"ब्रज संस्कृति": अवतरणों में अंतर

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''' ब्रज संस्कृति ''' का ज़िक्र आते ही जो सबसे पहली आवाज़ हमारी स्मृति में आती है, वह है घाटों से टकराती हुई यमुना की लहरों की आवाज़… [[श्री कृष्ण]] के साथ-साथ खेलकर यमुना ने [[महात्मा बुद्ध]] और [[महावीर स्वामी]] के प्रवचनों को साक्षात उन्हीं के मुख से अपनी लहरों को थाम कर सुना… फ़ाह्यान की चीनी भाषा में कहे गये मो-तो-लो (मोरों का नृत्य स्थल ‘मथुरा’) को भी समझ लिया और प्लिनी के ‘जोमनेस’ उच्चारण को भी… यमुना की ये लहरें रसख़ान[[रसखान]] और [[रहीम]] के दोहों पर झूमी हैं… सूर[[सूरदास]] और [[मीरा]] के पदों पर नाची हैं… लेकिन महमूद ग़ज़नवी के नरसंहार से रक्ताभ हुई ये यमुना की सहमी हुई लहरों को मियां तानसेन की तोड़ी से कितनी राहत मिली थी यह तो यमुना ही जाने… बादशाह अकबर के बनवाये हुए घाटों को अभी अच्छी तरह पखार भी न पायी थी यमुना… कि अहमद शाह अब्दाली ने इन लहरों को ब्रजवासियों के रक्त से सने उसके सिपाहियों के हाथों को धोने पर मजबूर किया… यह सब तो चलता ही रहा साथ ही साथ हैं।[[यमुना]] ने ही जन्म दिया ब्रज-संस्कृति को…
[[ब्रज]] की संस्कृति के साथ ही 'ब्रज' शब्द का चलन भक्ति आन्दोलन के दौरान पूरे चरम पर पहुँच गया। चौदहवीं-पन्द्रहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्ति की व्यापक लहर ने ब्रज शब्द की पवित्रता को जन-जन में पूर्ण रूप से प्रचारित कर दिया। सूर, मीरां (मीरा) और रसख़ान के भजन तो जैसे आज भी ब्रज के वातावरण में गूंजते रहते हैं। कृष्ण भक्ति में ऐसा क्या है जिसने मीरांमीरा से राजसी रहन-सहन छुड़वा दिया और सूरसूरदास की रचनाओं की गहराई को जानकर [[विश्व]] भर में इस विषय पर ही शोध होता रहा कि सूरसूरदास वास्तव में दृष्टिहीन थे भी या नहीं। संगीत विशेषज्ञों की एक धारणा यह भी है कि ब्रज में सोलह हज़ार राग रागनियों का निर्माण हुआ था। जिन्हें कृष्ण की रानियाँ भी कहा जाता है।
कहते हैं कि आस्था के प्रश्नों के उत्तर इतिहास में नहीं खोजे जाते लेकिन आस्था जन्म देती है संस्कृति को और गंगा और यमुना ने भी हमें सभ्यता और संस्कृति दी हैं। मागध[[मगध]] सभ्यता में जन्मे सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और देवानाम्प्रियं अशोक (असोक) गंगा से उपजी सभ्यता की देन हैं। यमुना की देन है महाभारत कालीन सभ्यता और ब्रज का ‘प्राचीनतम प्रजातंत्र’ जिसके लिए बुद्ध ने मथुरा प्रवास के समय अपने प्रिय शिष्य (उनके भाई और वैद्य भी) ‘आनन्द’ से कहा था कि 'यह (मथुरा) आदि राज्य है, जिसने अपने लिये महासम्मत (राजा) चुना था।' यदि इतिहासथा।यमुना की बातदेन करेंयह तोसंस्कृति अशोकअब महान् के ही समतुल्य राजा कनिष्क ने पुरुषपुर (पेशावर) और मथुरा में अपनी राजधानी बनाई। कुषाण वंशीय कनिष्क ने कला, साहित्य, दर्शन आदि को पर्याप्त संरक्षण दिया। यही संरक्षण एक सामान्य शासक को ‘महान शासक’ के रूप में‘ब्रज पहचानसंस्कृति’ दिलाताकहलाती है।
कहते हैं कि आस्था के प्रश्नों के उत्तर इतिहास में नहीं खोजे जाते लेकिन आस्था जन्म देती है संस्कृति को और संस्कृति के स्थायित्व से ही जन्म लेती है कोई महान् सभ्यता। दुनिया भर में नदियों ने हमें अनेक महान् सभ्यताएँ दी हैं। सिन्धु नदी ने दी ‘सिन्धु-घाटी सभ्यता’ (हड़प्पा और मुअन-जो-दाड़ो)। सिन्धु सभ्यता की प्राचीन लिपि पढ़ी तो नहीं जा सकी लेकिन उस लिपि के अपने आप में पूर्ण और उन्नत होने पर सभी विद्वान् सहमत हैं। मैसोपोटामियां और हड़प्पा में व्यापारिक संबंध कितने व्यवस्थित थे इसकी कहानी अनेक मुहरबंद पार्सलों पर लगी मुहरें कहती हैं। नील नदी (मिस्री भाषा में ‘इतेरू’) ने दी ‘मिस्र की सभ्यता’ जहाँ फ़राऊनों के बनवाये अद्‌भुत पिरॅमिडों को देखकर जो सवाल मस्तिष्क में आते हैं उनका उत्तर इतिहासकारों और वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है।
गंगा और यमुना ने भी हमें सभ्यता और संस्कृति दी हैं। मागध सभ्यता में जन्मे सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और देवानाम्प्रियं अशोक (असोक) गंगा से उपजी सभ्यता की देन हैं। यमुना की देन है महाभारत कालीन सभ्यता और ब्रज का ‘प्राचीनतम प्रजातंत्र’ जिसके लिए बुद्ध ने मथुरा प्रवास के समय अपने प्रिय शिष्य (उनके भाई और वैद्य भी) ‘आनन्द’ से कहा था कि 'यह (मथुरा) आदि राज्य है, जिसने अपने लिये महासम्मत (राजा) चुना था।' यदि इतिहास की बात करें तो अशोक महान् के ही समतुल्य राजा कनिष्क ने पुरुषपुर (पेशावर) और मथुरा में अपनी राजधानी बनाई। कुषाण वंशीय कनिष्क ने कला, साहित्य, दर्शन आदि को पर्याप्त संरक्षण दिया। यही संरक्षण एक सामान्य शासक को ‘महान शासक’ के रूप में पहचान दिलाता है।
यमुना की देन यह संस्कृति अब ‘ब्रज संस्कृति’ कहलाती है।
 
== संदर्भ ==