"आयु": अवतरणों में अंतर
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जीवनकाल को '''आयु''' कहते हैं, यद्यपि वय,
विभिन्न प्राणियों की आयुओं में बड़ी भिन्नता है। एक प्रकार की मक्खी की आयु कुछ घंटों की ही होती है। उधर कछुए की आयु दो सौ वर्षों तक की होती है। आयु की सीमा मोटे हिसाब से शरीर की तौल के अनुपात में होती है, यद्यपि कई अपवाद भी हैं। कुछ पक्षी कई स्तनधारियों से अधिक जीवित रहते हैं। कुछ मछलियाँ १५० से २०० वर्षों तक जीवित रहती हैं, किंतु घोड़ा ३० वर्ष में मर जाता है। वृक्षों की रचना भिन्न होने से उनकी आयु की कोई मर्यादा नहीं है। अमरीका में कुछ वृक्षों को गिराने के बाद उनके वार्षिक वलयों से पता लगा कि वे २००० वर्षों से भी कुछ अधिक वय के थे।
मृत्यु पर, अर्थात्
पिछले कई वर्षों में कई कारणों से मनुष्य का महत्तम काल तो अधिक नहीं बढ़ पाया है, किंतु औसत आयु बढ़ गई है। यह वृद्धि इसलिए हुई कि बच्चों को मृत्यु से बचाने में आयुर्विज्ञान (मेडिकल सायंस) ने बड़ी उन्नति की है। बुढ़ापे के रोगों में, विशेषकर धमनियों के कड़ी हो जाने की चिकित्सा में, विशेष सफलता नहीं मिली है। आनुवंशिकता और पर्यावरण का आयु पर बहुत प्रभाव पड़ता है। खोजों से पता चला है कि यदि प्रसव के समय की मृत्युओं की गणना न की जाय तो पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक समय तक जीवित रहती हैं। यह भी निर्ववाद है कि दीर्घजीवी माता पिता की संतान साधारणत: दीर्घजीवी होती हैं। स्वस्थ वातावरण में प्राणी दीर्घजीवी होता है। जीव की जन्मजात बलशाली जीवनशक्ति बाहर के दूषित वातावरण के प्रभाव से प्राणी की बहुत कुछ रक्षा करती है, परंतु अधिक दूषित वातावरण रोगों के माध्यम से आयु पर प्रभाव डालता है। इसके अतिरिक्त देखा गया है कि चिंता, अनुचित आहार तथा अस्वास्थ्यकारी पर्यावरण आयु घटाते हैं। दूसरी ओर, प्रतिदिन की मानसिक या शारीरिक कार्यशीलता बुढ़ापे के विकृत रूप को दूर रखती है। अंगों के जीर्ण शीर्ण हो जाने की आशंका की अपेक्षा अकार्यता से बेकार होने की संभावना अधिक रहती है। विश्व के अनेक लेखक और चित्रकार दीर्घजीवी हुए हैं और अंत तक वे नए ग्रंथ और नए चित्र की रचना करते रहे हैं। अनियमित आहार, अति सुरापान और अति भोजन आयु को घटाते हैं। सौ वर्ष से अधिक काल तक जीनेवाले व्यक्तियों में से अधिकांश लघु आहार करनेवाले रहे हैं। अधिक भोजन करने से बहुधा मधुमेह (डायबिटीज़) या धमनी, हृदय या वृक्क (गुरदे) का रोग हो जाता है। बुढ़ापा स्वस्थ और सुखद हो सकता है अथवा रोगग्रस्त, पीड़ामय और दु:खद। स्वस्थ बुढ़ापे में क्रियाशीलता कम हो जाती है और कुछ दुर्बलता आ जाती है, परंतु मन शांत रहता है। मानसिक दृष्टिकोण साधारणत: व्यक्ति के पूर्वगामी दृष्टिकोण पर निर्भर रहता है, जिससे कुछ व्यक्ति सुखी और दयालु रहते हैं, कुछ निराशावादी और छिद्रान्वेषी। श्टाइनाख और वोरोनॉफ़ ने बंदर की ग्रंथियों को मनुष्य में आरोपित करके अल्पकालीन युवावस्था कुछ लोगों में ला दी थी, परंतु उनकी रीतियों को अब कोई पूछता भी नहीं। उनकी शल्यक्रिया में मनुष्य का जीवन बढ़ नहीं सका।
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कुछ रोगों से मनुष्य समय के बहुत पहले बुड्ढा लगने लगता है। प्रोजीरिया नामक रोग में तो बच्चे भी बुड्ढों की आकृति के हो जाते हैं, परंतु सौभाग्यवश यह रोग बहुत कम होता है। कुछ रोग विशेषकर बुड्ढों में होते हैं। इनमें से प्रधान रोग हैं [[मधुमेह]] (डायबिटीज़), कर्कट (कैंसर) और हृदय, धमनी तथा वृक्क के रोग। बचपन और युवावस्था के रोगों में से न्यूमोनिया बहुधा बूढ़ों को भी हो जाता है और साधारणत: उनका प्राण ही ले लेता है।
भेषज वैधिक (मेडिका-लीगल) कार्यों में यथार्थ
== जीवनकाल ==
यद्यपि आयु तथा जीवनकाल एक दूसरे के पर्याय के रूप में प्रयोग कर सकते हैं, किन्तु इतिहास की दृष्टि से किसी व्यक्ति के जीवित रहने की अवधि को भी जीवनकाल कहा जाता है। उदाहरण के लिए - अमुक व्यक्ति का जीवनकाल सन् ---- से सन् ---- का था।
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२०वीं शताब्दी के प्रारंभ में 'मानसिक आयु' (मेंटल एज) का प्रयोग किया गया है। यद्यपि इस शब्दावली की ओर सन् १८८७ ई. में भी संकेत किया गया था, तथापि इसका श्रेय फ्रांस के मनोवैज्ञानिक अल्फ्रडे बीने (१८५७-१९११) को दिया जाता है। मानसिक आयु का तात्पर्य कुछ समान आयुवाले बालकों की औसत मानसिक योग्यता से है। इससे बालक की साधारण मानसिक योग्यता का अनुमान मिलता है। मानसिक आयु बढ़ती है और परिपक्व होती है। सामान्यत: इसकी परिपक्वता का समय १४ से २२ वर्ष की आयु के भीतर कभी भी आ सकता है। कुछ लोगों में इसकी परिपक्वता २२ वर्ष के बाद भी आ सकती है।
== बाहरी_कड़ियाँ ==
* [http://www.
== संदर्भ ग्रंथ ==
ए.जी. बेल : दि ड्यूरेशन ऑव लाइफ़ ऐंड द कंडिशंस ऐसाशिएटेड विद लांजेविटी; लुई आई। डबलिन तथा एच.एच. मार्क्स : इनहेरिटेंस ऑव लांजेविटी, ए.जी. लोटका : लेंग्थ ऑव लाइफ ऐंड स्टडी ऑव लाइफ़ टेबुल्स; ई.सी. काउदी : प्राब्लेम ऑव एजिंग; टेलर तथा मोदी : मेडिकल जुरिसप्रुडेंस।
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