"विश्वामित्र": अवतरणों में अंतर
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इन्द्र की बात सुन कर विश्वामित्र जी बोले कि मैंने इसे स्वर्ग भेजने का वचन दिया है इसलिये मेरे द्वारा बनाया गया यह स्वर्ग मण्डल हमेशा रहेगा और त्रिशंकु सदा इस नक्षत्र मण्डल में अमर होकर राज्य करेगा। इससे सन्तुष्ट होकर इन्द्रादि देवता अपने अपने स्थानों को वापस चले गये।
==[https://sa.wikisource.org/s/15h विश्वामित्र का यज्ञ]==
एक बार विश्वामित्र ने सिद्धि हेतु एक यज्ञ का अनुष्ठान किया परन्तु बहुत प्रयत्न करने पर भी वह यज्ञ पूर्णता को प्राप्त न हो सका क्योंकि यज्ञ की पूर्णता के समय रावण द्वारा प्रेरित हुए मारीच और सुबाहु नामक दो राक्षस अपने सहयोगियों के साथ आकर उस यज्ञ में विघ्न उपस्थित कर देते। अतः यज्ञ की पूर्णता हेतु एक दिन विश्वामित्र अयोध्यापति दशरथ के पास गए और उनसे उनके ज्येष्ठ पुत्र राम की याचना की। राम की किशोरावस्था तथा राक्षसों की प्रबलता को ध्यान में रखते हुए दशरथ ने विश्वामित्र के साथ राम को भेजने में अपनी असमर्थता व्यक्त की परन्तु बाद में वसिष्ठ जी के समझाने पर पुत्र-हित को भी ध्यान में रखते हुए उन्होंने राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र को सौंप दिया।
अयोध्या से निकलकर विश्वामित्र ने राम को बला और अतिबला नामक दो विद्याएँ प्रदान की जो ब्रह्मा जी की तेजस्विनी पुत्रियां थी। राम ने भी विश्वामित्र के आदेशानुसार सरयू के जल से आचमन करके बला और अतिबला नामक दोनों विद्याओं को ग्रहण किया।
मार्ग में जाते समय विश्वामित्र ने राम के प्रश्नों का समाधान करते हुए उन्हें सरयू-गंगा संगम के समीप निर्मित पुण्य आश्रम का परिचय दिया, संगम के जल में उठती हुई तुमुल ध्वनि के कारण को स्पष्ट किया, मलद और करूष जनपदों को समझाया तथा ताटका वन का परिचय देते हुए ताटका की उत्पत्ति का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि सुकेतु यक्ष की यक्षिणी कन्या ताटका ही सुन्द नामक दैत्य से विवाह करके राक्षसी ताटका बन गई और उसके मारीच तथा सुबाहु नामक दो पुत्र हुए। ये सब मिलकर ऋषि अगस्त्य जी के सुन्दर देश को उजाडने के कारण अगस्त्य द्वारा भी शापित होकर राक्षस भाव को प्राप्त हुए।
ताटका वन में पहुँचकर विश्वामित्र ने राम को मारीच तथा सुबाहु की माता ताटका की गति को अवरुद्ध करते हुए उसका वध करने की आज्ञा दी, अतः राम ने ताटका का वध कर दिया। ताटका-वध से प्रसन्न हुए विश्वामित्र ने राम को अनेकानेक दिव्यास्त्र प्रदान किए जो प्रजापति दक्ष की जया और सुप्रभा नामक दो कन्याओं के पुत्र थे। राम ने सभी दिव्यास्त्रों को अपने मन में धारण कर लिया और उन दिव्यास्त्रों से आवश्यकता के समय मन में उपस्थित होकर सहायता करने का आग्रह किया।
ताटका वन से बाहर निकलकर राम और लक्ष्मण विश्वामित्र की यज्ञस्थली और वामन भगवान् की निवासस्थली सिद्धाश्रम में पहुंचे तथा विश्वामित्र के यज्ञ में दीक्षित हो जाने पर उस यज्ञ की रक्षा करने लगे। लक्ष्मण की सहायता से राम ने यज्ञ का विध्वंस करने वाले मारीच और सुबाहु नामक राक्षसों में से मारीच को तो एक ही बाण से सौ योजन दूर समुद्र में फेंक दिया और सुबाहु को उसकी सेना सहित मार डाला।
== विश्वामित्र को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति ==
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== स्रोत ==
{{श्री राम चरित मानस}}
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