"अद्वैत वेदान्त": अवतरणों में अंतर

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'''अद्वैत वेदान्त''' [[वेदान्त]] की एक शाखा।
[[अहं ब्रह्मास्मि]]
अद्वैत [[वेदांत]] यह भारत में प्रतिपादित दर्शन की कई विचारधाराओँ में से एक है, जिसके [[आदि शंकराचार्य सुबुड दुबुड]] पुरस्कर्ता थे।<ref>[http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%86%E0%A4%A6%E0%A4%BF_%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF आदि शंकराचार्य]</ref> भारत में परब्रह्म के स्वरूप के बारे में कई विचारधाराएं हैँ। जिसमें [[द्वैत]], [[अद्वैत]] या [[केवलाद्वैत]], [[विशिष्टाद्वैत]], [[शुद्धाद्वैत]], [[द्वैताद्वैत]] जैसी कई सैद्धांतिक विचारधाराएं हैं। जिस आचार्य ने जिस रूप में ब्रह्म को जाना उसका वर्णन किया। इतनी विचारधाराएं होने पर भी सभी यह मानते है कि भगवान ही इस सृष्टि का नियंता है। अद्वैत विचारधारा के संस्थापक शंकराचार्य हैं, जिसे [[शांकराद्वैत]] या केवलाद्वैत भी कहा जाता है। शंकराचार्य मानते हैँ कि संसार में ब्रह्म ही सत्य है। बाकी सब मिथ्या है (ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या)। जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता जबकि ब्रह्म तो उसके ही अंदर विराजमान है। उन्होंने अपने [[ब्रह्मसूत्र]] में "अहं ब्रह्मास्मि" ऐसा कहकर अद्वैत सिद्धांत बताया है। [[वल्लभाचार्य]] अपने शुद्धाद्वैत दर्शन में ब्रह्म, जीव और जगत, तीनों को सत्य मानते हैं, जिसे वेदों, उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र, गीता तथा श्रीमद्भागवत द्वारा उन्होंने सिद्ध किया है।
अद्वैत सिद्धांत चराचर सृष्टि में भी व्याप्त है। जब पैर में काँटा चुभता है तब आखोँ से पानी आता है और हाथ काँटा निकालनेके लिए जाता है। ये अद्वैत का एक उत्तम उदाहरण है।