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#पुनर्प्रेषित [[कश्यप संहिता]]
'''काश्यपसंहिता''' [[कौमारभृत्य]] का आर्ष व आद्य ग्रन्थ है। महर्षि कश्यप ने कौमारभृत्य को [[आयुर्वेद]] के आठ अंगों में प्रथम स्थान दिया है। काश्यपसंहिता की विषयवस्तु को देखने से मालूम होता है कि इसकी योजना [[चरकसंहिता]] के समान ही है। यह नौ 'स्थानों' में वर्णित है-
: सूत्रस्थान, निदानस्थान, विमानखिलस्थान, शरीरखिलस्थान, इन्द्रियखिलस्थान, चिकित्साखिलस्थान, सिद्धिखिलस्थान, कल्पखिलस्थान एवं खिलस्थान।
 
इनमें बालकों की उत्पत्ति, रोग-निदान, चिकित्सा, ग्रह आदि का प्रतिशेध, तथा शारीर, इन्द्रिय व विमानस्थान में कौमारभृत्य विषयक सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। सभी स्थानों में बीच-बीच में कुमारों के विषय में जो प्रश्नोत्तर प्रस्तुत किये गये हैं इससे संहिता की विशिष्टता झलकती है। <ref>[http://indianmedicine.nic.in/html/ayurveda/afmain.htm Q7] indianmedicine.nic.in. Q 7. The main classical texts for reference of Ayurvedic principles include Charak Samhita, Susruta Samhita, Astanga Hridaya, Sharangdhara Samhita, Madhava Nidan, Kashyapa Samhita, Bhavprakasha and Bhaishajya Ratnavali etc</ref>
 
काश्यपसंहिता में कुमारभृत्य के सम्बन्ध में नवीन तथ्यों को बताया गया है, जैसे दन्तोत्पत्ति, शिशुओं में मृदुस्वेद का उल्लेख, आयुष्मान बालक के लक्षण, वेदनाध्याय में वाणी के द्वारा अपनी वेदना न प्रकट कने वाले बालकों के लिए विभिन्न चेष्टाओं के द्वारा वेदना का परिज्ञान, बालकों के फक्क रोग में तीन पहियों वाले रथ का वर्णन, लशुन कल्प के विभिन्न प्रयोगों का वर्णन, तथा रेवतीकल्पाध्याय में जातहारिणियों का विशिष्ट वर्णन।
 
इसकी रचना ईसापूर्व ६ठी शताब्दी में हुई थी।<ref>Edgar Thorpe, Showick Thorpe. Pearson General Knowledge Manual 2009. Pearson. p. 196.</ref> मध्ययुग में इसका [[चीनी भाषा]] में [[अनुवाद]] हुआ।<ref>Terence Duke. The Boddhisattva Warriors: The Origin, Inner Philosophy, History and Symbolism of the Buddhist Martial Art Within India and China (p. 139-145).</ref><ref>[http://www.vedicbooks.net/kashyap-samhita-english-p-4028.html?cPath=21 Kashyap Samhita - (English), K.R. Srikrishnamurthy]</ref>
 
== संस्करण ==
कश्यप या काश्यप के नाम से तीन संहिताएँ मिलती हैं :
 
*'''1. कश्यप संहिता या वृद्धजीवकीय तंत्र''' - इसको [[नेपाल]] देशवासी, राजगुरु हेमराज शर्मा, ने 1938 ई. में प्रकाशित किया था। यह प्राचीन विलुप्त संहिता है; इसमें स्थान-स्थान पर पाठ खंडित हैं। इसका संबंध बाल-रोग-चिकित्सा से है। इसमें देशों के नाम, भूगोल तथा बहुत से नए शब्द आए हैं।
 
*'''2. कश्यप संहिता'''- यह मद्रास प्रांत से प्रकाशित हुई है, इसका विषय [[विष]] से संबंधित है; इसमें गारुड़ी विद्या, विषहर प्रयोग हैं।
 
*'''3. कश्यप संहिता'''- यह उमा-महेश्वर-प्रश्नोत्तर के रूप में है और चिकित्सा संबंधी है। यह छोटी सी पुस्तक है; जो [[तंजौर]] पुस्तकालय में है।
 
काश्यप शब्द [[गोत्र]]वाची भी है; मूल ऋषि का नाम कश्यप प्रतीत होता है। [[मत्स्य पुराण]] में मरीच के पुत्र कश्यप को मूल गोत्रप्रवर्तक कहा गया है; परंतु आगे चलकर कश्यप मारीच भी कहा है। [[चरकसंहिता]] में कश्यप पृथक लिखकर 'मारीचिकाश्पौ' यह लिखा है (चरक.सू.अ. 1। 8)। इसमें मारीच कश्यप का विशेषण है। इसी प्रकार चरक के एक पाठ में 'काश्यपो भृंगु:' यह पाठ आया है (चरक, सू.अ. 1। 8)। इसमें काश्ययप गोत्रोत्पन्न भृगु का उल्लेख है। इस प्रकार काश्यप शब्द जहाँ गोत्रवाची है, वहाँ व्यक्तिवाची भी मिलता है।
 
