"भूतसंख्या पद्धति": अवतरणों में अंतर

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: ''कहत कत परदेसी की बात।
: ''मंदिर अरध अवधि बदि हमसौं , हरि अहार चलि जात।
: ''ससि-रिपु बरष , सूर-रिपु जुग बर , हर-रिपु कीन्हौ घात।
: ''ससि-र''
: ''मघ पंचक लै गयौ साँवरौ , तातैं अति अकुलात।
: ''नखत , वेद , ग्रह , जोरि , अर्ध करि , सोई बनत अब खात।
: ''सूरदास बस भई बिरह के , कर मींजैं पछितात ॥
 
:: '''संकेत''' : मंदिर अरध = पक्ष (१५ दिन) , हरि अहार = मास (३० दिन), नखत = नक्षत्र = २७, वेद = ४, ग्रह = ९ आदि
 
: '''स'''
*(3) इस पद्धति का उपयोग पुराताविक अभिलेखों में भी खूब देखने को मिलता है जिसमें तिथि और वर्ष को भूतसंख्याओं में लिखा जाता था। उदाहरण के लिये, एक अभिलेख में तिथि लिखी है- '''बाण-व्योम-धराधर-इन्दु-गणिते शके''' -- जिसका अर्थ है '''१७०५ शकाब्द में'''। बाण = ५, व्योम = ०, धराधर = पर्वत = ७, इन्दु = चन्द्रमा = १, (संख्याओं को उल्टे क्रम में लेना है।)