"वासवदत्ता": अवतरणों में अंतर

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== काव्यगत विशेषताएँ==
वासवदत्ता संस्कृत काव्यशास्त्रियों से अभिहित '''गौड़ी शैली''' में लिखी गई है। गौड़ी का लक्षण [[विश्वनाथ]] ने [[साहित्यदर्पण]] में ‘‘श्लिप्ट शब्दयोजना, कठोरध्वनि वाले शब्दों का प्रयोग एवं समास बहुलता’’ दिया है। [[सुबन्धु]] ने अपनी रचना को कई साहित्यक अलंकाराअलंकारों से विभूषित किया है जिनमें से [[श्लेष]] प्रधान हैं। सुबन्धु का स्वयं कहना है कि उसका काव्य :
 
:'''प्रत्यक्षरश्लेषमयप्रबन्धविन्यासवैदग्ध्यनिधिः।'''
(''प्रत्येक अक्षर में श्लेष होने के कारण वैदग्ध्य प्रतिभा की निधि है।'')
 
(''प्रत्येक अक्षर में श्लेष होने के कारण वैदग्ध्य प्रतिभा की निधि है।'')
 
वस्तुतः श्लेष को प्रस्तुत करने का उद्देश्य [[वक्रोक्ति]] की शोभा बढ़ाना है। उदाहरणतः एक युवती के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए सुबन्धु कहते हैं :
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अर्थात् वानरों की सेना के समान [[सुग्रीव]] (युवतीपक्ष में सुन्दरग्रीव) और [[अंगद]] (युवतीपक्ष में अंगद नामक आभूषण विशेष) से सुशोभित थी।
 
श्लेष के पश्चात् [[विरोधाभाषविरोधाभास]] (विरोध के समान प्रतीति) अलंकार का प्रयोग आधिक्य से पाया जाता है। विरोधाभास में श्लेष की सहायता से वास्तविक अर्थ की प्रतीति होती है। उदाहरतः
:‘अग्रहेणापि काव्यजीवज्ञेन’।
अर्थात् यद्यपि वह ‘ग्रह’ नहीं था तो भी काव्य शुक्र (जीव) बुध का ज्ञाता था। इस विरोधाभास का परिहार इस अर्थ से होता है : यद्यपि वह चोरी इत्यादि से मुक्त था तो भी काव्य के सार को जानने में निष्णात था। परिसंख्या, मालादीपक, उत्प्रेक्षा, प्रौढ़ोक्ति, अतिशयोक्ति तथा काव्य-लिंग आदि दूसरे अलंकारों का भी सुबन्धु ने प्रयोग किया है। शब्दालंकारों में से अनुप्रास एवं यमक का प्रयोग किया गया है। अनुप्रास का उदाहरण दृष्टव्य है :
से होता है : यद्यपि वह चोरी इत्यादि से मुक्त था तो भी काव्य के सार को जानने में निष्णात था। परिसंख्या, मालादीपक, उत्प्रेक्षा, प्रौढ़ोक्ति, अतिशयोक्ति तथा काव्य-लिंग आदि दूसरे अलंकारों का भी सुबन्धु ने प्रयोग किया है। शब्दालंकारों में से अनुप्रास एवं यमक का प्रयोग किया गया है। अनुप्रास का उदाहरण दृष्टव्य है :
:‘मदकलकलहंससरसरसितोदभ्रान्तम्’’
अथवा
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पाश्चात्य आलोचक [[डाक्टर ग्रे]] ने वासवदत्ता के बारे में कहा है :
:''विलोल-दीर्घ समासों में वस्तुतः रमणीयता है एवं अनुप्रासों में अपना स्वतः का ललित संगीत। श्लेषों में सुश्लिष्ट संक्षिप्तता है। यद्यपि श्लेषों के द्वारा दो या दो से अधिक दुरूह अर्थों को प्रदर्शित करने का प्रयत्न किया गया है तथापि वे दोनों पक्षों में घटने वाले वास्तविक रत्न हैं। सुबन्धु द्वारा किये गये वर्णन अधिक प्रशंसनीय है परन्तु उनके आधिक्य से प्रयुक्त होने के कारण कभी-कभी उद्वेजक से प्रतीत होते हैं। सम्पूर्ण आख्यान का अधिकतम भाग ये वर्णन ही हैं और कथानक इनके नीचे लुप्त प्रायःलुप्तप्राय हो जाते हैं। पर्वत, वन, नदियों अथवा नायिका आदि का भी वर्णन क्यों न हो उनके सर्वतोमुखी बाहुल्य के होने पर भी, सौन्दर्य एवं संगति का नितान्त अभाव है।''
 
==शून्यबिन्दु==