"ब्राह्मण": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
ब्राह्मण समाज का इतिहास प्राचीन भारत के [[वैदिक]] धर्म से आरंभ होता है। ब्राह्मणों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मुख से मानी गयी है "'''मनु-स्मॄति'''" के अनुसार आर्यवर्त वैदिक लोगों की भूमि है। ब्राह्मण व्यवहार का मुख्य स्रोत वेद हैं। ब्राह्मणों के सभी सम्प्रदाय वेदों से प्रेरणा लेते हैं। पारंपरिक तौर पर यह विश्वास है कि वेद ''अपौरुषेय'' (किसी मानव/देवता ने नहीं लिखे) तथा ''अनादि'' हैं, बल्कि अनादि सत्य का प्राकट्य है जिनकी वैधता शाश्वत है। वेदों को श्रुति माना जाता है (''श्रवण हेतु'', जो मौखिक परंपरा का द्योतक है)।
 
धार्मिक व सांस्कॄतिक रीतियों एवं व्यवहार में विवधताओं के कारण और विभिन्न [[वैदिक]] विद्यालयों के उनके संबन्ध के चलते, आचार्य हीं ब्राह्मण हैं आज समाज में विभिन्न उपजातियों में विभाजित है। सूत्र काल में, लगभग १००० ई.पू से २०० ई॰पू॰, वैदिक अंगीकरण के आधार पर, ब्राह्मण विभिन्न [[शाखाओं]] में बटने लगे। प्रतिष्ठित विद्वानों के नेतॄत्व में, एक ही वेद की विभिन्न नामों की पृथक-पृथक शाखाएं बनने लगीं। इन प्रतिष्ठित ऋषियों की शिक्षाओं को [[सूत्र]] कहा जाता है। प्रत्येक [[वेद]] का अपना सूत्र है। सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूल नियमों वाले सूत्रों को [[धर्म सूत्र]] कहते हैं, आनुष्ठानिक वालों को [[श्रौत सूत्र]] तथा घरेलू विधिशास्त्रों की व्याख्या करने वालों को [[गॄह् सूत्र]] कहा जाता है। सूत्र सामान्यतः पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं।