"प्रकाश का वेग": अवतरणों में अंतर

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आज के लगभग 300 वर्ष पहले यह गलत धारणा थी कि प्रकाश का वेग अनंत होता है, अर्थात् उसे एक स्थान से दूसरे स्थान पहुँचने में कुछ भी समय नहीं लगता। सर्वप्रथम सितंबर, सन् 1676 में रोमर ने इस गलत धारणा को दूर कर यह बताया कि प्रकाश का वेग बहुत अधिक होने के बावजूद 'परिमित' होता है। [[बृहस्पति]] के उपग्रहों के ग्रहणों के अंतर काल में पृथ्वी से संबंधित दूरी के बदलने से होनेवाले परिवर्तन का अध्ययन कर, रोमर ने प्रकाश को पृथ्वी की कक्षा के व्यास को पार करने में लगनेवाले काल को निकाला। पृथ्वी की कक्षा के व्यास को मालूम कर, उसने प्रकाशवेग का मान मालूम किया, जो 2,14,300 किलोमीटर प्रति सेकंड के बराबर ज्ञात हुआ। उन दिनों की विज्ञान की प्रगति को देखते हुए यह अत्यंत प्रशंसापूर्ण कार्य था।
 
== ऋग्वेद में प्रकाश का वेेेगगवेेेग ==
जाता है की आधुनिक काल में प्रकाश की गति की गणना Scotland के एक भोतिक विज्ञानी '''James Clerk Maxwell'''(13 June 1831 – 5 November 1879) ने की थी ।