"दशनामी सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर
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'''दशनामी''' शब्द [[संन्यास|संन्यासियों]] के एक संगठनविशेष के लिए प्रयुक्त होता है और प्रसिद्ध है कि उसे सर्वप्रथम स्वामी [[आदि शंकराचार्य|शंकराचार्य]] ने चलाया था, किंतु इसका श्रेय कभी-कभी [[स्वामी सुरेश्वराचार्य]] को भी दिया जाता है, जो उनके
== परिचय ==
कहते हैं,
दशनामियों की 52 गढ़ियाँ भी प्रसिद्ध हैं जिनमें से 27 गिरियों की, 16 पुरियों की, 4 भारतीयों की, 4 वनों की तथा 1 लामा की कही जाती है और तीर्थों, आश्रमों, सरस्वतियों तथा भारतीयों में से आधे अर्थात् साढ़े तीन "दंडी" और शेष छह "गोसाई" कहे जाते हैं।
दशनामी साधुओं के प्रत्येक वर्ग में, उनकी आध्यात्मिक दशा के स्तरभेदानुसार चार कोटियाँ हुआ करती हैं जिन्हें क्रमश: कुटीचक्र, बहूदक, हंस एवं परमहंस कहा जाता है और इनमें से प्रथम दो को कभी-कभी "त्रिदंडी" की भी संज्ञा दी जाती है। दीक्षा के समय ब्रह्मचारियों की अवस्था प्राय: 17-18 से कम की नहीं रहा करती और वे ब्राह्मण, क्षत्रिय वा वैश्य वर्ण के ही हुआ करते हैं। उन्हें कतिपय विधियों के अनुसार अनुष्ठान करना पड़ता है और उन्हें बतला दिया जाता है कि तुम्हें गैरिक वस्त्र, विभूति एवं रुद्राक्ष को धारण करना पड़ेगा, शिखासूत्र का परित्याग करना होगा तथा दीक्षामंत्र के प्रति पूर्ण निष्ठा रखनी होगी। संन्यास ग्रहण कर लेने पर वे विरक्त होकर तीर्थभ्रमण करते हैं और कभी-कभी अपने सांप्रदायिक मठों में भी रहा करते हैं। इनके दैनिक आचार संबंधी नियमों में रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना, बस्ती से बाहर निवास करना, अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा ग्रहण करना, केवल पृथ्वी पर ही शयन करना, किसी को प्रणाम न करना और न किसी की निंदा करना तथा केवल संन्यासी का ही अभिनंदन करना आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जो दशनामी साधु किसी वैसे मठधारी का चेला बनकर उसका उत्तराधिकारी हो जाता है उसे प्रबंधादि भी करने पड़ते हैं।▼
▲दशनामी साधुओं के प्रत्येक वर्ग में, उनकी आध्यात्मिक दशा के स्तरभेदानुसार चार कोटियाँ हुआ करती हैं जिन्हें क्रमश: कुटीचक्र, बहूदक, हंस एवं परमहंस कहा जाता है और इनमें से प्रथम दो को कभी-कभी "त्रिदंडी" की भी संज्ञा दी जाती है। दीक्षा के समय ब्रह्मचारियों की अवस्था प्राय: 17-18 से कम की नहीं रहा करती और वे ब्राह्मण, क्षत्रिय वा वैश्य वर्ण के ही हुआ करते हैं। उन्हें कतिपय विधियों के अनुसार अनुष्ठान करना पड़ता है और उन्हें बतला दिया जाता है कि तुम्हें गैरिक वस्त्र, विभूति एवं रुद्राक्ष को धारण करना पड़ेगा, शिखासूत्र का परित्याग करना होगा तथा दीक्षामंत्र के प्रति पूर्ण निष्ठा रखनी होगी। संन्यास ग्रहण कर लेने पर वे विरक्त होकर
== उद्देश्य ==
दशनामी संन्यासियों का उद्देश्य
दशनामियों के जैसे अन्य नागाओं के कुछ उदाहरण हमें [[दादू पंथ]] आदि के धार्मिक संगठनों में भी मिलते हैं जिनके लोगों ने, [[जयपुर]] जैसी कतिपय रियासतों का संरक्षण पाकर, उन्हें समय समय पर सहायता पहुँचाई हैं। दशनामियों में कुछ गृहस्थ भी होते हैं जिन्हें "गोसाई" कहते हैं। == विभिन्न नाम ==
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