"बौधायन": अवतरणों में अंतर

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[[ज्यामिति]] के विषय में प्रमाणिक मानते हुए सारे विश्व में [[यूक्लिड]] की ही ज्यामिति पढ़ाई जाती है। मगर यह स्मरण रखना चाहिए कि महान [[यूनानी]] ज्यामितिशास्त्री [[यूक्लिड]] से पूर्व ही [[भारत]] में कई रेखागणितज्ञ ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज कर चुके थे, उन रेखागणितज्ञों में बौधायन का नाम सर्वोपरि है। उस समय भारत में रेखागणित या ज्यामिति को '''शुल्व शास्त्र''' कहा जाता था।
 
==बौधायन के सूत्र ग्रन्थ==
बौधायन के [[सूत्र]] वैदिक संस्कृत में हैं तथा [[धर्म]], दैनिक कर्मकाण्ड, [[गणित]] आदि से सम्बन्धित हैं। वे [[कृष्ण यजुर्वेद]] के तैत्तिरीय शाखा से सम्बन्धित हैं। सूत्र ग्रन्थों में सम्भवतः ये प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। इनकी रचना सम्भवतः ८वीं-७वीं शताब्दी ईसापूर्व हुई थी।
 
बौधायन सूत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित ६ ग्रन्थ आते हैं-
*1 [[बौधायन श्रौतसूत्र]] - यह सम्भवतः १९ प्रश्नों के रूप में है।
*2.[[बौधायन कर्मान्तसूत्र]] - २१ अध्यायों में
*3.[[बौधायन द्वैधसूत्र]] - ४ प्रश्न
*4.[[बौधायन गृह्यसूत्र]] - ४ प्रश्न
*5.[[बौधायन धर्मसूत्र]] - ४ प्रश्नों में
*6.[[बौधायन शुल्बसूत्र]] - ३ अध्यायों में
 
सबसे बड़ी बात यह है कि बौधायन के शुल्बसूत्रों में आरम्भिक गणित और ज्यामिति के बहुत से परिणाम और प्रमेय हैं, जिनमें [[२ का वर्गमूल]] का सन्निकट मान, तथा पाइथागोरस प्रमेय का एक कथन शामिल है।
 
==[[बौधायन प्रमेय]] या [[पाइथागोरस प्रमेय]]==