"बौद्ध दर्शन": अवतरणों में अंतर

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'''बौद्ध दर्श्नदर्शन''' से अभिप्राय उस [[दर्शन]] से है जो [[भगवान बुद्ध]] के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों द्वारा विकसित किया गया और बाद में पूरे एशिया में उसका प्रसार हुआ। 'दुःख से मुक्ति' बौद्ध धर्म का सदा से मुख्य ध्येय रहा है। कर्म, ध्यान एवं प्रज्ञा इसके साधन रहे हैं।
 
बुद्ध के उपदेश तीन पिटकों में संकलित हैं। ये [[सुत्त पिटक]], [[विनय पिटक]] और [[अभिधम्म पिटक]] कहलाते हैं। ये पिटक बौद्ध धर्म के आगम हैं। क्रियाशील सत्य की धारणा बौद्ध मत की मौलिक विशेषता है। [[उपनिषद|उपनिषदों]] का [[ब्रह्म]] अचल और अपरिवर्तनशील है। बुद्ध के अनुसार परिवर्तन ही सत्य है। [[पाश्चात्य दर्शन|पश्चिमी दर्शन]] में हैराक्लाइटस और बर्गसाँ ने भी परिवर्तन को सत्य माना। इस परिवर्तन का कोई अपरिवर्तनीय आधार भी नहीं है। बाह्य और आंतरिक जगत् में कोई ध्रुव सत्य नहीं है। बाह्य पदार्थ "स्वलक्षणों" के संघात हैं। [[आत्मा]] भी मनोभावों और विज्ञानों की धारा है। इस प्रकार बौद्धमत में उपनिषदों के आत्मवाद का खंडन करके "अनात्मवाद" की स्थापना की गई है। फिर भी बौद्धमत में [[कर्म]] और [[पुनर्जन्म]] मान्य हैं। आत्मा का न मानने पर भी बौद्धधर्म करुणा से ओतप्रोत हैं। दु:ख से द्रवित होकर ही बुद्ध ने [[सन्यास]] लिया और दु:ख के निरोध का उपाय खोजा। अविद्या, तृष्णा आदि में दु:ख का कारण खोजकर उन्होंने इनके उच्छेद को निर्वाण का मार्ग बताया।