"कल्पवृक्ष": अवतरणों में अंतर
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'''कल्पवृक्ष''' देवलोक का एक वृक्ष। इसे कल्पद्रुप, कल्पतरु, सुरतरु देवतरु तथा कल्पलता इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में कल्पवृक्ष भी था। यह इंद्र को दे दिया गया था और इंद्र ने इसकी स्थापना सुरकानन में कर दी थी। हिंदुओं का विश्वास है कि कल्पवृक्ष से जिस वस्तु की भी याचना की जाए, वही यह दे देता है। इसका नाश कल्पांत तक नहीं होता। 'तूबा' नाम से ऐसे ही एक पेड़ का वर्णन इस्लामी धार्मिक साहित्य में भी मिलता है जो सदा अदन (मुसलमानों के स्वर्ग का उपवन) में फूलता फलता रहता है।
सिद्ध, नाथ और संत कल्पलता या कल्पवल्लरी संज्ञा 'उन्मनी' को देते हैं क्योंकि उनके मतानुसार सहजावस्था या कैवल्य की प्राप्ति के लिए उन्मनी ही एकमात्र साधन है जो न केवल सभी कामनाओं को पूरी करनेवाली है अपितु स्वयं अविनश्वर भी है और जिसे मिल जाती हैं, उसे भी अविनश्वर बना देती है।
ऋषिकेश, अयोध्या, नैमिषारण्य, वृन्दावन, गोवर्धन, जोशीमठ, गाजियाबाद, नोएडा मेरठ,
दिल्ली आदि स्थलों सहित वैदिक रीति से इस धरती लोक पर रोपण किया है। मान्यता है कि कल्पवृक्ष के दर्शन करने मात्र से मनोकामना पूरी होती है इसीलिये इसे दिव्यतरु के रूप में देवलोक का पेड़ माना जाता है। <ref>{{cite web|url= http://navbharattimes.indiatimes.com/-/holy-discourse/religious-discourse/--/articleshow/3126692.cms|title= मन ही है इच्छा पूरी करने वाला कल्पवृक्ष|publisher = [[नवभारत टाइम्स]]|language= हिन्दी |date = १३ जून २००८}}</ref>दिनांक 21सितंबर 2017
राजस्थान के जालोर के सांचोर में दाता गांव में स्वामी हरीश आश्रम के परिसर में करीबन 100 से अधिक प्रजातियों के पेड़ पौधे है।उनमें दो पेड़ कल्पवृक्ष के भी है।जिनमे एक नर एवं एक मादा।
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