"मानव का विकास": अवतरणों में अंतर
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सभी जीवधारियों (पौधे हों या जंतु) के शरीर में दो प्रकार के कार्बन कण उपस्थित होते हैं, एक साधारण, (C12) और दूसरा रेडियाऐक्टिव, (C14)! इनका आपसी अनुपात सभी जीवों में (चाहे वे जीवित स्थित हों या मृत) (constant) रहता है। कार्बन_14, वातावरण में उपस्थित नाइट्रोजन_14 के अंतरिक्ष किरणों (cosmic rays) द्वारा परिवर्तित होने से, बनता है। यह कार्बन_14 वातावरण के ऑक्सीजन से मिलकर रेडियाऐक्टिव कार्बन डाइऑक्साइड (C14O2) बनाता हैं, जो पृथ्वी पर पहुँचकर [[प्रकाश संश्लेषण]] द्वारा पौधों में अवशोषित हो जाता है और इनसे उनपर आश्रित जंतुओं में पहुँच जाता है। मृत्यु के बाद कार्बन_14 का अवशोषण बंद हो जाता है तथा उपस्थित कार्बन_14 पुन: नाइट्रोजन_14 में परिवर्तित होकर वातावरण में लौटने लगता है। यह मालूम किया जा चुका है कि कार्बन_14 का आधा भाग 5,720 वर्षों में नाइट्रोजन_14 में बदल पाता है। अतएव जीवाश्म में कार्बन_14 की उपस्थित मात्रा का पता लगाकर, किसी जीवाश्म की आयु का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि में कमी यह है कि इसके द्वारा केवल 50 हजार वर्ष तक की आयु जानी जा सकती है।
== मानव विकास के प्रमाण जीवाश्म ==
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(5) वर्तमान मनुष्य / [[होमो]] सेपियन्स (modern human), का प्रथम उदाहरण क्रोमैग्नॉन मानव में प्राप्त होता है।
आज का [[मनुष्य]] [[अफ़्रीका]] में 2 लाख साल पहले रहने वाले होमो सेपियन्स का वंशज है। यानी हम सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/news/story/2008/01/080130_askus_black_white.shtml|title=आज का मानव अफ़्रीका में 2 लाख साल पहले रहने वाले होमो सेपियन्स का वंशज है. यानी हम सबके पूर्वज अफ़्रीकी थे।}}</ref>
होमोइरेक्टस के बाद विकास दो शाखाओं में विभक्त हो गया। पहली शाखा का नियेंडरथाल मानव में अंत हो गया और दूसरी शाखा क्रोमैग्नॉन मानव अवस्था से गुजरकर वर्तमान मनुष्य तक पहुंच पाई है। संपूर्ण मानव विकास मस्तिष्क की वृद्धि पर ही केंद्रित है। यद्यपि मस्तिष्क की वृद्धि स्तनी वर्ग के अन्य बहुत से जंतुसमूहों में भी हुई, तथापि कुछ अज्ञात कारणों से यह वृद्धि प्राइमेटों में सबसे अधिक हुई। संभवत: उनका वृक्षीय जीवन मस्तिष्क की वृद्धि के अन्य कारणों में से एक हो सकता है।
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वनस्पति और जंतु का पूर्ण उपयोग करने के पश्चात् मनुष्य का ध्यान खनिज पदार्थों की ओर गया। सर्वप्रथम ताँबे का उपयोग किया गया, परंतु शीघ्र ही यह मालूम हो गया कि धातुओं के मिश्रण से वस्तुएँ अधिक कड़ी बनाई जा सकती हैं। लगभग 3,000 वर्ष ईसा पूर्व काँसे (ताँबे और टिन के मिश्रण) का प्रयोग प्रारंभ हुआ। 1,400 वर्ष ईसा पूर्व इस्पात का उपयोग होने लगा, जो अब तक चला आ रहा है।
