"कुमारिल भट्ट": अवतरणों में अंतर

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=== कर्म ===
मीमांसा दर्शन का प्रधान उद्देश्य धर्म का निरूपण करना है। जैमिनि के अनुसार धर्म का लक्षण है चोदनाचेतना (प्रेरणा) अर्थात क्रिया का प्रवर्त्तक वचन अथवा वेद का विधिवाक्य। मीमांसकों के अनुसार वेद का मुख्य तात्पर्य क्रियापरक अथवा विधिवाक्यों का प्रतिपादन करना है। वेद में प्रतिपादित कर्म तीन प्रकार के हैं : काम्य, प्रतिषिद्ध तथा नित्य नैमित्तिक। कुमारिल के अनुसार:
 
<nowiki>*</nowiki>काम्य कर्म - किसी कामना की सिद्धि के लिये किए जाते हैं, जैसे स्वर्ग की इच्छा करने वाला व्यक्ति यज्ञ करे।