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{{आधार}}
'''सोम''' ( [[संस्कृत|वैदिक संस्कृत]] में)
सनातन परंपरा में वेदों के व्याखान के लिए प्रयुक्त निरुक्त में सोम को दो अर्थों बताया गया है <ref>निरूक्त, अध्याय ११, प्रथम पाद, खंड २</ref> । पहले सोम को एक औषधि कहा गया है जो स्वादिष्ट और मदिष्ट (नंदप्रद) है, और दूसरे इसको चन्द्रमा कहा गया है । इन दोनो अर्थों को दर्शाने के लिए ये दो मंत्र हैं:
'''स्वादिष्ठया मदिष्ठया पवस्व सोम धारया । इन्द्राय पातवे सुतः ।। (ऋक् ९.१.१, सामवेद १)'''
'''सोमं मन्यते पपिवान्यत्सम्पिषन्त्योषधिम् । सोमं यं ब्रह्माणो विदुर्न तस्याश्नाति कश्चन ।। (ऋक् १०.८५.३)'''
निरूक्त में ही ओषधि का अर्थ उष्मा धोने वाला यानि क्लेश धोने वाला है ।
<nowiki>[[श्री अरोबिन्दो]]</nowiki>, <nowiki>[[कपाली शास्त्री]]</nowiki> आदि जैसे विद्वानों ने सोम का अर्थ ''श्रमजनित उल्लास'' बताया है । मध्वाचार्य परंपरा में सोम का अर्थात श्रीकृष्ण लिखा है ।
== बाहरी कड़ियाँ ==
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