== भूवैज्ञानिक कल्पों की सारणी ==
'''वर्ष''' (लाख में) '''कल्प''' '''महाकल्प''' '''जन समूहों की अवधि'''
10 अत्यंतनूतन (Pleistocene) नूतनजीव (Cenozoic) अपृष्ठवंशी (Invertebrates)
150 अतिनूतन (Pliocene) मत्स्य (Fishes)
350 मध्यनूतन (Miocene) जलस्थल चर (Amphibians)
450 अल्पनूतन (Oligocene) सरीसृप (Reptiles) पक्षी (Birds)
700 आदिनूतन (Eocene) मध्यजीवी (Mesozoic) स्तनी (Mammals) मनुष्य
1400 क्रिटेशस (Cretaceous)
1700 जूरैसिक (Jurassic)
1950 ट्राइऐसिक (Triassic)
2200 परमियन (Permian) पुराजीवी (Palaeozoic)
2750 कार्बनी (Carboniferous)
3200 डिवोनी (Devonian)
3500 सिल्यूरिन (Silurain)
4200 ऑर्डोविशन (Ordovician)
5200 कैंब्रियन (Cambrain) आद्य महायुग (Archaean)
30000 पूर्व-कैंब्रियन (Pre Cambrian)
== मनुष्य के जीवित संबंधी ==
मनुष्य के पूर्वजों की अन्य कोई जाति अब जीवित नहीं है। वर्तमान जंतुओं में जो समूह उनके निकट संबंधी होने का दावा कर सकता है, उसे प्राइमेटीज़ (primates, नरवानर-गण) कहते हैं। यह स्तनियों का एक समूह है। मानव विकास के अध्ययन में प्राइमेटीज़ का संक्षिप्त विवरण आवश्यक हो जाता है। प्रख्यात जीवाश्म विज्ञानी, जी जी सिंपसन (G. G. Simpson), के अनुसार प्राइमेटीज का वर्गीकरण इस प्रकार कर सकते हैं :
प्राइमेटीज़
पूर्ववानर या प्रोसिमिई (Prosimiae) ऐंथ्रोपॉइडिया (Anthropoidea)
टार्सियर (Tarsier),
लीमर (Lemur),
लोरिस (Loris) आदिट वानर मानवाकार मानवगण कपिगण
उदाहरण गब्बन लुप्तमानव,
नवीन संसार प्राचीन संसार अर्थात् (Gibbon) वर्तमान
अर्थात् मध्य और दक्षिणी अफ्रीका और एशिया ओरांग-ऊटान मानव
अमरीका के वानर के वानर (Orangutan),
मार्मोसेट (Mormoset), मकाक (Macaque) गोरिल्ला
सीबस (Cebus) तथा बैबून (Gorilla)
तथा एलूएटा (Alouatta) (Baboon) तथा चिंपैंजी (Chimpanzee)
=== प्रोसिमिई ===
'''टार्सियर''' - टार्सियर की केवल एक जाति होती है, जो पूर्वी एशिया के द्वीपों में पाई जाती है, परंतु इसके जीवाश्म यूरोप और अमरीका में भी पाए जाते हैं, जो इनके विस्तृत वितरण के द्योतक हैं।
'''लीमर''' - ये मैडागैस्कर द्वीप पर ही पाए जाते हैं और वृक्षवासी होते हैं। भोजन की खोज में ये बहुधा भूमि पर भी आ जाते हैं। ये सर्वभक्षी (omnivorous) होते हैं।
'''लोरिस''' - ये उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका और एशिया में पाए जाते हैं। छोटे और समूर-दार (furry) होने के कारण ये लोकप्रिय, पालतू जंतु माने जाते हैं।
=== ऐंथ्रोपॉइडिया ===
'''नवीन संसार के वानर''' - इनमें निम्नलिखित जातियाँ हैं :
मार्मोसेट - मार्मोसेट उष्णकटिबंधीय अमरीका में पाया जाता है। यह वृक्षवासी और सर्वभक्षी होता है।
सीबस - ये उष्णकटिबंधीय अमरीका में पाए जानेवाले वृक्षवासी वानर हैं, जो मानवाकार कपियों की भाँति साधनों या करण का उपयोग करते हैं।
