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कुशवाहा(कोईरी/मौर्य/शाक्य) भारतीय समाज की एक प्राचीन श्रेष्ठ वंश/जाति है। इनकी जनसंख्या भारत और इसके पड़ोसी देश नेपाल ,भूटान, श्रीलंका और अब विदेशों में अलग-अलग उपनामों के साथ विद्यमान हैै। कुशवाहा मानवतावादी जाति है और प्रारम्भ से हीं मानव कल्याण के लिए लड़ते आ रहे हैं। राम, कुश(स्त्री समान के लिए राम को भी राह दिखाने वाले ),महात्मा बुद्ध (संसार को शांति का मार्ग दिखाने वाले),अशोक ये सभी कुशवाहा वंश/जाति के महान पुरुष हैं।सृष्टि के प्रारम्भ में कृषि एक पारम्परिक पेशा था और ये कृषक थे। अतः ये समाजिक तथा आर्थिक रूप से उन्नत थे। भारत के कई हिस्सों में अब इन्हें सिंह, मौर्या, कुशवाहा, महतो इत्यादि उपनामों से जाना जाता हैं। इनकी मानवीय विचार और शक्तिशाली होने के कारण लोग इन्हें महतो(मालिक) का दर्जा देते थे। बाद में यहीं शब्द बृह्द होकर राजा का रूप ले लिया। अतः राजपूत भी इसी वंश/जाति की एक शाखा हैै।"कुशवाहा" परिश्रमी और बुद्धिमान होने के कारण आज कुशल प्रशासक, न्यायिक ,वैज्ञानिक, शैक्षणिक, रक्षा इत्यादि के श्रेष्ठ पदों पर मानवीय विकास में अपना योगदान दे रहे है।
==इतिहास ==
सभी हिन्दुओ में सिर्फ इन्ही की वंशावली का जुड़ाव श्री राम चंद्र जी के वंशजो {पुत्र कुश }तक जाता है, भारत में अखंड राज करने वाली इन जातियों में आज भी सात्विकता का स्तर हर किसी जाति से ज्यादा है और ये लोग सनातन धर्म के सबसे बड़े वाहक रहे हैं, बाद में इनकी अगुआई में बुद्ध धर्म ने बहुत विकास किया ।
==सन्दर्भ ==
पादरी शेरिंग साहब , एम ए एल एल बी लन्दन ,इन्हों ने अपनी पुस्तक हिन्दू ट्राईव्स एण्ड कांस्ट्स वॉल्यूम 3, पृष्ठ संख्या 260 में कोइरी (कुशवाहा) को स्पष्ट रूप से सूर्यवंशी क्षत्रिय लिखा है। यह लेख प्रस्तुत सन 1881 ई० थाकर स्पीक एण्ड कम्पनी लन्दन से प्रकाशित हुई थी। अर्थात आज से 100 से भी अधिक वर्ष पूर्व , उस समय अंग्रेज विद्वानों ने भी कोईरी को सूर्यवंशी कुल का क्षत्रिय ही लिखा है। इसके अलावा कुशवाहा श्री राम के पुत्र कुश के वंसज है इस सन्दर्भ में आप कर्नल जेम्स टांड .. कर्निघम .. हेनरी इलियट पादरी शेरिंग डा जेपी स्ट्रेटन जनाब लारेंस साहब प0 जवाहर प्रसाद मिश्र श्री रल्मनरायण डुगड प्0 गणेश दत्त शर्मा डा बालकृष्ण आदि विभिन्न विद्वानों को पढ़ा जा सकता है। कोइरी कुशवाहा समाज के इतिहास के सन्दर्भ में इन्होंने क्षत्रिय और सूर्यवंशी कहकर कुशवाहा का सम्बोधन किया है
==वैज्ञानिक प्रमाणिकता==
कुशवाहा जाति के इस दावे को सिरे से ख़ारिज नहीं किया जा सकता। क्षेत्र-अध्ययन किसी भी परिकल्पना को सिद्ध करने की सटीक एवं वैज्ञानिक पद्धति है। यदि हम मौर्य साम्राज्य से जुड़े या बुद्धकाल के प्रमुख स्थलों का अवलोकन करें तो पायेगें कि इन क्षेत्रों में कुशवाहा जाति की खासी आबादी है। 1908 में किये गए एक सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई थी कि कुम्हरार (पाटलिपुत्र), जहाँ मौर्य साम्राज्य के राजप्रासाद थे, उससे सटे क्षेत्र में कुशवाहों के अनेक गाँव ,यथा कुम्हरार खास, संदलपुर, तुलसीमंडीए रानीपुर आदि हैं, तथा तब इन गाँवों में 70 से 80 प्रतिशत जनसँख्या कुशवाहा जाति की थी। प्राचीन साम्राज्यों की राजधानियों के आसपास इस जाति का जनसंख्या घनत्व अधिक रहा है। उदन्तपुरी (वर्तमान बिहारशरीफ शहर एवं उससे सटे विभिन्न गाँव) में सर्वाधिक जनसंख्या इसी जाति की है। राजगीर के आसपास कई गाँव (यथा राजगीर खास, पिलकी महदेवा, सकरी, बरनौसा, लोदीपुर आदि) भी इस जाति से संबंधित हैं। प्राचीन वैशाली गणराज्य की परिसीमा में भी इस जाति की जनसंख्या अधिक है। बुद्ध से जुड़े स्थलों पर इस जाति का आधिक्य है यथा कुशीनगर, बोधगया, सारनाथ आदि। नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों के आसपास भी इस जाति के अनेक गाँव हैं यथा कपटिया, जुआफर, कपटसरी, बडगाँव, मोहनबिगहा आदि। उपर्युक्त उदाहरणों से यह प्रतीत होता है कि यह जाति प्राचीनकाल में शासक वर्ग से संबंधित थी तथा नगरों में रहती थी। इनके खेत प्राय: नगरों के नज़दीक थे अत: नगरीय आवश्यकता की पूर्ति हेतु ये कालांतर में साग-सब्जी एवं फलों की खेती करने लग। आज भी इस जाति का मुख्य पेशा साग-सब्जी एवं फलोत्पादन माना जाता है।
==जनसंख्या विस्तार ==
भारत के सभी राज्यों में इनकी जनसंख्या है। नेपाल तथा विदेशों में भी इनकी जनसंख्या अच्छी-खासी है
==शासक गण==
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