"साँचा:प्रतिभागी हिन्दी दिवस प्रतियोगिता": अवतरणों में अंतर

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हिंदी दिवस और इसकी उपयोगिता
 
क्या आप जानते हैं कि पूरे देश में हर वर्ष 14 सितंबर को ही हिन्दी दिवस क्यों मनाया जाता है? क्या आपके मन में कभी यह प्रश्न नहीं उठता है कि हमारे देश में ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि हमें हिंदी दिवस मनाना पड़ रहा है?
 
दरअसल हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्राप्त करने में बहुत से विरोधों तथा संघर्षों के साथ-साथ बहुत लम्बा समय लगा है। हमारा देश विविधताओं से भरा हुआ देश है जहाँ पर हर पचास किलोमीटर पर भाषा बदल जाती है तथा साथ ही साथ संस्कृति में भी परिवर्तन देखने को मिलता है। हमारे देश में आजादी की लड़ाई के समय से ही एक देश एक भाषा की मांग उठती रही है।
 
इसी वजह से भारत के विभिन्न प्रान्तों के नेताओं ने भी सभी भाषाओँ में हिंदी को ही देश की संपर्क भाषा बनने के लायक समझा था क्योंकि यह भाषा सम्पूर्ण उत्तर भारत तथा पश्चिमी भारत के लगभग सभी राज्यों में भलीभाँति बोली और समझी जाती थी। इस भाषा के साथ सिर्फ एक ही परेशानी थी कि यह दक्षिण भारत तथा पूर्वोत्तर के राज्यों में ना बोली जाती थी और ना ही समझी जाती थी। अतः उस समय यह तय किया गया कि जब यह भाषा पूरे देश में आम सहमती के साथ स्वीकार कर ली जाएगी तब इसे राजभाषा घोषित कर दिया जाएगा।
 
1946 में जब आजाद भारत के लिए संविधान सभा का गठन हुआ तब उसके समक्ष नए राष्ट्र के लिए संविधान के साथ-साथ आधिकारिक जनसंपर्क की भाषा का चुनाव भी प्रमुख मुद्दा था। संविधान सभा ने बहुत विचार विमर्श करने के पश्चात 14 सितम्बर 1949 को देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भाषा को अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया।
 
बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने इस ऐतिहासिक दिन को आधिकारिक रूप से हिंदी दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया जिसके परिणामस्वरूप पहला आधिकारिक हिन्दी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया।
 
वैसे दुनिया में शायद ही और कोई दूसरा देश ऐसा होगा जिसे अपनी राजभाषा को प्रोत्साहित करने की जरूरत महसूस होती हो। दुनिया में शायद ही किसी अन्य देश में उसकी राजभाषा को सौतेले व्यवहार को भोगना पड़ रहा होगा। भारत में कहने को तो प्रतिवर्ष हिंदी दिवस आता है परन्तु यह दिवस सरकारी तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा औपचारिक बनकर रह जाता है।
 
असल में हालात यह है कि हिंदी भाषी व्यक्ति को अल्प शिक्षित तथा पिछड़ा हुआ व्यक्ति समझा जाता है तथा अंग्रेजी बोलने और समझने वाले को शिक्षित तथा आधुनिक व्यक्ति समझा जाता है। हिंदी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या उंगलियों पर गिनने लायक रह गई है तथा हर कोई अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में दाखिल करवाना पसंद कर रहा है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अंग्रेजी माध्यम के बहुत से विद्यालयों में तो यह आलम है कि यहाँ पर बच्चों के हिंदी बोलने पर उनसे जुर्माना भी वसूला जाता है।
 
हम सभी लार्ड मैकाले का सपना पूरा कर रहे हैं जिसके अनुसार हम सभी शक्ल तथा चमड़ी से तो भारतीय नजर आते हैं परन्तु मानसिक रूप से हम अंग्रेज हो गए हैं। अंग्रेजों को भारत छोड़े 70 वर्ष हो गए हैं परन्तु हमारी मानसिक गुलामी आज तक हमारे मष्तिष्क से नहीं गई है। हम अंग्रेजी में बात करने पर गर्व महसूस करते हैं तथा हिंदी में बात करने वाले को हेय दृष्टि से देखते हैं।
 
जब तक उपरोक्त कारण हमारे समाज में रहेंगे तब तक हिंदी भाषा को इसका गौरव दिलाना मात्र दिवास्वप्न ही साबित होगा। अतः हमें हिंदी भाषा को भारत का गौरव बनाने के लिए ईमानदारी के साथ धरातल पर रहकर निरंतर प्रयास करना होगा। हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि मात्र एक दिन के लिए हिंदी प्रेम प्रकट करने से इस भाषा का कतई भला नहीं हो सकता है।
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