"महावाक्य": अवतरणों में अंतर

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[[वेद]] में कई '''महावाक्य''' हैं। जैसेः
 
* '''[[नेति नेति]]''' (यह भी नही, यह भी नहीं)
 
* '''[[अहं ब्रह्मास्मि]]''' (मैं ब्रह्म हूँ)
 
* '''[[अयम् आत्मा ब्रह्म]]''' (यह आत्मा ब्रह्म है)
 
* '''[[यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे]]''' (जो पिण्ड में है वही ब्रह्माण्ड में है)
 
वेद की व्याख्या इन महावाक्यों से होती है।
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इस परम भावबोध का उद्घोष करने के लिए उपनिषद के चार महामंत्र हैं।
 
:''तत्वमसि'' (तुम वही हो),
 
:''अहं ब्रह्मास्मि'' (मैं ब्रह्माब्रह्म हूं),
 
:''प्रज्ञानं ब्रह्माब्रह्म (आत्मा ही ब्रह्माब्रह्म है),
 
:सर्वम खिलविद्मखल्विदं ब्रह्माब्रह्म (सर्वत्र ब्रह्माब्रह्म ही है)।
 
उपनिषद के ये चार महावाक्य मानव जाति के लिए महाप्राण, महोषधि एवं संजीवनी बूटी के समान हैं, जिन्हें हृदयंगम कर मनुष्य आत्मस्थ हो सकता है।