"जम्मू (विभाग)": अवतरणों में अंतर

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डोगरा शसकों से जम्मू का शासन १९वीं शताब्दी में [[महाराजा रंजीत सिंह (पंजाब)|महाराजा रंजीत सिंह]] जी के नियंत्रण में आया और इस प्रकार जम्मू [[सिख साम्राज्य]] का भाग बना। महाराजा रंजीत सिंह ने [[महाराजा गुलाब सिंह|गुलाब सिंह]] को जम्मू का शासक नियुक्त किया। किन्तु ये शासन अधिक समय नहीं चल पाया और महाराजा रंजीत सिंह के देहान्त के बाद ही सिख साम्राज्य कमजोर पड़ गया और [[महाराजा दलीप सिंह]] के शासन के बाद ही ब्रिटिश सेना के अधिकार में आ गया और दलीप सिंह को कंपनी के आदेशानुसार [[इंग्लैंड]] ले जाया गया। किन्तु ब्रिटिश राज के पास [[पंजाब (भारत)|पंजाब]] के कई भागों पर अधिकार करने के कारण उस समय पहाड़ों में युद्ध करने लायक पर्याप्त साधन नहीं थे। अतः उन्होंने महाराजा गुलाब सिंह को [[सतलुज नदी]] के उत्तरी क्षेत्र का सबसे शक्तिमान शासक मानते हुए [[जम्मू और कश्मीर]] का शासक मान लिया। किन्तु इसके एवज में उन्होंने महाराज से {{INR}}७५ लाख नकद लिये। यह नगद भुगतान महाराजा के सिख साम्राज्य के पूर्व जागीरदार रहे होने के कारण वैध माना गया और इस संधि के दायित्त्वों में भी आता था। इस प्रकार महाराजा गुलाब सिंह जम्मू एवं कश्मीर के संस्थापक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
 
उन्हीं के वंशज [[महाराजा हरि सिंह|महाराजा हरिसिंह]] [[भारत के विभाजन]] के समय यहां के शासक थे और भारत के अधिकांश अन्य रजवाड़ों की भांति ही उन्हें भी [[भारत का विभाजन अधिनियम १९४७|भारत के विभाजन अधिनियम १९४७]] के अन्तर्गत्त ये विकल्प मिले कि वे चाहें तो अपने निर्णय अनुसार भारत या पाकिस्तान से मिल जायें या फ़िर स्वतंत्र राज्य ले लें; हालांकि रजवाड़ों को ये सलाह भी दी गई थी कि भौगोलिक एवं संजातीय परिस्थितियों को देखते हुए किसी एक [[अधिराज्य]] (''डोमीनियन'') में विलय हो जायें। अन्ततः जम्मू प्रान्त [[भारतिय अधिराज्यभारतीयअधिराज्य]](तत्कालीन) में ही विलय हो गया।
 
== जनसांख्यिकी ==