"आलोचना": अवतरणों में अंतर
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यद्यपि मूल्य या श्रेष्ठ साहित्य और निकृष्ट साहित्य का बोध पैदा करना आलोचना के प्रधान धर्मों में से एक है लेकिन वह सिद्धान्तों के यांत्रिक उपयोग से नहीं सभंव है। 'हिन्दी साहित्य कोश' में निर्णयात्मक आलोचना के विषय में बताया गया है:
:''वह कृतियों की श्रेष्ठता या अश्रेष्ठता के सबंधं में निर्णय देती है। इस निर्णय में वह साहित्य तथा कला संबन्धी नियमों से सहायता लेती है किन्तु ये नियम साहित्य और कला के सहज रूप से सबंधंन रख वाह्य रूप से आरोपित हैं।
इस प्रकार आलोचना में निर्णय विवाद का बिन्दु उतना नहीं है जितना निर्णय
=== प्रभावाभिव्यजंक आलोचना ===
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