"वासवदत्ता": अवतरणों में अंतर

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ने उसे शाप दिया और वह पत्थर में परिवर्तित हो गई। निराश हुए कंदर्पकेतु ने आत्महत्या करनी चाही परन्तु एक आकाश-ध्वनि ने इसका निवर्तन किया। अन्त में वह आश्रम में पहुँचा और उसके स्पर्श से राजकुमारी पुनः जीवित हो उठे।
 
यद्यपि कथानक बहुत ही छोटा है तथापि लेखक की यह स्वकल्पित कृति है। इसका साम्य नहीं है। वार्तालाप करते हुए पक्षी, जादू के घोड़े, संन्यासियों का [[शाप]] एवं आकाशध्वनियां इत्यादि कई विषयों को लेखक ने प्रस्तावित किया है जो साधारणतः भारतीय लोक साहित्य में पाया जाता है। लेखक का उद्देश्य अपनी [[अलंकार]]-प्रतिभा का प्रदर्शन करना था न कि उपन्यास लिखने की शक्ति का। जैसा कि डॉ॰ [[सुशील कुमार डेदे]] का कहना है : ''कथा की रोचकता घटनाओं में न होकर प्रेमियों के वैयक्तिक सौन्दर्य के चित्रण, उसकी उदारहृदयता, पारस्परिक निरतिशय अनुराग, इच्छापूर्ति का बाधक दुर्भाग्य, खण्डित-प्रेम की वेदना एवं सब परीक्षाओं और कठिनाइयों में भी मिलन तक प्रेम की सुरक्षा में ही होती है।''
 
== काव्यगत विशेषताएँ==