एलूएटा - एलूएटा मध्य अमरीका के पनामा नहर के समीप बैरो कोलैरैडो (Barrow Colorado) नामक द्वीप पर पाए जाते हैं। ये वानर संसार में सबसे अधिक शोर मचानेवाले जंतु हैं। इनमें कुछ सामाजिक प्रवृत्तियाँ भी पाई जाती हैं।
'''प्राचीन संसार के वानर''' - इनमें नीचे लिखी जातियाँ हैं :
बैबून - बैबून अफ्रीका और दक्षिणी एशिया में रहते हैं। ये माप में भेड़ियें के बराबर होते हैं। इनकी थूथन लंबी और कुछ छोटी होती है।
मकाक--मकाक की विभिन्न जातियाँ जिब्राल्टर, उत्तरी अफ्रीका, भारत, मलाया, चीन और जापान में पाई जाती हैं। ये वृक्षवासी, चतुर और परिश्रमी जंतु होते हैं।
'''मानवाकार कपिगण''' - मानवाकार कपि के अंतर्गत चार बृहत् कपि, गिब्बन, ओरांग, ऊटान, गोरिल्ला और चिंपैंज़ी, आते हैं।
यद्यपि बृहत् कपियों और मनुष्य में अनेक समानताएँ अवश्य पाई जाती हैं, फिर भी इन्हें मनुष्य का पूर्वज कहना सर्वथा त्रुटिपूर्ण होगा, क्योंकि जहाँ मनुष्य तथा इन कपियों में समानताएँ मिलती हैं, वहाँ उनमें और पूर्व वानरों में भी कुछ मिलता हैं। इतना ही नहीं, बृहत् कपि अपने अनेक गुणों में मनुष्य से अधिक विशिष्ट हैं। अतएव हम समानताओं के आधार पर केवल इतना ही कह सकते हैं कि बृहत् कपि और मनुष्य के पूर्वज प्राचीन काल में एक रहे होंगे।
== मानव विकास में सहायक विशेष गुण ==
वे विशेष गुण, जिन्होंने मनुष्य के विकास को प्रोत्साहित किया, निम्नलिखित हैं :
'''खड़े होकर चलना''' - यद्यपि कुछ बृहत् कपि भी बहुधा खड़े हो लेते हैं, परंतु स्वभावत: खड़ा होकर चलनेवाला केवल मनुष्य ही है। इस गुण के फलस्वरूप मनुष्य के हाथ अन्य कार्यों के लिये स्वतंत्र हो जाते हैं। खड़े होकर चलने के लिये उसकी अस्थियों की बनावट और स्थिति आंतरिक अंगों की स्थितियों में फेर बदल हुए। पैर की अस्थियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। अँगूठा अन्य उँगलियों की सीध में आ गया तथा पैरों ने चापाकार (arched) होकर थल पर चलने और दौड़ने की विशेष क्षमता प्राप्त कर ली। ये गुण मनुष्य की सुरक्षा और भोजन खोजने की क्षमता में विशेष रूप से सहायक सिद्ध हुए।
'''त्रिविम दृष्टि''' (Stereoscopic Vision) - चेहरे पर आँखों का सामने की ओर अग्रसर होना टार्सियर जैसे पूर्व वानरों में प्रारंभ हो चुका था, पर इसका पूर्ण विकास मनुष्य में ही हो पाया। इसके द्वारा वह दोनों आँख एक ही वस्तुपर केंद्रित कर न केवल उसका एक ही प्रतिबिंब देख पाता है, वरन् उसके त्रिविम आकार (three dimensional view) की विवेचना भी कर सकता है। इस विशेष दृष्टि द्वारा उसे वस्तु की दूरी और आकार का ही सही अनुमान लग पाता है तथा वह अधिक दूर तक भी देख पाता है।
