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|link=विकिपीडिया:उद्धरण आवश्यक
|text=कृपया उद्धरण जोड़ेंजोड़ेंभारत का इतिहास
【रावण या सम्राट अशोक】
विदेशी ब्राह्मणों ने सम्राट अशोक को रावण के रूप में अपमान किया और अभी भी कर रहे हैं।
विदेशी ब्राह्मणों ने वास्तविक इतिहास को काल्पनिक कथाओं के स्वरूप में लिखा। उन काल्पनिक कथाओं में उन्होंने खुद को देवताओं के रूप में उतारा और भारतीय बहुजनो को दैत्य, दानव, असुर, राक्षस, पिशाच ऐसे खलनायक के रूप में उतारा।
रावण की लंका मौर्य साम्राज्य का प्रतिबिंब ही तो है। क्योकि सिर्फ मौर्य काल ही ऐसा जब जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। रावण के राज्य/महल को सोने की लंका यूँ ही नहीं कहा गया। रावण की प्रजा में जरूर खुशहाली थी। कोई गरीब नहीं था, कोई जातिवाद नहीं था क्योंकि सभी "असुर" ही थे। रावण के राज्य में महिलायें अकेली विचरण करती थी (सुरपनखा वाली घटना को देखिये)। स्त्रियों को अपना वर चुनने की आजादी थी। लंका में अशोक वाटिका कहा से आई?? रामायण के शलोक34 सर्ग 110 में बुद्ध का जिक्र कैसे?
वास्तविक इतिहास अगर बिना कुछ बदलाव किए उन्होंने लिखा होता, तो लोगों ने अपने ही पूर्वजों को हत्याओं का जश्न कभी नहीं मनाया होता। लेकिन, ब्राह्मणों ने बडी ही चालाकी से खुद को नायक के रूप में देवता और उनके दुश्मन भारतीयों को खलनायक के रूप में दैत्य, दानव, राक्षस के रूप में समाज के सामने रखा।
रामायण में राम और रावण का किरदार इसी कडवी सच्चाई पर आधारित है। रामायण में ब्राह्मणों ने पुष्यमित्र शुंग इस ब्राह्मण का किरदार काल्पनिक राम के रूप में उतारा और सम्राट अशोक का किरदार काल्पनिक रावण के रूप में उतारा।
सम्राट अशोक ने ब्राह्मणों को उनके खास हक अधिकारों से वंचित किया था और समानता के आधार पर सभी लोगों को समान हक अधिकार दिये थे। उसने ब्राह्मणों के यज्ञों पर पाबंदी लगा दी थी, क्योंकि, इन यज्ञों में ब्राह्मण लोग गौहत्या के साथ साथ हजारों जानवरों का कत्लेआम करते थे। ब्राम्हणों को मुफ्त में मांस मटण खाने को मिलना बंद हो गया था। इसलिए गुस्से में आकर विदेशी ब्राह्मणों ने मौर्य साम्राज्य को नष्ट कर दिया और बाद में काल्पनिक रामायण लिखकर उसमें महान सम्राट अशोक को रावण के रूप में राक्षस दिखाया।
सम्राट अशोक पर अपना सुड उतारने के लिए और उसकी तरफ अपनी नफरत दिखाने के लिए ब्राह्मणों ने उसे हरसाल जलाना चालू किया।
भारतीयों को हरसाल अपमानित करने के लिए और मौर्य वंश के पराजय की खुशी हरसाल मनाने के लिए ब्राम्हणों ने रामलीला और रावण दहन का आयोजन हरसाल चालू रखा।
रावण दहन का यह क्रुर उत्सव समस्त भारतीयों का गंदा अपमान उत्सव है। विदेशी ब्राह्मणों ने उनका यह उत्सव संपूर्ण भारत में तुरंत बंद करना चाहिए। उसके साथ ही, इस दिन पर उनके RSS की विजय रैलियां भी संपूर्ण भारत में बंद होनी चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो हमने उनपर दबाव बनाना चाहिए और जोर जबरदस्ती से उसे बंद करना चाहिए
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|title=इस तथ्य की सत्यता के लिए विश्वसनीय सूत्रों की आवश्यकता है।