस पर्व की लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई है कि हजारों की तादाद में लोग इसे देखने आते हैं। <ref>[http://hindi.news18.com/amp/news/uttarakhand/pithoragarh/hill-jatra-festival-celebrated-in-pithoragarh-904082.html हिलजात्रा में लखिया भूत को देखने उमड़ी भारी भीड़]</ref>
 
== पिथौरागढ़ का इतिहास ==