"संगठन": अवतरणों में अंतर

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'''संगठन''' (organisation) वह सामाजिक व्यवस्था या युक्ति है जिसका लक्ष्य एक होता है, जो अपने कार्यों की समीक्षा करते हुए स्वयं का नियन्त्रण करती है, तथा अपने पर्यावरण से जिसकी अलग सीमा होती है। संगठन तरह-तरह के हो सकते हैं - सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सैनिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक आदि।
 
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मिलती है जिससे कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है।
 
(7) '''[[विशिष्टीकरण]] को बढ़ावा''' - संगठन संरचना का निर्माण [[श्रम विभाजन]] के आधार पर किया जाता है।
संगठन संरचना का मुख्य आधार श्रम विभाजन होता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष कार्य ही करता
है। विशिष्टीकरण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ती है तथा अधिक उत्पादन का मार्ग प्रशस्त होता है।
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है, जिन्हें संगठन के उद्देश्य कहा जाता है।
 
(1) '''[[श्रम विभाजन]]''' - व्यक्तियों एवं विभागों के द्वारा सम्पन्न की जाने वाली क्रियाओं का उचित निर्धारण,
स्पष्टीकरण एवं पृथक्करण किया जाना चाहिए। तत्पश्चात् कार्यों का वितरण व्यक्ति की रूचि एवं योग्यता
के आधारपर किया जाना चाहिए। इससे कार्य निष्पादन में दोहराव समाप्त होता है तथा प्रयास प्रभावपूर्ण
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कर्मचारियों में बाँटा जा सके और उनका दायित्व निर्धारित किया जा सके।
 
(3) '''कर्मचारियों के मध्य [[कार्य का विभाजन]]''' - क्रियाओं को श्रेणीबद्ध करने के उपरान्त अगला कदम है,
कार्यों का कर्मचारियों के मध्य विभाजन करना। कार्य विभाजन में कर्मचारियों की रूचि, शारीरिक क्षमता,
शैक्षणिक योग्यता, कार्य अनुभव आदि को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
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नहीं किया जा सकता है।
 
(2) '''[[समन्वय]] का सिद्धान्त''' - समन्वय संगठन के समस्त सिद्धान्तों को अभिव्यक्त करता है। संगठन का
उद्देश्य ही उपक्रम के विभिन्न विभागों पर किये जाने वाले कार्य में समन्वय स्थापित करता है।
 
(3) '''[[विशिष्टीकरण]] का सिद्धान्त''' - व्यक्ति की इच्छा एवं कार्य क्षमता के अनुसार ही कार्य सौंपा जाना
चाहिए जिसको करने में वह सक्षम है। तो वह उस कार्य में दक्षता प्राप्त करता है। इस सिद्धान्त के पालन
से विभागों एवं कर्मचारियों की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है।
 
(4) '''[[अधिकार]] का सिद्धान्त''' - सर्वोच्च सत्ता से अधिकारों के हस्तान्तरण के लिए पद श्रेणी क्रम का निश्चित
निर्धारण होना चाहिए। प्रत्येक कार्य के संबंध में अधिकारों का उचित निर्धारण किया जाना चाहिए।
 
(5) '''[[उत्तरदायित्व]] का सिद्धान्त''' - अधिकार एवं दायित्व साथ-साथ होने चाहिए। अधीनस्थ कर्मचारियों के
द्वारा किये गये कार्यों के लिए उच्च अधिकारियों का पूर्ण दायित्व होता है।
 
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चाहिए। प्रत्येक कर्मचारी के कर्तव्य, दायित्व, अधिकार व संबंधों की स्पष्ट व्याख्या की जानी चाहिए।
 
(7) '''[[आदेश की एकता]] का सिद्धान्त''' - संगठन में कार्यरत व्यक्ति एक समय में एक ही अधिकारी की सेवा
कर सकता है अतः एक समय में एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त कर सकता है। एक से अधिक
अधिकारियों से आदेश प्राप्त होने पर उसकी कार्य रूचि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
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संगठन अप्रभावशील हो जायेगा।
 
(15) '''न्यूनतम सत्ता -स्तरों का सिद्धान्त''' - ठोस एवं शीघ्र निर्णयन के लिए संगठन संरचना में सत्ता स्तरों
को न्यूनतम किया जाना चाहिए। सत्ता स्तरों की निर्देश श्रृंखला लम्बी हो जाती है तो निम्न स्तर पर
कार्यरत व्यक्ति की निर्देश प्राप्त होने में विलम्ब होने के साथ-साथ संदेशों की शुद्धता पर भी विपरीत
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(9) '''कार्यान्वयन में सुविधा''' - एक अच्छा संगठन कार्य निष्पादन में सहायक होता है। सर्वोत्तम संगठन वह
है जो सामान्य व्यक्तियों को असामान्य कार्य करने में सहायता करता है।
 
==इन्हें भी देखें==
*[[कार्य विभाजन]]
*[[श्रम विभाजन]]
*[[संगठन सिद्धान्त]]
*[[व्यवसाय संगठन]] (Busiess organization)
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/संगठन" से प्राप्त