'''संमुख अंगुष्ठ''' (Opposible Thumb)--संमुख अंगुष्ठ का अर्थ है, अंगुष्ठ को अन्य उंगलियों की प्रतिकूल स्थिति में लाया जा सकना। इस स्थिति में अंगुष्ठ अन्य उंगलियों के सामने आकर और साथ मिलकर वस्तुओं में पकड़ सकने में सफल हो पाता है। यह गुण जंतु समूह में केवल प्राइमेट गणों में, वस्तुओं की परीक्षण हेतु मुख के समुख लाने से, प्रारंभ हुआ तथा मनुष्य में उसका इतना अधिक विकास हुआ कि आज मनुष्य का हाथ एक अत्यंत संवेदनशील और सूक्ष्मग्राही यंत्र बन गया है। ऐसे हाथ की सहायता से मनुष्य अपनी मानसिक शक्तियों को कार्य रूप सृष्टि का सबसे प्रतिभाशाली प्राणी बन पाने में सफल हुआ है। यह कहना कि संमुख अंगुष्ठ ने ही मानव मस्तिष्क के संवर्धन में योगदान किया है, अतिशयोक्ति ने होगी।
इस प्रकार विकास की दिशा में जो पहला परिवर्तन मनुष्य में हुआ वह प्रथम पैरों पर सीधा खड़े होने के लिये तथा द्वितीय हाथों से वस्तुओं को भली प्रकार पकड़ सकने के लिये रहा होगा। हाथ में हुए परिवर्तन ने उसे उपकरण बनाने की ओर प्रोत्साहित किया होगा और उपकरणों ने आक्रमण कर शिकार करने, या अपनी सुरक्षा करने, की भावना उसमें उत्पन्न की होगी। आक्रमण के बाह्य साधन की उपलब्धि के फलस्वरूप उसके आक्रमणकारी अंगों (दाँत, जबड़े और संबंधित मुख या गर्दन की मांसपेशियों) में ह्रास और स्वयं हाथों में विशेषताएँ प्रारंभ हुई होंगी। हाथ के अधिक क्रियाशील होने पर, मस्तिष्क संवर्धन स्वाभाविक ही हुआ होगा। संक्षेप में, मानव विकास में तीन मुख्य क्रम रहे होंगे : पहला पैरों का, दूसरा हाथों का और तीसरा मस्तिष्क का विकास।
== मनुष्य और वानर में भेद ==
साधारणतया मनुष्य और वानर, विशेषकर मानवाकार वानर, अपनी शारीरिक रचनाओं में समान हैं : समान अस्थियाँ, अंग, मांसपेशियाँ और यहाँ तक कि रक्तसमूह (blood group) भी। परंतु सूक्ष्म परीक्षण पर अनेक अंतर भी मिलते हैं, जो मुख्यत: मनुष्य के खड़े होकर दो पैरों पर चलने के कारण हैं। उदाहरणार्थ, कपियों के प्रतिकूल मनुष्य की टाँगे हाथों से अपेक्षाकृत लंबी होना, कूल्हे की अस्थि के आकार और स्थिति में परिवर्तन, पैरों के अँगूठों का अन्य उँगलियों की सीध में आना तथा स्वयं पैरों का चापाकार हो जाना आदि। इन गुणों के अतिरिक्त मनुष्य का मस्तिष्क अन्य सभी कपियों से बड़ा है। जहाँ कपियों की कपालगुहा का आयतन 350-450 घन सेंटीमीटर है, वहाँ मनुष्य का 1200-1500 घन सेंमीदृ तक है। उसका अपेक्षाकृत सपाट चेहरा, घटित तथा ठुड्डी युक्त जबड़ा और प्रत्यक्ष नाक उसे मानवी रूप प्रदान करते हैं। होठों के आंतरिक भाग का बाहर दिखाई पड़ना, कानों की बारियों का मुड़ा होना, बालों का संपूर्ण शरीर पर न होना, रदनक दाँत (canine teeth) का होना, ऐसे अन्य गुण हैं जो मनुष्य को कपियों से दूर ले जाते हैं।
== मनुष्य का भविष्य ==
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*[[चार्ल्स डार्विन]]
*[[मानव विकास (जीवविज्ञान)]] (ह्यूमन डेवलपमेन्ट)
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
[[श्रेणी:मानव विकास]]
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