"श्राद्ध पक्ष": अवतरणों में अंतर

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श्राद्ध का अनुष्ठान करते समय दिवंगत प्राणी का नाम और उसके गोत्र का उच्चारण किया जाता है। हाथों में कुश की पैंती (उंगली में पहनने के लिए कुश का अंगूठी जैसा आकार बनाना) डालकर काले तिल से मिले हुए जल से पितरों को तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि एक तिल का दान बत्तीस सेर स्वर्ण तिलों के बराबर है। परिवार का उत्तराधिकारी या ज्येष्ठ पुत्र ही श्राद्ध करता है। जिसके घर में कोई पुरुष न हो, वहां स्त्रियां ही इस रिवाज को निभाती हैं। परिवार का अंतिम पुरुष सदस्य अपना श्राद्ध जीते जी करने के लिए स्वतंत्र माना गया है। संन्यासी वर्ग अपना श्राद्ध अपने जीवन में कर ही लेते हैं।
 
श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। श्राद्ध का समय दोपहर साढे़ बारह बजे से एक बजे के बीच उपयुक्त माना गया है। इसे [http://puranastudy.freeoda.com/pur_index6/kutupa.htm कुतप] काल कहते हैं। यात्रा में जा रहे व्यक्ति, रोगी या निर्धन व्यक्ति को कच्चे अन्न से श्राद्ध करने की छूट दी गई है। कुछ लोग कौओं, कुत्तों और गायों के लिए भी अंश निकालते हैं। कहते हैं कि ये सभी जीव यम के काफी नजदीकी हैं और गाय वैतरणी पार कराने में सहायक है।
 
== [http://%5Bhttp://vipin110012.tripod.com/pur_index28/shraadh1.htm गया श्राद्ध] ==
 
श्राद्ध हेतु गया में श्राद्ध का विशेष महत्त्व है। आश्विन् कृष्ण पक्ष की 15 तिथियों में से प्रत्येक तिथि में स्थान विशेष पर विशिष्ट प्रकार से श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध का उद्देश्य यह होता है कि मृत व्यक्ति का मृत्यु से पूर्व जो व्यक्तित्व था, उसको छाया रूप में ही सही, पुनरुज्जीवित कर लिया जाए। इतना ही नहीं, मृत व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में अपनी जीवनी शक्ति का जो क्षय किया था, उसका भी पूरण श्राद्ध करने वाला अथवा कराने वाला व्यक्ति अपनी श्रद्धा से करे।
 
== बाह्य सूत्र ==
 
*[http://puranastudy.freeoda.com/pur_index6/kutupa.htm कुतप काल]
*[http://vipin110012.tripod.com/pur_index28/shraadh1.htm गया श्राद्ध का विवरण व संभावित विवेचन]
 
[[श्रेणी:हिन्दू धर्म]]