"रानी कर्णवती": अवतरणों में अंतर

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'''रानी कर्मवती''' (मृत्यु 8 मार्च 1535), [[राणा सांगा]] की पत्नी थीं जो अल्प काल के लिये [[बूँदी]] की शाशिका भी रहीं। वे राणा विक्रमादित्य और राणा उदय सिंह की माँ थीं और [[महाराणा प्रताप]] की दादी थीं।
 
भाई बनकर मुगल बादशाह हुमायूँ ने कैसे रानी कर्णावती को धोखा दिया, जानिए एक ऐसी सच्चाई जो आज तक छुपाए गयी है, दोस्तों      
 
बचपन में हमें अपने पाठयक्रम में पढ़ाया जाता रहा है कि रक्षाबंधन के त्योहार पर बहने अपने भाई को राखी बांध कर उनकी लम्बी आयु की कामना करती है। रक्षा बंधन का सबसे प्रचलित उदहारण चित्तोड़ की रानी कर्णावती और मुगल बादशाह हुमायूँ का दिया जाता है। कहा जाता है कि जब गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तोड़ पर हमला किया तब चित्तोड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को पत्र लिख कर सहायता करने का निवेदन किया। पत्र के साथ रानी ने भाई समझ कर राखी भी भेजी थी। हुमायूँ रानी की रक्षा के लिए आया मगर तब तक देर हो चुकी थी। रानी ने जौहर कर आत्महत्या कर ली थी। इस इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम एकता तोर पर पढ़ाया जाता हैं।
 
अब इस सेक्युलर घोटाले की वास्तविकता देखिये –
 
मेवाड़ साम्राज्य के महानायक राणा सांगा का नाम कौन नहीं जानता, जिन्होंने सबसे पहले आतताई बाबर का सामना किया | 1526 ईसवी में जब बाबर ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर लिया, तब राणा संग्राम सिंह उर्फ़ राणा सांगा ने इस विदेशी आक्रान्ता के खिलाफ राजपूत राजाओं को एकत्रित किया और बाबर पर धावा बोला । लेकिन 1527 में खानुआ की लड़ाई में, यह संयुक्त हिंदू शक्ति बाबर के तोपखाने से पराजित हो गई | बहादुरी से लड़ते हुए राणा सांगा के शरीर पर 80 घाव आये, और देश धर्म की बलिवेदी पर उनका बलिदान हुआ ।
 
इन्ही राणा सांगा की धर्मपत्नी थीं रानी कर्णवती । वह चित्तौड़गढ़ के अगले दो राणा, राणा विक्रमादित्य और राणा उदय सिंह की माता और महान महाराणा प्रताप की दादी थी। 1527 से 1533 तक अपने अल्पवयस्क बड़े पुत्र विक्रमादित्य के संरक्षक के रूप में उन्होंने ही राजकाज संभाला ।
 
इसी दरम्यान गुजरात के शासक बहादुर शाह द्वारा मेवाड़ पर हमला किया गया । राणा सांगा के बाद सिसौदिया वंश के अन्य परिजन अल्पवयस्क राणा के आधीन रहने को तैयार नहीं थे | किन्तु महारानी कर्णावती ने उन्हें सिसौदिया वंश की खातिर युद्ध करने हेतु मनाया । उन लोगों ने शर्त रखी कि युद्ध के दौरान राणा सांगा के दोनों बेटे व्यक्तिगत सुरक्षा की दृष्टि से बुंदी जायें। इसी दौरान वह प्रसंग भी हुआ, जिसने पन्ना धाय को इतिहास में अमर कर दिया |
 
रानी कर्णावती अपने बेटों को बूंदी भेजने को राजी हो गईं तथा उन्होंने अपनी भरोसेमंद दासी पन्ना दाई को उनकी जिम्मेदारी सोंपी | सत्ता की हवस में बच्चों के चाचाओं ने ही उनकी जान लेने का प्रयत्न किया | किन्तु पन्ना धाय ने राजकुमार के स्थान पर अपने जिगर के टुकडे अपने इकलौते बेटे को राजकुमार बताकर अपनी आँखों के सामने उसे तलवार से दो टुकड़े होते देखा |
 
इस घटना से आहत कर्णावती ने तत्कालीन मुग़ल सम्राट हुमायूं को राखी भेजकर मदद मांगी | किन्तु वे मुगालते में थीं | जिसे उन्होंने भाई बनाते हुए मदद की आशा की थी, वह पहले विदेशी आक्रान्ता था, जिसकी नजर में मेवाड़ को काफिरों के शासन से मुक्त करना, प्राथमिक कर्तव्य था |
 
हमारे देश का इतिहास सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा है। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अब्दुल कलाम थे। जिन्हें साम्यवादी विचारधारा के नेहरू ने सख्त हिदायत देकर यह कहा था कि जो भी इतिहास पाठयक्रम में शामिल किया जाये, उस इतिहास में यह न पढ़ाया जाये कि मुस्लिम हमलाव
 
== बाहऱी कड़ियाँ==