"आर्य प्रवास सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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'''आर्यन प्रवास सिद्धांत''' (English - Indo-Aryan Migration Theory) मुख्यतः ब्रिटिश शासन काल की देन है। जिसके अंतर्गत अंग्रेजी इतिहासकारों का कहना था कि भारतीय आर्य संबोधन का युरोपीय आर्यन जाति से सम्बन्ध है। भारत में आर्यों का युरोपीय देशों से आगमन हुआ। परंतु अधिकतर अंग्रेजी और भारतीय इतिहासकार इस सिद्धांत का विरोध करते दिखे इसके बाद भी निम्न वर्ग के लोगों तथा वामपंथी विचारधारा के जनों ने इसका बढ़चढ़कर समर्थन किया। विशेष यह है कि सिद्धांत पूर्णरूप से अंग्रेजी व भारतीय इतिहासकारों के द्वारा प्रतिपादित किया गया<ref>[https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Aryan_Migration_Theory Indo-Aryan Migration] उपयुक्त अंग्रेजी विकीपीडिया के लेख से सिद्ध है कि यह सिद्धांत पश्चिम में बहुंत प्रसिद्ध है।</ref> जिनका कहना था कि वह भारतीय तथा युरोपीय अध्ययन के माध्यम से ही इस बात पर जोर दे रहे हैं।<ref>[https://hindi.rbth.com/arts/history/2017/03/30/kyaa-pshcim-ruusii-aur-bhaartiiy-sbhytaaon-kaa-muul-sthaan-hai_730641 क्या आर्य युरोप से भारत आए?] Rbth.com</ref>
उनका कहना था कि भारतीय मूल के कहलाने वाले [[आर्य]] यूरोप से भारत आए और भारत में भी अपनी सभ्यता स्थापित की। यह उनके द्वारा किये गए शोध से यह ज्ञात हुआ। उ
 
 
उपयुक्त सिद्धांत का प्रतिपादन १८वी शताब्दी के अंत में तब किया गया जब यूरोपीय भाषा परिवार की खोज हुई। जिसके अंतर्गत भारतीय भाषाओं में युरोपीय भाषाओं से कई समानताएं दिखीं। जैसे घोड़े को ग्रीक में इक्वस, फ़ारसी में इश्प और संस्कृत में अश्व कहते हैं, भाई को लैटिन-ग्रीक में फ्रेटर (अंग्रेज़ी में फ्रेटर्निटी, Fraternity), फ़ारसी में बिरादर और संस्कृत में भ्रातर कहते हैं । ऐसे शब्द तो समान दिखते हैं, लेकिन हज़ारों की संख्या में ऐसे शब्द हैं जिनका कोई सबंध नहीं है (जैसे ख़ून को लहू, Blood और Haemo, आदि हज़ारों हैं) ।
 
== मुख्य सिद्धांत ==