== उपलब्ध कश्यपसंहिता ==
वृद्धजीवकीय तंत्र में 'इति ह स्माह कश्यप:' या 'इत्याह कश्यप:', 'इति कश्यप:', 'कश्यपोऽब्रवीत्‌' आदि वचन मिलते हैं, इससे इनका आचार्य होना स्पष्ट हैं। कहीं पर कश्यप के लिए मारीच शब्द भी आया है। (भोजन कल्पाध्याय-3; पृष्ठ 168; षडकल्पाध्याय-3; पूष्ठ 148)। इससे स्पष्ट होता है कि मारीच कश्यप शब्द के लिए ही आया है। अनुमान होता है, मारीच का पुत्र कश्यप था, जिससे आगे कश्यप गोत्र चला।
 
[[गालव ऋषि]] गुरुदक्षिणा में घोड़ों को देने के लिए काशीपति दिवादास के पास गए थे; मार्क में उनको हिमालय की तराई में मारीच कश्यप का आश्रम मिला था (महा. उद्योग. 107. 3-15)। कश्यप संहिता में भी कश्यप का स्थान गंगाद्वार में बताया गया है। (''हुताग्नि होत्रमासीनं गंगाद्वारे प्रजापतिम्‌'' - लशुनकल्पाध्याय-3; पृष्ठ 137)।
 
कश्यप ने आयुर्वेद का अध्ययन आयुर्वेद परंपरा में [[इंद्र]] से किया था। कश्यप संहिता में वृद्ध कश्यप के मत का भी उल्लेख मिलता है (वमन विरेचनीयाध्याय; पृष्ठ 116)। इसके आगे ही अपना मत दिखाने के लिए 'कश्यपोऽब्रवीत्‌' पाठ है। इससे प्रतीत होता है कि वृद्ध कश्यप और संहिताकार कश्यप भिन्न व्यक्ति हैं। ऋक्‌ सर्वानुक्रम में कश्यप और काश्यप के नाम से बहुत से सूक्त आए हैं। इनमें कश्यप को मरीचिपुत्र कहा है (वेदार्थदीपिका, पृ. 91)।
 
इस प्रकार से कश्यप का संबंध मारीच से है। संभवत: इसी मारीच कश्यप ने कश्यपसंहिता की रचना की है।
 
[[महाभारत]] में [[तक्षक]]-दंश-उपाख्यान में भी कश्यप का उल्लेख आता है। इन्होंने तक्षक से काटे अश्वत्थ को पुनर्जीवित करके अपनी विद्या का परिचय दिया था (आदि पर्व. 50.34)। [[डल्हण]] ने काश्यप मुनि के नाम से उनका एक वचन उद्धृत किया है, जिसके अनुसार शिरा आदि में अग्निकर्म निषिद्ध है। [[माधवनिदान]] की मधुकोष टीका में भी वृद्ध काश्यप के नाम से एक वचन विष प्रकरण में दिया है। ये दोनों कश्यप पूर्व कश्यप से भिन्न हैं। संभवत: इनको गोत्र के कारण कश्यप कहा गया है। [[अष्टांगहृदय]] में भी कश्यप और कश्यप नाम से दो योग दिए गए हैं। ये दोनों योग उपलब्ध कश्यपसंहिता से मिलते हैं (कश्यप संहिता-उपोद्घात, पृष्ठ 37-38)।
 
== इन्हें भी देखें ==
* [[चरक संहिता]]
* [[सुश्रुत संहिता]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.ayurvedpg.com/kashyapa%20samhita/ काश्यपसंहिता (८ खण्डों में)]
* [http://rkk100.jagranjunction.com/?p=110 सृष्टि सृजक महर्षि कश्यप]
* [http://is1.mum.edu/vedicreserve/kashyap_samhita.htm A study of Kashyap Samhita]
* [http://www.vedicbooks.net/kashyap-samhita-english-p-4028.html?cPath=21 Kashyap Samhita at Vedic Books]
* [http://www.ayurvedpg.com/kashyapa%20samhita/kashyapa01sutra.pdf काश्यपसंहिता]
 
==सन्दर्भ==
{{टिप्पणीसूची}}
 
[[श्रेणी:संस्कृत ग्रंथ|संहिता, कश्यप]]
[[श्रेणी:आयुर्वेद|संहिता, कश्यप]]