"माया": अवतरणों में अंतर
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वेद के अनुसार श्वेताश्वतर उपनिषद् (१.१२) "तीन तत्व है।" जबकि यहाँ पर 'एक तत्व ही है' ऐसा लिखा था |
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# स्वप्न में चित्रों का संयोग अनिर्णीत होता है, जागरण में यह निर्णीत भी होता है। स्वप्न कल्पना का खेल है, इसमें बुद्धि काम नहीं करती। स्वप्न रूपक और कल्पना की भाषा का प्रयोग करता है, जागरण में प्रत्ययों की भाषा भी प्रयुक्त होती है।
# स्वप्न में प्रत्येक व्यक्ति अपनी निजी दुनिया में विचरता है, जागरण में हम साझी दुनिया मेें रहते हैं। इस दूसरी दुनिया में व्यवस्था प्रमुख है। प्रतिदिन भ्रमण में अनेक पदार्थों को एक ही क्रम में स्थित देखता हूँ, मेरे साथी भी उन्हें उसी क्रम में देखते हैं; दूसरी ओर कोई दो मनुष्य एक ही स्वप्न नहीं देखते, न ही एक मनुष्य के स्वप्न एक दूसरे को दुहराते हैं।
'''श्वेताश्वतर उपनिषद् (१.१२) ''' "तीन तत्व है। अनादि अनंत शाश्वत। एक ब्रह्म, एक जीव, एक माया।" तो ब्रह्म (भगवान) और जीव (आत्मा) के अलावा जो बचा वो माया है, माया अज्ञान का प्रतीक है
इस जगत में एक ही तत्व हैं- इश्वर, बाकी जो भी दृश्य हैं वह ही माया हैं,जूठा हैं। कैसे?वह इसलिय क्योंकि हमारे शरीर के साथ, अथवा संसार में जो कुछ भी होता हैं , इसका प्रभाव हमपर अर्थात हम "आत्मा स्वरुप, पूर्ण ब्रह्म" नहीं पड़ता या पड़ सकता।शारीरिक दुःख प्रारब्ध भोगने के लिय ही हैं,अगर कोई ज्ञान में रहकर उससे उदासीन रहे तो यह उसका ज्ञान हैं जो की दुःख निवृत्ति में सहायक हैं।▼
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== सन्दर्भ ==
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