"अर्धसूत्रण": अवतरणों में अंतर

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===== जाइगोटीन =====
ज़ाइगोटीन उपावस्था में गुणसूत्रों का युग्मन होता है। लैंगिक गुणसूत्रों के अतिरिक्त जीव के केंद्रक में गुणसूत्रों के दो एकात्मक कुलक होते हैं। एक कुलक में कई गुणसूत्र होते हैं, जो साधारणत: एक दूसरे से भिन्न होते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक प्रकार के दो गुणसूत्र होते हैं। जैसा ऊपर कहा जा चुका है, युग्मांशु उपवस्था में गुणसूत्रों का युग्मन होता है। युग्मन की क्रिया क्रमहीन रूप में नहीं होती, वरन्‌ बहुत क्रमबद्ध होती है। यह क्रिया केवल समान गुणसूत्रों के बीच होती है। प्रत्येक गुणसूत्र अपने समान सूत्र के साथ एक सिरे से दूसरे सिरे तक जुड़ जाता है और जुड़े हुए सूत्रों के क्रोमोमियर केवल अपने समान क्रोमोमियर से ही जुड़ते हैं। ज़ाइगोटीन अवस्था के अंत तक युग्मन की क्रिया पूर्ण हो जाती है। साथी गुणसूत्र एक दूसरे के इतने अधिक समीप होते हैं कि वे एक प्रतीत होते है। गुणसूत्रों के ऐसे जोड़ों को द्विसंयोजक कहा जाता है। lllll
 
===== पैकिटीन =====
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==== अंतराल अवस्था ====
अंतराल अवस्था बहुत ही अल्पकालीन होती है और कुछ जंतुओं में तो होती ही नहीं।
 
=== अर्धसूत्रण २ ===
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ऐसा भी होता है कि मादा में दो य-गुणसूत्र हों और नर में केवल एक य-गुणसूत्र। ऐसी दशा में लिंगनिर्णय (sex determination) उसी भाँति होता है जैसे भाँति होता है जैसे ड्रोसॉफिला मेलानो-गैस्टर में। नर के शरीर में दो प्रकार के शुक्राणु उत्पन्न होते हैं-एक में आलिंग सूत्र के अतिरिक्त य-गुणसूत्र होता है और दूसरे में य-गुणसूत्र होता ही नहीं। ऐसे भी जंतु हैं जिनके नर में परस्पर भिन्न कई य-गुणसूत्र होते हैं। अर्धसूत्रण के अंत पर दो प्रकार के स्परमाटिड बनते है। एक प्रकार के स्परमाटिड में आलिंगसूत्र के अतिरिक्त य1, य2, य3 इत्यादि गुणसूत्र होते हैं और दूसरे में केवल र-गुणसूत्र और आलिंगसूत्र।
 
== इन्हें भी देखदेखें ==
 
[[श्रेणी:कोशिका]]