"अश्विनीकुमार (वैदिक देवता)": अवतरणों में अंतर

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==पौराणिक विवरण==
 
एक बार सूर्य तेज को सहन करने में असमर्थ होकर प्रभासंज्ञा अपनी दो संतति यम और यमुना तथा अपनी छाया छोड़कर चुपके से भाग गई और घोड़ी बनकर तप करने लगी। इस छाया से भी सूर्य को दो संतति हुई। शनि और ताप्ती। जब छाया ने प्रभासंज्ञा की संतति का अनादर आरंभ किया, तब यह बात खुल गई कि प्रभासंज्ञा तो भाग गई है। इसके उपरातं सूर्य घोड़ा बनकर प्रभासंज्ञा के पास, जो अश्विनी के रूप में थी, गए। इस संयोग से दोनों अश्विनीकुमारों की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं।
 
'''(२)''' दो कल्पित देवता जो प्रभात के समय घोड़ों या पक्षियों से जुते हुए सोने के रथ पर चढ़कर आकाश में निकलते हैं। विशेष—कहते है कि यह लोगों के सुख सौभाग्य प्रदान करते हैं और उनके दुख तथा दरिद्रता आदि हरते हैं। कहीं कहीं यही अश्विनीकुमार भी माने गए हैं। कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने के लिये इन्होंने उनका सिर काटकर अलग रख दिया था और उनके धड़पर घोड़े का सिर रख दिया था; और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी।