"आर्य प्रवास सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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===विरोधी तर्क ===
भारत की आज़ादी के बाद कई पुरातात्विक खो़ज हुए । इन खोज़ों और डीएनए के अध्ययन, भाषाओं की समरूपता आदि शोध इस सिद्धांत से मेल नहीं खाते । कुछ तर्क यहाँ दिए गए हैं -
* सबसे पुराने ऋगवेद में आर्य नाम की किसी जाति के आक्रमण का कोई उल्लेख नहीं है
* किसी प्रयाण या आक्रमण का उल्लेख या यहाँ तक कि गाथा, संस्मरण आदि ना तो वेदों में और ना ही उपनिषद, आरण्यक, दर्शन-ग्रंथों या पुराणों में मिलता है । इसके उलट, रोमन गाथाओं में पूर्व की दिशा से हुए प्रयाण की याद और बाइबल में जोशुआ के पुस्तक में ऐसे छूटे हुए मातृभूमि की झलक मिलती है । यहूदी तालमुद में भी इसरायली लोगों को अपनी ज़मीन से असीरियाई शासको द्वारा बेदखल करने का उल्लेख है । अगर ऐसा कोई आक्रमण या यहाँ तक कि प्रयाण (प्रवास) भी होता तो वेदों-पुराणों-ब्राह्मण ग्रंथों-उपनिषदों-दर्शनों-बौद्ध ग्रंथों आदि में उसका उल्लेख मिलता, लेकिन वो नहीं है ।
* ऋगवेद में किसी राजा का या किसी शासक को किसी ख़ास दिशा या ज़मीन पर आक्रमण करने का कोई आदेश नहीं मिलता, ना ही अपने राज्य विस्तार का प्रोत्साहन भी ।
* भाषाई प्रमाण - भाषा की समरूपता के बारे में मिथक ये है कि संस्कृत और यूरोप (और ईरान) की भाषाओं में समानताएं हैं । हाँलांकि ये सच है कि कुछ शब्द एक जैसे हैं, लेकिन हज़ारों शब्दों में दूर-दूर तक कोई मेल नहीं । साथ ही व्याकरण में तो बहुत भिन्नता है, लेकिन भारत के अन्दर की भाषाओं में कई समानताए हैं । उदाहरण के लिए -